Lucknow: भारत वर्ष 2025 तक ट्यूबरक्युलोसिस (Tuberculosis) को खत्म करने के लक्ष्य पर काम कर रहा है. टीबी को खत्म करने का ग्लोबल टार्गेट वर्ष 2030 है. लेकिन, देश में वर्ष 2025 तक इस रोग को खत्म करने के लक्ष्य पर काम किया जा रहा है. इस दिशा में यूपी की बात करें तो योगी सरकार के मुताबिक अब तक 2.70 लाख से ज्यादा टीबी मरीजों को सरकारी स्तर पर गोद लिया गया है, इसमें से 70 फीसदी मरीज आज रोगमुक्त होकर स्वस्थ जीवन जी रहे हैं. हालांकि टीबी के खिलाफ लड़ाई सामाजिक प्रयास के बिना मुकाम तक नहीं पहुंच सकती. ऐसे में यूपी के धर्मगुरुओं ने अपने स्तर पर टीबी के खात्मे के प्रयास किए हैं, जो बड़े मददगार साबित हो रहे हैं.
बरेली के अलखनाथ मंदिर के पास स्थित तुलसी मठ के महंत नीरज नयन दास टीबी मरीजों को पोषक आहार प्रदान करने के साथ, नियमित दवा सेवन के लिए प्रेरित करने की बड़ी जिम्मेदारी निभा रहे हैं. ये प्रेरणा उनको उस वक्त मिली जब वर्ष 2010 में उन्हें पता चला कि बदायूं के दातागंज के एक सैनिक के मुंह से खून आ रहा है और मदद की जरूरत है. जिला अस्पताल में जांच कराई तो पता चला टीबी है.
उन्होंने सैनिक को अपने घर पर रखकर नौ महीने तक सेवा की, जिससे वह पूरी तरह स्वस्थ हो गया. इसके बाद महंत को टीबी मरीजों का साथ निभाने की एक नई राह मिल गयी और उन्होंने हर सोमवार को टीबी मरीजों को भोजन मुहैया कराना शुरू किया. अब तक वह कई टीबी मरीजों को गोद ले चुके हैं. वर्तमान में भी वह टीबी मरीजों को पोषक आहार मुहैया करा रहे हैं. मरीजों का हौसला भी बढ़ा रहे हैं. फरीदपुर के भोलागांव की टीबी ग्रसित युवती का कहना है कि उसके परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी. टीबी की दवाएं असर नहीं कर रहीं थीं. डॉक्टर ने बताया दवाओं के साथ पौष्टिक आहार लेना बहुत जरूरी है. जानकारी होने पर महंत ने हर महीने पौष्टिक आहार मुहैया कराया, जिससे सेहत में जल्दी सुधार हुआ.
झांसी के धर्मगुरु लोकेन्द्र नाथ तिवारी टीबी से जुड़ी भ्रांतियों और भेदभाव को दूर करने में लगे हैं. एक समय था जब वह खुद टीबी से ग्रसित थे. लेकिन, विश्वास कायम रखते हुए टीबी का पूरा इलाज किया. खुद टीबी मुक्त होकर अब जनपद को टीबी मुक्त बनाने में जुटे हैं. वर्ष 2022 से वह अब तक कई लोगों की टीबी की जांच कराने के साथ ही पूरा इलाज कराने में मदद पहुंचा रहे हैं.
मऊरानीपुर ब्लॉक के राकेश (बदला हुआ नाम) का कहना है- दो हफ्ते से अधिक समय से खांसी आ रही थी, काम में भी मन नहीं लगता था. समाज में भेदभाव के डर से टीबी की जांच नहीं कराई. लेकिन, धर्मगुरु के समझाने पर जांच के लिए हिम्मत जुटा पाये और जांच में टीबी की पुष्टि हुई. इलाज कराते हुए तीन माह से अधिक समय हो गया है, स्थिति में काफी सुधार है.
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इसी प्रकार वाराणसी में सभी धर्म प्रमुखों ने वीडियो संदेश जारी कर टीबी मुक्त भारत बनाने में सहयोग की अपील की है. श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर के वरिष्ठ अर्चक आचार्य टेक नारायण उपाध्याय, मुफ्ती-ए-बनारस मौलाना अब्दुल बातिन नोमानी, फादर मजू मैथ्यू और नीचीबाग स्थित गुरुद्वारा के ग्रंथी धरमवीर सिंह का कहना है कि टीबी का लक्षण दिखने पर तुरंत जांच कराएं और टीबी की पुष्टि होती है तो पूरा इलाज जरूर कराएं और देश को टीबी मुक्त बनाएं.
नेशनल टीबी टास्क फोर्स के वाइस चेयरमैन डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के मुताबिक टीबी केवल डॉक्टर और मरीज के बीच का मुद्दा नहीं है, बल्कि इसका संबंध परिवार, समुदाय और समाज से भी है. इसलिए टीबी को खत्म करने के लिए हर स्तर से नेतृत्व जरूरी है. भेदभाव रोगियों को मानसिक तौर पर तो प्रभावित करता ही है. साथ ही परिवार, परिचितों और दोस्तों को सामाजिक, वित्तीय और शारीरिक तौर पर भी प्रभावित करता है. इसलिए भेदभाव और भ्रांतियों को हटाना बेहद जरूरी है.