Lucknow News: लखनऊ के सिंकदर बाग चौराहे पर पुरुषों की पोशाक पहने एक महिला की प्रतिमा स्थापित की गई है. यह प्रतिमा वीरांगना ऊदा देवी की स्वतंत्रता संग्राम में दिखाई गई वीरता का प्रतीक है. ऊदा देवी ने 1857 की लड़ाई में अपनी वीरता से कई अंग्रेजों को मौत के घाट उतार दिया. इतिहास के पन्नों में उन्हे भले ही वो स्थान नहीं मिल पाया हो, जितना मिलना चाहिए था. लेकिन लखनऊ और आसपास के इलाकों में आज भी ऊदा देवी की शहादत को याद करते हुए लोग नमन करते हैं. दलित समुदाय से आने वाली ऊदा देवी, लखनऊ के नवाब वाजिद अली शाह की बेगम हजरत महल की सुरक्षा में तैनात थीं. जबकि उनके पति मक्का पासी नवाब की सेना में थे. ऊदा देवी का बलिदान आजादी की लड़ाई में दलितों के योगदान और महिलाओं की भूमिका को बयां करता है. 10 जून 1857 को चिनहट के पास इस्माइलगंज में अंग्रेजों के साथ हुई लड़ाई में मक्का पासी न मारे गए होते तो शायद वीरांगना ऊदा देवी का नाम इतिहास में दर्ज नहीं होता. अपने पति मक्का पासी की शहादत के बाद ऊदा देवी के मन में अंग्रेजों से बदला लेने की आग भड़क उठी थी. वह बेगम हजरत महल की महिला सेना में भर्ती हुई. सिंकदरबाग की लड़ाई में 16 नवम्बर 1857 को वह पुरुषों के भेष में एक पेड़ पर चढ़ गई और वहीं से करीब 36 अंग्रेज सैनिकों को मार गिराया. इसके बाद वीरगति को प्राप्त हुई.
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Lucknow: ऊदा देवी 36 अंग्रेजों को मौत के घाट उतारकर हुईं थी शहीद, अवध में फूंका था क्रांति का बिगुल
Lucknow News: लखनऊ के सिंकदर बाग चौराहे पर पुरुषों की पोशाक पहने एक महिला की प्रतिमा स्थापित की गई है. यह प्रतिमा वीरांगना ऊदा देवी की स्वतंत्रता संग्राम में दिखाई गई वीरता का प्रतीक है. ऊदा देवी ने 1857 की लड़ाई में अपनी वीरता से कई अंग्रेजों को मौत के घाट उतार दिया
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