Lucknow: हर माता-पिता अपने बच्चे के भविष्य को लेकर बेहद चिंतित रहते हैं. उनकी ये चिंता तब और बढ़ जाती है जब उन्हें अचानक इस बात का पता चलता है कि उनका बच्चा दूसरे आम बच्चों से अलग है और वह ट्रांसजेंडर की श्रेणी में है. ऐसे में ट्रांसजेंडर बच्चों और किशोरों की समुचित देखभाल बहुत जरूरी होती है.
इसको ध्यान में रखते हुए भारतीय किशोर स्वास्थ्य अकादमी ने जरूरी दिशा निर्देश तैयार किए हैं. इस अतिमहत्वपूर्ण और संवेदनशील मुद्दे पर गाइडलाइन बनाने वाली टीम में लखनऊ से एसजीपीजीआई की वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. पियाली भट्टाचार्य, हिंद इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल साइंस के डॉ. उत्कर्ष बंसल और नियो चाइल्ड क्लीनिक के डॉ. संजय निरंजन शामिल हैं.
डॉ. पियाली के मुताबिक ट्रांसजेंडर होना एक प्रकार का सामान्य व्यक्तित्व है और ये किसी भी प्रकार का मानसिक विकार नहीं है. जरूरी नहीं है कि जन्म के समय जननांगों के आधार पर निर्धारित किया गया लिंग ही व्यक्ति के मन द्वारा माना गया अपना लिंग हो.
बच्चे अपने निर्धारित लिंग के विपरीत दूसरे लिंग के कपड़े पहनना, खिलौने खेलना और नाम व उपनाम को पसंद कर सकते हैं. यह उनके ट्रांसजेंडर होने का संकेतक हो सकता है. ऐसे बच्चों को अपने परिवार और स्कूल में कई बार प्रताड़ना और उपहास का सामना करना पड़ सकता है. यह उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल सकता है.
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उनकी मनोस्थिति को नहीं समझ पाने के कारण उन पर अपने जन्मजात लिंग के अनुसार व्यवहार करने का दबाव डाला जाता है, जिससे वह तनाव और अवसाद के शिकार हो जाते हैं. किशोरावस्था में यह अत्यंत गंभीर समस्या बन सकती है और ऐसे किशोर उत्पीड़न के कारण मादक पदार्थों का सेवन, घर से भागना या आत्महत्या तक कर सकते हैं.
डॉ. संजय का कहना है कि यह समझना आवश्यक है कि ट्रांसजेंडर होना व्यक्ति के सेक्सुअल ओरिएंटेशन से भिन्न है. ट्रांसजेंडर समाज के हितों को ध्यान में रखकर ही केंद्र सरकार ने ट्रांसजेंडर प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स एक्ट 2019 लागू किया है. यह कानून उन्हें अपने पहचान पत्र पर ट्रांसजेंडर के रूप में अपनी पहचान दर्ज करवाने का अधिकार प्रदान करता है. किसी भी शैक्षिक या व्यावसायिक संस्थान में ट्रांसजेंडर लोगों के साथ किसी प्रकार का भेदभाव कानूनन अपराध है. कार्यक्षेत्रों और शैक्षिक संस्थानों में जेंडर न्यूट्रल वाशरूम होने आवश्यक हैं.
डॉ. उत्कर्ष के अनुसार समाज को ऐसे लोगों को समझने की, उन्हें उनके अनुरूप स्वीकार करने की और उनके प्रति अपनी सोच बदलने की आवश्यकता है. ट्रांसजेंडर बच्चे को बाल रोग विशेषज्ञ अगर देखें तो उनके अभिभावकों को इस सामान्य मनोस्थिति से अवगत कराना चाहिए.
बच्चे को उसके द्वारा निर्धारित लिंग के अनुसार रहने देना चाहिए और जन्मजात लिंग के अनुरूप रहने के लिए मजबूर नहीं करना चाहिए. जितना उचित परिवार और समाज का साथ ट्रांसजेंडर बच्चों को मिलेगा, उनका विकास उतना ही अच्छा होगा और वह अपने सामर्थ्य का पूर्ण उपयोग करके जीवन में सफल हो सकेंगे.