Shardiya Navratri 2023: हिंदू धर्म में शारदीय नवरात्रि का विशेष महत्व है. आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शारदीय नवरात्रि की शुरुआत हो रही है और इस बार यह शुभ तिथि 15 अक्टूबर दिन रविवार को है. नवरात्रि के नौ दिनों में देवी मां की आराधना से विशेष कृपा मिलती है. जानते हैं लखनऊ के प्रसिद्ध देवी मंदिरों के बारें में, जहां जाकर दर्शन पूजन से आपको विशेष कृपा मिलेगी.
चंद्रिका देवी मंदिर: बख्शी का तालाब के कठवारा गांव के अंतर्गत गोमती नदी के तट पर स्थित पौराणिक मां चंद्रिका देवी मंदिर बेहद खास है. नवरात्रि पर यहां श्रद्धालुओं की अपार भीड़ उमड़ी हुई है. इस पौराणिक तीर्थ केंद्र के इतिहास के संबंध में स्कंद पुराण में उल्लेख मिलता है. महाराज युधिष्ठिर के अश्वमेध यज्ञ के घोड़े को मां भगवती के भक्त सुधन्वा ने रोक लिया गया था. पौराणिक मान्यता है कि महाराज दक्ष के श्राप से भगवान चंद्रमा को भी सुधन्वा कुंड में स्नान करने से क्षय रोग से मुक्ति मिली थी.
माना जाता है इस मंदिर की स्थापना लक्ष्मण के पुत्र राजकुमार चंद्रकेतु ने की थी.कहा जाता है कि त्रेता युग में लक्ष्मण के पुत्र चंद्रकेतु अश्वमेध यज्ञ के अश्व को लेकर जब कटकबासा (वर्तमान में कठवारा) के घनघोर जंगल पहुंचे तो अमावस्या की अर्धरात्रि में वह विचलित हो उठे, तब उन्होंने अपनी माता उर्मिला द्वारा बताए मंत्रों का स्मरण किया. मंत्रों के उच्चारण मात्र से अमावस की घनघोर काली रात में चंद्रघटा छा गई और उनका भय समाप्त हो गया. स्कंद पुराण में इस बात का उल्लेख मिलता है कि नारद जी द्वारा बुलाई गईं नौ दुर्गा यहां निवास करती हैं.
चौक कालीबाड़ी मंदिर: लखनऊ के चौक इलाके में बड़ी काली जी के मंदिर की स्थापना शंकराचार्य ने 2000 साल पहले की थी. मान्यता है कि जो भक्त 40 दिन मां की आरती में शामिल होते हैं, उनकी सारी परेशानियां खत्म हो जाती हैं. यही वजह है कि दूरदराज से भक्त मां भगवती के दर्शन करने के लिए आते हैं. इस मंदिर में अष्टधातु की मां की एक विशेष प्रतिमा है, जो लगभग एक फुट लंबी है. वह साल में केवल दो बार नवरात्र के मौके पर अष्टमी और नवमी को निकलती है. उसके बाद सीधे उसे तहखाने में रख दिया जाता है.
कहा जाता है कि मुगल आक्रांता जब हर जगह मंदिर तोड़ रहे थे, तब वह इस काली मंदिर में भी हमला करने वाले थे. इस वजह से मंदिर के पुजारी ने मां काली की मूर्ति को एक कुएं में डाल दिया था, जिससे कि मुगल मूर्ति को खंडित नहीं कर सकें. इसके कुछ समय बाद उन्हीं पुजारी के सपने में आया कि वह मूर्ति कुएं से निकाली जाए. हैरानी वाली बात है, जब लोगों ने मूर्ति को निकाला तो उसका अलग स्वरूप मिला. कुएं में काली मां की मूर्ति डाली गई थी, जबकि निकली विष्णु और लक्ष्मी जी की मूर्ति. तब से उसी मूर्ति की पूजा अर्चना होने लगी.
लालबाग कालीबाड़ी मंदिर: कैसरबाग घसियारीमंडी स्थित कालीबाड़ी मंदिर 160 वर्ष पुराना है. कहते हैं कि मधुसूदन बनर्जी ने सपने में मिले मां भगवती के आदेश का पालन करते हुए खुद मिट्टी की प्रतिमा तैयार कर स्थापित की थी. यहां मां काली बंगाली परंपरा के अनुसार अगस्त, 1863 से सिद्ध पीठ के रूप में विराजमान हैं. पांच जीवों के मुंडों की आधारशिला पर मां की स्थापना हुई है. जब मां की स्थापना हो रही थी तब सांप, नेवला, वानर, एक पक्षी समेत कुल पांच जीवों के मुंडों की आधारशिला पर मां की स्थापना हुई. यहां नवरात्र में महिषासुर मर्दिनी का विशेष पाठ होता है.
यह अपनी तरह का अकेला देवी मंदिर है जहां कभी बलि दिया जाया करती थी. यहां हर शारदीय नवरात्र की नवमी पर परंपरागत रूप से जीवित बलि की प्रथा का चलन लंबे समय तक रहा. अब अरसे से यहां बलि पूरी तरह से वर्जित है. महानवमी पर यहां परंपरागत रूप से हवन पूजन के बाद अब जीवित बली के स्थान पर पंच फलों की बलि मां के सामने बने कुंड में दी जाती है.
शीतला देवी माता मंदिर: यहां शीतला माता अपनी सात बहनों के साथ रहती हैं. स्कंदपुराण के अनुसार शीतलादेवी का वाहन गर्दभ है. उनके हाथों में कलश, सूप, मार्जन-झाडू और नीम के पत्ते दर्शाए गए हैं. मान्यता के अनुसार उन्हें चेचक आदि कई रोगों के निदान की देवी माना गया है. यह भी कहा जाता है कि गर्दभ की लीद के लेपन से चेचक के दाग मिट जाते हैं.
श्रीबड़ी शीतला देवी मंदिर को लेकर मान्यता है कि सन् 1779 में बंजारों ने यहां के तालाब में माता के पिंडी रूप के दर्शन किए थे. बाद में उन पिंडी रूपों को वहीं मंदिर बनवाकर स्थापित करवाया गया, जो वर्तमान में श्रीबड़ी शीतला देवी मंदिर के रूप में लोकप्रिय है. यहां माता शीतला अपनी सात बहनों के साथ विराजमान हैं. इन सात बहनों में माता सरस्वती, माता काली, मां दुर्गा, मां भैरवी, मां खजुरिया शामिल हैं. साथ ही मंदिर परिसर में मां अन्नपूर्णा, मां चंडी, मंसा देवी, संकटामाता भी पूजी जाती हैं. लखौरी ईंटों से बने इस मंदिर में चारमुखी शिवलिंग सहित कुल 28 शिवलिंग स्थापित हैं.
लखनऊ का पूर्वी देवी मंदिर: ठाकुरगंज के मां पूर्वी देवी एवं महाकालेश्वर मंदिर बाघंबरी सिद्धपीठ भी शुभता के प्रतीक हैं. नवरात्रि में यहां हर दिन मां के स्वरूप के अनुसार मां का श्रृंगार होता है. कहा जाता है कि मंदिर 400 वर्ष से अधिक पुराना है. मां का चेहरा पूरब की ओर है. इस वजह से पूर्वी देवी के रूप में मां का गुणगान होता है.
गुंबदों से बने मंदिर के सामने नीम का विशालकाय वृक्ष मां पूर्वी देवी के होने का संकेत देता है. नवरात्र पर यहां श्रद्धालुओं का मेला लगा है. सुबह आरती के साथ ही महिलाओं की ओर से भजन संध्या होती है. दर्शन के लिए भोर से ही कतारें लग जाती हैं. यहां की खास बात यह है कि मंदिर में श्रद्धालु स्वयं प्रसाद चढ़ाते हैं. महिलाओं और पुरुषों के दर्शन की अलग-अलग व्यवस्था है. नवरात्र में हाजिरी लगाने वाले श्रद्धालुओं की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. मां का हर स्वरूप श्रद्धालुओं को अपनी ओर खींचता है.