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दुधवा टाइगर रिजर्व में बाघों की संख्या में इजाफा, इस वजह से बढ़ रहा आपसी संघर्ष, मौतों को रोकना बेहद जरूरी

यूपी में बाघों की संख्या में इजाफा भले ही अच्छा संकेत हो. लेकिन, इनके बीच आपसी संघर्ष और अन्य वजहों से मौतों को रोकना चुनौती बना हुआ है. दुधवा टाइगर रिजर्व में भी बाघों का कुनबा बढ़ा है. हालांकि जून में यहां चार बाघों की मौत भी हुई. ऐसे में संघर्ष के कारण मौतों को रोकना बेहद जरूरी है.

Lucknow: उत्तर प्रदेश में अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस (International Tiger Day) के मौके पर वन विभाग लोगों के बीच जागरूकता कार्यक्रम करा रहा है. विभिन्न एनजीओ के ​जरिए ‘सेव द टाइगर’ की आवाज को और बुलंद करने का प्रयास किया गया.

यूपी में दुधवा टाइगर रिजर्व में बाघों का मनपसंद स्थान माना जाता है. यहां की भौगोलिक परिस्थितियां बाघों के अनुकूल हैं, जिससे उनकी संख्या में इजाफा दर्ज किया जाता रहा है. एक बार फिर यहां बाघों का कुनबा बढ़ा है, हालांकि ये प्रगति बहुत ज्यादा बेहतर स्थिति वाली नहीं है.

बाघों की मौत की वजह

जानकारों के मुताबिक लखीमपुर खीरी के दुधवा टाइगर रिजर्व में संरक्षण और संवर्धन की कोशिशों के बीच बाघों का कुनबा धीमी गति से बढ़ रहा है. इसके साथ ही बाघों के जीवन पर कई प्रकार के खतरे भी बढ़े हैं. तमाम कोशिशों के बावजूद बाघ जहां शिकारियों और तस्करों के निशाने पर हैं, वहीं आपसी संघर्ष और अन्य वजहों से भी उनकी जान जा रही है.

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सीएम योगी को जारी करने पड़े निर्देश

दुधवा भी बीते दिनों बाघों की मौतों के कारण चचाओं के केंद्र में रहा. यहां तक की इसके लिए मुख्यमंत्री योगी आ​दित्यनाथ को भी निर्देश जारी करने पड़े. उन्होंने प्रदेश के वन एवं पर्यावरण, जन्तु उद्यान एवं जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) अरुण कुमार सक्सेना, अपर मुख्य सचिव वन मनोज सिंह एवं वन विभाग के अन्य अधिकारियों को तत्काल दुधवा नेशनल पार्क जाकर विस्तृत जांच कर रिपोर्ट प्रस्तुत करने के निर्देश दिए.

तीन नर और एक मादा बाघ की हुई थी मौत

इसके बाद दुधवा टाइगर रिजर्व में दो महीने के अंदर चार बाघों की मौत के मामले में गठित जांच कमेटी ने शासन को रिपोर्ट सौंपी. जांच कमेटी ने बाघों की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के आधार पर उनके मौत की वजह का खुलासा किया है. बताया गया कि दुधवा में 21 अप्रैल, 2023 और 9 जून, 2023 के बीच चार वयस्क बाघों-तीन नर और एक मादा-की कथित रूप से विभिन्न कारणों से मौत हुई थी.

खास बात है कि इस घटना ने यूपी सरकार को जांच शुरू करने और जिम्मेदार अधिकारियों को ट्रांसफर करने के लिए मजबूर कर दिया. जांच में पहली बार जंगली बिल्लियों की गश्त और निगरानी में खामियां सामने आईं थी.

वन महकमे की ओर से कहा गया कि शव परीक्षण से पता चलता है कि मौतें प्राकृतिक कारणों से हुईं न कि इसके पीछे कोई विशेष परिस्थिति थी. अलग-अलग मामलों में अन्य बाघों से लड़ते समय चोट लगने से दो बाघों की मौत हुई थी. इस प्रक्रिया में अन्य बाघ घायल हो गए. ये झगड़े जंगली जानवरों के प्राकृतिक गुणों का हिस्सा थे. बाघ क्षेत्रीय हैं और अक्सर विवाद होते रहते हैं.

अधिकारियों ने संभावना जताई कि इन बाघों के बीच लड़ाई नर मादा में संबंध स्थापित करने या इलाके पर कब्जा करने को लेकर हुई थी, परिणामस्वरूप झड़पें हुईं और अंततः चोट लगने के कारण मौतें हो गई. अधिकारियों के अनुसार अन्य दो बाघों की मौत संक्रमण के कारण हुई थी. जब बाघों की प्रतिरक्षा शक्ति कमजोर होती है तो वायरल संक्रमण से पीड़ित होते हैं.

दुधवा में 100 से ज्यादा बढ़ा है बाघों का कुनबा

बाघों के संरक्षण के प्रयास की बात करें तो वर्ष 1977 में दुधवा नेशनल पार्क की स्थापना की गई थी. उस समय यहां करीब 50 बाघ थे. बाघों के संरक्षण और संवर्धन के लिए वर्ष 1987 में दुधवा नेशनल पार्क में कतर्निया घाट वन्यजीव विहार को जोड़कर दुधवा टाइगर रिजर्व घोषित किया गया. वर्तमान में दुधवा टाइगर रिजर्व में बाघों की संख्या 105 हो गई है. संख्या में इजाफा जरूर हुआ है. लेकिन, ये बहुत ज्यादा उत्साहजनक नहीं है.

वर्ष- बाघों की संख्या

  • वर्ष 1977 – 50

  • वर्ष 1980 – 57

  • वर्ष 2000 – 77

  • वर्ष 2010 – 80

  • वर्ष 2014 – 68

  • वर्ष 2018 – 82

  • वर्ष 2022 -105

जंगल में कैमरे लगाकर बाघों की तस्वीरें की जाती हैं ट्रैप

विशेषज्ञों के मुताबिक बाघों की गणना नहीं अनुमानीकरण किया जाता है. पूरे जंगल में कैमरे लगाकर बाघों की तस्वीरें ट्रैप की जाती हैं. इनकी धारियों का मिलान कर इनकी गिनती की जाती है. यह एस्टीमेशन हर चार साल बाद होता है. प्रदेश में बाघों की संख्या में बीते पांच सालों में इजाफा दर्ज किया गया है.

यूपी में बाघों की संख्या बढ़कर हुई 804

केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव का कहना है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के वन्य व प्रकृति प्रेमी होने तथा उनकी सक्रियता से पिछले वर्ष राज्य के रानीपुर अभ्यारण्य को देश के टाइगर रिजर्व में सम्मिलित किया गया है. उत्तर प्रदेश में टाइगर रिजर्व की संख्या बढ़कर अब तीन हो गई है. इसमें दुधवा, पीलीभीत और रानीपुर सम्मिलित हैं. गंगा और शिवालिक क्षेत्र के टाइगर रिजर्व में बाघों की संख्या वर्ष 2018 में 646 थी. प्रदेश सरकार के प्रयासों से यह अब बढ़कर 804 हो गई है.

इस वजह से बाघ शिकारियों के निशाने पर

दुधवा टाइगर रिजर्व का क्षेत्रफल करीब 2200 वर्ग किलोमीटर है. इसमें से करीब 9900 हेक्टेयर भूमि पर अतिक्रमण है. इस सीमित जंगल में बाघों की बढ़ती संख्या के कारण बाघों के टेरिटरी बनाने के लिए जगह कम पड़ने लगी है. इससे बाघ जंगल से सटे खेतों में अपना ठिकाना बना रहे हैं. इससे एक तो बाघ शिकारियों के निशाने पर आ रहे हैं. दूसरे मानव-बाघ संघर्ष की बढ़ती घटनाओं से इंसानों का जीवन भी खतरे में पड़ रहा है.

खाद्य श्रृंखला मजबूत करने पर फोकस

वन विभाग के मुताबिक दुधवा टाइगर रिजर्व में बाघों की संख्या बढ़ाने के लिए यहां खाद्य शृंखला को मजबूत बनाने पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है. इसके तहत दुधवा के घास मैदानों और वेटलैंड का वैज्ञानिक ढंग से प्रबंधन किया जा रहा है. इससे बाघों का भोजन शाकाहारी जीवों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है.

बाघों का संरक्षण और संवर्धन जरूरी

दुधवा टाइगर रिजर्व के निदेशक ललित कुमार वर्मा के मुताबिक, बाघों के सरंक्षण के साथ जंगल में पूरी पारिस्थितिकी का संरक्षण होता है. इसलिए बाघों का संरक्षण और संवर्धन बेहद जरूरी है. दुधवा में बाघों की संख्या में बढ़ोतरी संतोषजनक है. बाघ और इंसानों के सहजीवन में कुछ कमी आई है. लेकिन, दुधवा टाइगर रिजर्व प्रशासन इस दिशा में अपना काम कर रहा है.

यूपी में एक राष्ट्रीय उद्यान और 26 वन्य जीव विहार-पक्षी विहार

इन सबके बीच उत्तर प्रदेश में वन्यजीव संरक्षण की बात करें तो इसएक लंबा इतिहास रहा है. प्रदेश के कुल भूभाग का 9.23 प्रतिशत क्षेत्र हरित आवरण से आच्छादित है. यहां एक राष्ट्रीय उद्यान और 26 वन्य जीव विहार-पक्षी विहार हैं. छोटा वन क्षेत्र होने के बाद भी यहां वन्य जीव संरक्षण के प्रति राज्य सरकार की दृढ़ प्रतिबद्धता है, जिसका प्रमाण है यहां के चार टाइगर रिजर्व. इस वर्ष संपूर्ण देश में प्रोजेक्ट टाइगर की स्वर्ण जयंती मनाई जा रही है.

बाघों के संरक्षण के लिए 1973 में शुरू प्रोजेक्ट टाइगर

प्रोजेक्ट टाइगर 1973 में बाघों के सरंक्षण के उद्देश्य से प्रारंभ किया गया था. यह वह समय था जब अंधाधुंध शिकार के कारण बाघों की संख्या में अप्रत्याशित कमी आयी थी एवं यह आशंका खड़ी हो गई थी कि यह जानदार और रोमांचकारी जीव इस पृथ्वी से समाप्त हो जाएगा. यह भय भी था कि बाघ के विलुप्त होने से पारिस्थितिकी संतुलन भी डगमगा जाएगा क्योंकि बाघ खाद्य श्रृंखला की चोटी पर होने के कारण अनेक प्रजातियों की जनसंख्या नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं.

80 के दशक में बाघों की जनसंख्या में फिर गिरावट की गई दर्ज

प्रोजेक्ट टाइगर की शुरुआती सफलता के पश्चात 1980 का दशक आते आते बाघों की जनसंख्या में फिर गिरावट दर्ज की गई. इस वजह से 2005 में प्रोजेक्ट टाइगर में आधुनिक सिद्धांतों जैसे लैंडस्केप प्रबंधन, प्राकृतवास सुधार एवं व्यापक जनसहभागिता, मजबूत सूचना तंत्र, कठोर कानून व्यवस्था, अंतर्राज्यीय समन्वय एवं केंद्र एवं राज्य सरकारों के परस्पर समन्वय संसाधनों की बेहतर उपलब्धता तथा तकनीक का उपयोग आदि को शामिल करते हुए संपूर्ण योजना को पुनर्गठित किया गया.

समय के साथ आधुनिक सूचना तकनीक का उपयोग

सुरक्षा के आधुनिक साधनों एवं तकनीक आधारित यंत्रों के उपयोग से बाघों को गिरती संख्या को न केवल रोकना संभव हुआ बल्कि उनकी संख्या में भी वृद्धि लगातार हुई. समय के साथ आधुनिक सूचना तकनीक का उपयोग बाघ गणना के लिए किया जाने लगा. जहां केवल पग चिन्ह से ही गणना होती थी वहां अब कैमरा ट्रैप्स के प्रयोग से आंकड़ों की विश्वसनीयता बढ़ी है तथा प्रत्येक चार वर्ष पर होने वाली गणना के आंकड़ें वर्ष 2018-2022 के ब्लॉक हेतु हमें उपलब्ध हो गये हैं.

बाघों की संख्या के मामले में दुधवा का देश में चौथा स्थान

उत्तर प्रदेश के लिए यह गौरव का विषय है कि वर्ष 2018 की गणना में 173 की तुलना में यहां बाघों की संख्या बढ़ कर 205 हो गई है जो लगभग 18 प्रतिशत की वृद्धि है. इतना ही नहीं, दुधवा राष्ट्रीय पार्क एवं टाइगर रिजर्व का क्षेत्रफल अपेक्षाकृत कम होने के बावजूद बाघ संख्या के आधार पर इसका संपूर्ण देश में चौथा स्थान है, जहां की बाघ संख्या 135 आंकलित की गई है. यह बाघ सरंक्षण के प्रति राज्य सरकार की प्रतिबद्धता एवं सकारात्मक नीतियों का ही परिणाम है कि सीमित वन क्षेत्र के बाद भी यहाँ बाघ सरंक्षण में महत्वपूर्ण सफलता मिली है.

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