UP News: सुप्रीम कोर्ट का सेशन जज को ट्रेनिंग पर भेजने का आदेश, पूछा- कस्टडी जरूरी नहीं तो बेल क्यों की खारिज?
सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक सेशंस जज के न्यायिक अधिकार वापस लेने का निर्देश जारी कर दिया. इसके साथ ही उन्हें प्रशिक्षण के लिए भेजने के लिए कह दिया. सुप्रीमकोर्ट ने कहा न्यायालय में कानून के आधार पर फैसले सुनाए जाते हैं. 10 महीने पहले फैसला देने के बाद भी इसका पालन नहीं किया जा रहा है.
Lucknow : उत्तर प्रदेश में एक सेशंस जज को आरोपियों को बेल न देना भारी पड़ गया. सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार यानी 2 मई को इलाहाबाद हाईकोर्ट से एक सेशंस जज के न्यायिक अधिकार वापस लेने का निर्देश जारी कर दिया. इसके साथ ही उन्हें प्रशिक्षण के लिए ज्यूडिशियल एकेडमी ट्रेनिंग में भेजने के लिए कह दिया.
सुप्रीम कोर्ट ने 21 मार्च को कहा था कि अगर कोई बार-बार ऐसे फैसले सुनाता है तो उससे न्यायिक जिम्मेदारी ले ली जाएगी और उसे ट्रेनिंग पर भेज दिया जाएगा. जस्टिस संजय किशन कौल और अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की बेंच ने सुनवाई करते हुए कहा था कि जज निर्देशों का पालन नहीं कर रहे हैं. वहीं सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट से इस मामले में 4 हफ्ते के भीतर एक हलफनामा दायर करने को भी कहा है.
दो मामलों में जज ने नहीं दी आरोपी को जमानत
एडवोकेट सिद्धार्थ लूथरा ने दो ऐसे मामले कोर्ट के सामने रखे थे, जिसमें जमानत के आदेश नहीं दिए गए थे. शादी से जुड़े विवाद के मामले में लखनऊ के सेशंस जज ने आरोपी, उसकी मां, पिता और भाई को जमानत देने से इनकार कर दिया था, जबकि उनकी गिरफ्तारी तक नहीं हुई थी. वहीं, दूसरे मामले में एक आरोपी कैंसर पीड़ित था, इसके बाद भी गाजियाबाद की सीबीआई कोर्ट ने उसे जमानत देने से मना कर दिया था.
बेंच ने निराशा जताते हुए कहा कि ऐसे बहुत से आदेश दिए जा रहे हैं, जो हमारे आदेशों से बिल्कुल भी मेल नहीं खाते. कोर्ट में कानून के आधार पर फैसले सुनाए जाते हैं. 10 महीने पहले फैसला देने के बाद भी इसका पालन नहीं किया जा रहा है.
लोकतंत्र में पुलिसिया शासन की जरूरत नहीं- कोर्ट
बेंच ने कहा कि 21 मार्च को हमारे आदेश के बाद भी लखनऊ के सेशंस जज ने इसका उल्लंघन किया. हमने इस आदेश को इलाहाबाद हाईकोर्ट के संज्ञान में भी डाला था. हाईकोर्ट को इस मामले में जरूरी कार्रवाई करनी चाहिए और जजों की न्यायिक कुशलता को सुधारने की कोशिश करनी चाहिए. उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में पुलिसिया शासन की जरूरत नहीं है.
कोर्ट ने कहा कि जहां कस्टडी की जरूरत न हो तो 7 साल से कम की सजा के प्रावधान वाले केसों में गिरफ्तारी की जरूरत नहीं है. गौरतलब है कि 21 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में आदेश जारी करते हुए सलाह दी थी कि जिला न्यायपालिका निर्धारित कानून का सही से पालन करें इसकी जिम्मेदारी हाईकोर्ट की है. इसके साथ ही इलाहाबाद हाईकोर्ट से मांग की थी कि यूपी में बड़ी संख्या अवैध हिरासत के मामले हस्तक्षेप करे.