Lucknow: उत्तर प्रदेश के बाराबंकी में सड़कों और हाइवे पर घूमने वाले छुट्टा जानवरों से निजात के लिए नई रणनीति बनाई गई है. पशुपालन विभाग हमलावर मवेशियों को पकड़ने के लिए लाठी, डंडे और रस्सी की बजाय उन्हें ‘ट्रेंकुलाइजर गन’ से बेहोश करेगा. इसके बाद इन्हें हाइड्रोलिक वाहन या जेसीबी की मदद से गोशाला भेजा जाएगा. डीएम के निर्देश पर ट्रेंकुलाइजर गन खरीद के लिए पशुपालन विभाग ने 3,83,700 रुपए का प्रस्ताव शासन को भेजा है.
दरअसल, जिले में घूम रहे आवारा पशुओं से किसानों की फसलों के नुकसान के साथ वाहनों से टकराने की दुर्घटनाएं लगातार सामने आ रही थीं. इस पर रोक लगाने के लिए पशुपालन विभाग ट्रांक्युलाइजर गन’ का प्रयोग कर नया तरीका अपनाएगी. बुधवार को मुख्य पशु चिकित्साधिकारी (CMO) धर्मेंद्र पांडेय ने बताया कि सड़कों पर घूम रहे आक्रामक सांड़ों को रस्सी, डंडे के सहारे पकड़ना बड़ी चुनौती होती है. पकड़ने वाली टीम के सदस्य इनके हमले से काफी चोटिल हो रहे थे. इसके लिए हमलावर मवेशियों को नियंत्रित करने के लिए ट्रांक्युलाइजर गन की आवश्यकता पड़ी है.
सीएमओ धर्मेंद्र पांडेय ने बताया कि सड़कों और खेतों में घूम रहे सांड़ों को पकड़ने के दौरान कर्मचारी घायल हो जाते हैं. इसके लिए जिलाधिकारी अविनाश सिंह के अनुमोदन पर 3,83,700 रुपए में ट्रांक्युलाइजर गन खरीद करने का प्रस्ताव शासन को भेजा है और जल्द ही इसको प्रयोग में लाया जाएगा. गोशाला में बंद मवेशियों की गणना और चिकित्सीय परीक्षण फिटनेस रजिस्टर तैयार किया जा रहा है. जिले की विभिन्न तहसीलों के 117 गांवों में चारागाह जमीन चिह्नित की गई है. जिनको अतिक्रमण से मुक्त कराकर हरे चारे के लिए नेपियर घास की रोपाई की जाएगी, जिससे गोशालाओं में बंद मवेशियों की सेहत में सुधार होगा.
वहीं, डीएफओ रुस्तम परवेज ने बताया कि ‘ट्रांक्युलाइजर गन’ का प्रयोग वाइल्ड जानवरों को बेहोश करने के लिए किया जाता है, लेकिन इसे हर कोई नहीं चला सकता. इससे 200 से 600 मीटर की दूरी पर जंगली जानवर को बेहोशी का इंजेक्शन दिया जा सकता है. ट्रंक्युलाइजर गन प्रयोग करने के लिए जानवर का क्षमता और वजन आंकने के बाद उतनी ही मात्रा में गन में लगे सिरिंज में बेहोशी की दवाई डाली जाती है. ज्यादा दवाई डालने पर जानवर की मौत भी हो सकती है. गन को चलाने के लिए एक्सपर्ट की जरूरत होती है.
इसके प्रयोग के लिए लखनऊ वाइल्ड लाइफ से संपर्क करना पड़ता है. डीएफओ रुस्तम परवेज ने आगे बताया कि इस गन का इस्तेमाल बिना प्रशिक्षण के नहीं चलाया जा सकता. इससे न केवल जानवर, बल्कि खुद कर्मचारी को भी हाथ से जान धोना पड़ सकता है. इंजेक्शन में पड़ने वाली दवाई इंसान के लिए घातक साबित होती है. गन प्रयोग के लिए पशु विभाग के अफसरों को इसकी ट्रेनिंग की आवयश्कता पड़ेगी.
जानवरों को ट्रैंकुलाइज करने वाली ट्रैंकुलाइजर गन को रखने के लिए किसी लाइसेंस नहीं बल्कि पीसीसीएफ की परमिशन लेनी होती है. यह गन 50 से 60 मीटर पर मौजूद जानवर को सटीक निशाने के साथ मौके पर ही ट्रेंकुलाइज कर देती है. जिसके बाद वह जानवर 35 से 40 मिनट के लिए बेहोशी की अवस्था में पहुंच जाता है.
डेनमार्क से सिरिंज प्रोजेक्ट फॉर वाइल्ड लाइफ (ट्रेंकुलाइजर गन) में जानवर पर निशाना साधने के लिए दूरी के अनुसार लगे गैस सिलेंडर में एयर प्रेशर डालना पड़ता है. इस सिलेंडर में CO2 गैस का इस्तेमाल किया जाता है.
विशेषज्ञों की माने तो जानवरों को ट्रेंकुलाइज करते समय जानवर के अधिक चर्बी वाले हिस्से पर निशाना साधा जाता है. जिसमें थाई व कूल्हे का हिस्सा सुरक्षित माना जाता है. वैसे तो गर्दन पर भी ट्रेंकुलाइज किया जाता है लेकिन वह रिस्की साबित हो सकता है. क्योंकि आंख और मुंह को बचाते हुए गर्दन पर निशाना साधना होता है.
वहीं, जानवर को ट्रेंकुलाइज करने के बाद दवा के डोज का असर 35 से 40 मिनट के बीच रहता है. अगर कभी दवा के डोज के समय से अधिक वक्त लगने की संभावना होती है तो उक्त जानवर को सिरिंज से एक छोटा डोज देकर बेहोशी की सीमा बढ़ाई जाती है.