सुप्रीम कोर्ट ने यूपी के अफसरों के रवैये पर जताई नाराजगी, कहा- अदालत के प्रति जरा भी सम्मान नहीं, जानें मामला
यूपी सरकार के अफसरों के काम करने के तरीके को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर कड़ी नाराजगी जताई है. कैदियों की सजा में छूट को लेकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश का एक साल बाद भी पालन नहीं करने पर कोर्ट ने ये टिप्पणी की है. इससे पहले अप्रैल माह में भी कोर्ट ने अन्य प्रकरण को लेकर सख्त टिप्पणी की थी.
Lucknow: सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर उत्तर सरकार सरकार के अफसरों के रवैये पर कड़ी नाराजगी जताई है. अफसरों की नाफरमानी से नाराज सर्वोच्च अदालत को यहां तक कहना पड़ा कि शीर्ष अदालत के प्रति उनमें जरा भी सम्मान नहीं है. इस टिप्पणी की यूपी की नौकरशाही में बेहद चर्चा हो रही है. इसकी वजह से योगी आदित्यनाथ सरकार कोर्ट के निशाने पर आ गई है.
जस्टिस सूर्यकांत व जस्टिस दीपांकर दत्ता की पीठ ने याचिकाकर्ताओं की समय पूर्व रिहाई के सभी लंबित आवेदनों पर चार सप्ताह में फैसला करने का आदेश दिया. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट की डबल बेंच ने कहा कि ऐसा नहीं होने पर उत्तर प्रदेश सरकार में गृह विभाग के प्रमुख सचिव 29 अगस्त को अगली सुनवाई के दिन कोर्ट में मौजूद रहेंगे.
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश में आजीवन कारावास की सजा काट रहे कुछ कैदियों की सजा में छूट के संबंध में उसके निर्देशों के अनुपालन में करीब एक साल की देरी पर गहरी नाराजगी जताते हुए यह टिप्पणी की.
सुप्रीम कोर्ट के इस कड़े रुख के बाद यूपी की नौकरशाही में हड़कंप की स्थिति है. सर्वोच्च अदालत के आदेश को लेकर लापरवाही के कारण सरकार की भी किरकरी हो रही है. अफसर कोर्ट के निर्देश को गंभीरता से नहीं लेते, जिसकी वजह से सुनवाई के दौरान शर्मिंदगी का सामना करना पड़ता है. इससे यूपी की छवि पर भी असर पड़ता है.
इस प्रकरण में उत्तर सरकार ने पीठ के समक्ष सुनवाई के दौरान कहा कि सिफारिशों के बाद सजा में छूट पर अंतिम निर्णय राज्यपाल को करना होता है. कोर्ट का राज्यपाल को डेडलाइन देना सही नहीं होगा. इस पर पीठ ने कड़ा ऐतराज जताया. साथ ही कहा कि कोई भी कानून से ऊपर नहीं है. ऐसे लोग भी हैं, जो लगभग 30 वर्षों से परेशान हैं. उन्हें बेवजह काफी समस्या का सामना करना पड़ रहा है.
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि 16 मई 2022 को उन्होंने तीन महीने में निर्णय करने का निर्देश दिया था. इसके बावजूद उत्तर प्रदेश प्रशासन ने कई कैदियों की याचिका पर अभी तक फैसला नहीं किया है. बरेली कारागार में बंद याचिकाकर्ता कैदियों ने बिना छूट 14 साल से अधिक की वास्तविक सजा पूरी कर ली थी.
इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट की डबल बेंच ने एडिशनल एडवोकेट जनरल अर्धेंदुमौली कुमार प्रसाद से कहा कि आपके राज्य में यही हो रहा है. आपके अफसर जितना अनादर दिखा रहे हैं, हमें लगता है कि कुछ कठोर कदम उठाने होंगे. पिछले साल कोर्ट पहुंचने वाले 42 दोषियों में से कई को हाईकोर्ट ने माफी याचिका पर फैसले तक रिहा या बरी कर दिया था. इसके बावजूद सात आवेदन अभी भी लंबित हैं. उन्हें लेकर कोई कदम नहीं उठाया गया है.
इससे पहले अप्रैल माह में भी उत्तर प्रदेश के सरकारी अफसरों के प्रति सुप्रीम कोर्ट ने गहरी नाराजगी व्यक्त की थी. सुप्रीम कोर्ट ने तब अवमानना याचिका दाखिल होने के बाद अदालती आदेशों का अनुपालन करने की उत्तर प्रदेश की आदत पर सख्त नाराजगी जताई थी, तब भी इसे लेकर काफी चर्चा हुई थी.
सुप्रीम अदालत को यहां तक कहना पड़ा कि अब पानी सिर से ऊपर आ गया है. भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की पीठ ने ये टिप्पणी दशकों से जेल में बंद कैदियों की समय पूर्व रिहाई से संबंधित आदेशों को पालन नहीं करने पर दायर की गई अवमानना याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान की.
डबल बेंच ने पाया कि अवमानना याचिका दायर करने के बाद एक दोषी के आवेदन पर विचार किया गया. सीजेआई ने इस पर कहा कि हमें यह देखने को मिल रहा है कि अवमानना याचिकाएं दायर करने के बाद सरकार हरकत में आती है, यह अनुचित है.
सीजेआई ने उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश एडिशनल एडवोकेट जनरल गरिमा प्रसाद से कहा कि हम नहीं चाहते कि अधिकारियों को अदालत में बुलाया जाए क्योंकि उनके पास और भी काम रहता है. यही वजह है कि हम अधिकारियों को व्यक्तिगत पेशी से छूट देते रहते हैं. लेकिन, अब बहुत हो गया. अब हम रियायत नहीं बरतेंगे. हमें अधिकारियों को व्यक्तिगत रूप से पेश करने के लिए मजबूर नहीं किया जाए.