लखनऊ: इलाहाबाद हाईकोर्ट परिसर से मस्जिद हटानी होगी. सुप्रीम कोर्ट ने इसके लिये तीन महीने का समय दिया है. शीर्ष अदालत ने हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा और पूर्व के आदेश में हस्तक्षेप करने से मनाकर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को मस्जिद के लिये वैकल्पिक भूमि राज्य सरकार से मांगने के लिये आवेदन करने का मौका भी दिया है.
सुप्रीम कोर्ट में वक्फ मस्जिद हाईकोर्ट और उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए यह बातें कही गयी हैं. सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ ने कहा कि हमें हाईकोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं नजर आ रहा है. मस्जिद हटाने का विरोध कर रहे याचिकाकर्ताओं से पीठ ने कहा कि भूमि एक पट्टे की संपत्ति थी, जिसे समाप्त कर दिया गया था. अब अधिकार के तौर पर इसे कायम रखने का दावा नहीं किया जा सकता है.
सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को राहत दी है कि वह मस्जिद के लिये वैकल्पिक जमीन की मांग राज्य सरकार से कर सकते हैं. जिस पर कानून के अनुसार विचार किया जाएगा. सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों ने कहा कि याचिकाकर्ताओं को विचाराधीन निर्माण को हटाने के लिए तीन महीने का समय दिया जा रहा है. यदि आज से तीन महीने के दौरान निर्माण नहीं हटाया गया तो उसे हटाने का विकल्प खुला रहेगा.
बताया जा रहा है कि एक नवंबर 1868 को यह जमीन 50 साल के लिये पट्टे पर दी गयी थी. इसके बाद पट्टे की समय सीमा को बढ़ाया जाता रहा. डीएम इलाहाबाद ने 2001 में पट्टा रद्द करके इस जमीन को हाईकोर्ट विस्तान के लिये आरक्षित कर दिया. पांच साल पहले एडवोकेट अभिषेक शुक्ला ने याचिका दाखिल करके इस जगह से अतिक्रमण हटाने के की मांग की थी.
इसके बाद कोर्ट ने याचिका स्वीकार की और हाईकोर्ट की जमीन पर बनी मस्जिद को हटाने का आदेश दे दिया था. हाईकोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद 20 सितंबर 2017 को फैसला सुरक्षित कर लिया था. 08 नवंबर 2017 को मस्जिद को अवैध घोषित करके हटाने का आदेश दिया था. बाद में इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गयी थी. अब सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले में हस्तक्षेप करने से मना किया है.