यूपी के मुरादाबाद में हुए दंगे का 43 साल बाद सामने आएगा सच, योगी सरकार ने किया फैसला, जानें क्या है वजह

यूपी के मुरादाबाद में 1980 में हुए ईद की नमाज के बाद भड़के दंगे का सच अब 43 साल बाद सामने आएगा. सीएम योगी की अध्यक्षता में कैबिनेट ने मुरादाबाद दंगे की जस्टिस सक्सेना आयोग की रिपोर्ट को सदन के पटल पर रखने के प्रस्ताव को मंजूरी दी है.

By Sandeep kumar | May 14, 2023 3:42 PM
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Lucknow : यूपी के मुरादाबाद में 1980 में हुए ईद की नमाज के बाद भड़के दंगे का सच अब 43 साल बाद सामने आएगा. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में शुक्रवार को कैबिनेट ने मुरादाबाद दंगे की जस्टिस सक्सेना आयोग की रिपोर्ट को सदन के पटल पर रखने के प्रस्ताव को मंजूरी दी.

आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक, मुरादाबाद के डॉ. शमीम अहमद खान इस दंगे का सूत्रधार था. उसने वाल्मीकि समाज, सिख और पंजाबी समाज को फंसाने के लिए 13 अगस्त 1980 को ईद की नमाज के समय पथराव और हंगामा कराया गया था. इसका मकसद राजनीतिक लाभ हासिल करना था.

जांच आयोग की रिपोर्ट गोपनीय है- वित्त मंत्री

हैरानी की बात यह है कि 1980 से लेकर 2017 के दरम्यान किसी भी दल की सरकार इस रिपोर्ट को सार्वजनिक करने की हिम्मत नहीं जुटा सकी. वित्त मंत्री ने कहा कि जांच आयोग की रिपोर्ट गोपनीय है, उसे अभी सार्वजनिक नहीं किया जा सकता है. राज्य सरकार अब इस रिपोर्ट को सदन में रखेगी, जिसके बाद दंगे का पूरा सच सामने आ सकता है.

आपको बता दें कि तत्कालीन मुख्यमंत्री वीपी सिंह ने दंगे की जांच के लिए एक सदस्यीय न्यायिक जांच आयोग का गठन किया था. इस आयोग की रिपोर्ट को 40 साल बाद शुक्रवार को कैबिनेट में प्रस्तुत किया गया. कैबिनेट से अनुमोदन के बाद अब रिपोर्ट विधानमंडल में पेश की जाएगी.

वित्त मंत्री ने बताया कि करीब 40 साल पहले शासन में रिपोर्ट प्रस्तुत होने के बाद भी पूर्ववर्ती सरकारों ने रिपोर्ट को कैबिनेट एवं सदन के पटल पर रखने की अनुमति नहीं दी. उल्लेखनीय है कि 1980 से अब तक प्रदेश में 15 मुख्यमंत्री बने, लेकिन कोई भी इस रिपोर्ट को सदन के पटल पर रखने की हिम्मत नहीं जुटा सका.

दंगे मे 83 लोग मारे गए थे

मुरादाबाद में 13 अगस्त 1980 को ईद की नमाज के समय पथराव और हंगामा हुआ था. इसके बाद सांप्रदायिक हिंसा भड़कने से 83 लोग मारे गए थे और 112 लोग घायल हुए थे. मामले की जांच के लिए गठित आयोग ने अपनी रिपोर्ट 20 नवंबर 1983 को शासन को सौंपी थी. सूत्रों के मुताबिक जांच में सामने आया था कि मुस्लिम लीग के डॉ. शमीम अहमद खां और उनके समर्थकों ने वाल्मीकि समाज, सिख और पंजाबी समाज के लोगों को फंसाने के लिए अपने समर्थकों के साथ घटना को अंजाम दिया था.

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