UP: अक्षय तृतीया आते ही यहां गम में डूब जाते हैं लोग, नहीं मनाते पर्व, किले में लड़कियों से हुई दरिंदगी है वजह

Akshaya Tritiya 2023: जब देश में लोग पूरे साल अक्षय तृतीया के आने का इंतजार करते हैं, जिससे इस दिन वह खरीदारी, विवाह और शुभ कार्यक्रम कर सकें, ऐसे में यूपी में एक जगह ऐसी भी है, जहां लोग कई पीढ़ियों से अक्षय तृतीया को नहीं मनाते. इसके पीछे तालबेहट किले में हुई दरिंदगी की दास्तान है.

By Sanjay Singh | April 22, 2023 12:10 AM

Akshaya Tritiya 2023: अक्षय तृतीया के पर्व का धार्मिक लिहाज से बेहद महत्व है. इस दिन किए दान, तप और ​पूजन का कई गुना ज्यादा पुण्य मिलता है. अक्षय तृतीया पर भगवान विष्णु की उपासना को बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है. वहीं पूजन अर्चन करने से मां लक्ष्मी की विशेष कृपा भी मिलती है. भगवान परशुराम का जन्म होने के कारण इस दिन परशुराम जयंती मनाई जाती है. जब देश में लोग पूरे साल अक्षय तृतीया के आने का इंतजार करते हैं, जिससे इस दिन वह खरीदारी, विवाह और शुभ कार्यक्रम कर सकें, ऐसे में यूपी में एक जगह ऐसी भी है, जहां लोग कई पीढ़ियों से अक्षय तृतीया आते ही शोक में डूब जाते हैं और इस पर्व को नहीं मनाते.

यूपी में यहां अक्षय तृतीया नहीं मनाने की ये है वजह

यूपी में यहां अक्षय तृतीया नहीं मनाने के पीछे एक ऐसी खौफनाक दास्तान है, जिसे लोग चाहकर भी नहीं भूल पाते. अक्षय तृतीया आते ही मासूम बच्चियों की सिसकियों से जुड़ी दशकों पूर्व हुई घटना उनको एक कलंक की याद दिलाने लगती है, जो उनके क्षेत्र पर लगा है. ये इलाका यूपी के बुंदेलखंड स्थित ललितपुर जनपद का तालबेहट है, जहां लोग एक दर्दनाक घटना की वजह से अक्षय तृतीया का पर्व नहीं मनाते.

अक्षय तृतीया पर सैकड़ों साल पहले हुई थी घटना

इसके पीछे मासूम लड़कियों की वो सिसकियां हैं, जो आज भी रात में लोगों को किले से सुनायी देती है. इसमें वह रोते हुए अपना दर्द बयां करती हैं. इन लड़कियों की चीखों के कारण लोग किले में दाखिल नहीं होते और इसका जिक्र सैकड़ों सालों के बाद भी अपनी आने वाली पीढ़ी से करना नहीं भूलते. वजह उन्हें इस शापित किले से दूर रखना है, जिसकी वजह से कोई अनहोनी नहीं हो जाए.

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राजा मर्दन सिंह के किले में हुई थी दरिंदगी

इतिहासकार नीरज सुडेले के मुताबिक 1850 में मर्दन सिंह ललितपुर में बानपुर के राजा बने. 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में वह रानी लक्ष्मीबाई के साथ थे. बुंदेलखंड में आज भी मर्दन सिंह को महान क्रांतिवीर के रूप में याद किया जाता है. बानपुर के पास तालबेहट गांव था. जहां उनका अक्सर आना-जाना होता था. इस वजह से राजा मर्दन सिंह ने वहां किला बनवाया. इस किले की देखरेख उनके पिता प्रहलाद सिंह करते थे. प्रहलाद सिंह यहां अकेले ही रहते थे.

अक्षय तृतीया के दिन किले के बुर्ज से कूदकर सात मासूमों ने दी थी जान

अक्षय तृतीया के दिन नेग मांगने की रस्म होती है. इस रस्म अदायगी के लिए तालबेहट की सात लड़कियां राजा मर्दन सिंह के इस किले में पहुंची. मर्दन सिंह के पिता प्रहलाद किले में अकेले थे. लड़कियों को देखकर उनकी नीयत खराब हो गई. उन्होंने इन सातों के साथ दरिंदगी की. लड़कियों की चीख महल में कैद होकर रह गई. राजा की ताकत के आगे उन्होंने खुद को असहाय पाया और लोकलाज के डर से आहत सभी ने किले के बुर्ज से कूदकर जान दे दी.

किले की दी​वारों पर आज भी नजर आते हैं मासूमों के चित्र

सात लड़कियों के एक साथ खुदकुशी करने से तालबेहट गांव में हाहाकार मच गया. जनता के आक्रोश को देखते हुए राजा मर्दन सिंह ने अपने पिता प्रहलाद को यहां से वापस बुला लिया. राजा मर्दन सिंह अपने पिता की नापाक हरकत से बेहद दुखी थे. उन्होंने लोगों की नाराजगी शांत करने और अपने पिता की करतूत का पश्चाताप करने के लिए लड़कियों को श्रद्धांजलि देने का फैसला किया. राजा मर्दन सिंह ने अपने पिता के गुनाह पर पश्चाताप किया और किले के मुख्य द्वार पर सभी सात लड़कियों के चित्र बनवाए. वक्त के थपेड़ों के बावजूद इन चित्रों की झलक आज भी किले की दीवारों पर मिलती है.

लोगों को सुनाई देती हैं सिसकियां

यूं तो मर्दन सिंह ने अपने पिता के गुनाह को स्वीकार करते पश्चाताप कर लिया. लेकिन, कहा जाता है कि अकाल मौत के कारण सातों लड़कियों की आत्मा को शांति नहीं मिली. खुदकुशी करने से पहले उनकी सिसकियां भले ही तब लोग नहीं सुन पाए हों. लेकिन, मरने के बाद तालबेहट के किले में अब वह हमेशा के लिए गूंजती रहती हैं. आज भी अगर कोई इस खंडहरनुमा किले की ओर जाने के लिए कदम बढ़ाता है तो उसे ये आवाजें सुनाई देती हैं. इस वजह से अंधरे में कोई भी किले में प्रवेश नहीं करता.

अक्षय तृतीया पर मासूम लड़कियों की होती है पूजा

यह वाकया अक्षय तृतीया के दिन हुआ था और इस दिन गांव की सात बेटियां अपने साथ हुए गुनाह के कारण खुदकुशी करने को मजबूर हुई थीं. इसलिए आज भी यहां के लोग इस पर्व को नहीं मनाते हैं. इस घटना को सैकड़ों वर्षों हो गए और कितनी पीढ़ियां गुजर गई. लेकिन, आज भी लोग इसका पूरी तरह से पालन करते हैं और अक्षय तृतीया की खुशियों से पूरी तरह दूरी बनाए रखते हैं. राजा मर्दन सिंह ने अपने पिता की करतूत का पश्चाताप करने के लिये लड़कियों को श्रद्धांजलि के रूप में किले के मुख्य द्वार पर उनके जो चित्र बनवाए थे, गांव की शांति के लिए हर वर्ष महिलाएं आज भी उसकी पूजा करती हैं.

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