Lucknow: यूपी में नगरीय निकाय चुनाव के शोर में रामपुर की स्वार और मीरजापुर की छानबे विधानसभा सीट के उपचुनाव की आवाज पूरी तरह से दब गई. हालत ये रही कि दोनों ही जगह मतदाताओं की बेरुखी सामने आई और पिछले आम चुनाव से कम मतदान हुआ. उपचुनाव में स्वार में 44.95 प्रतिशत और छानबे में 44.15 फीसदी मतदान हुआ. ऐसे में अब हार-जीत के समीकरण इस बात पर तय करेंगे कि कम मतदान होने के बावजूद किसके मतदाता ज्यादा घरों से बाहर निकले. स्वार में करीब 24 और छानबे सीट पर 14 फीसदी कम मतदान हुआ है.
इससे पहले विधानसभा चुनाव 2022 में स्वार में 69.34 प्रतिशत और छानबे में 57.91 प्रतिशत मतदाताओं ने लोकतंत्र के महापर्व में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी. लोकसभा चुनाव 2024 से पहले इन दोनों विधानसभा सीटों पर उपचुनाव बेहद अहम माना जा रहा था. लेकिन, मतदाताओं में जोश नहीं दिखाई दिया. सत्ता पक्ष से इन दोनों ही सीटों पर भाजपा के सहयोगी दल अपन दल (एस) ने उम्मीदवार उतारे थे, जिनकी उपचुनाव में सीधी लड़ाई सपा से देखी गई. हालांकि मतदान प्रतिशत में गिरावट होने की वजह से किसका पलड़ा भारी रहा, ये फिलहाल साफ नहीं हो पाया है.
स्वार सीट सपा के वरिष्ठ नेता आजम खां के बेटे अब्दुल्लाह आजम की सदस्यता रद्द होने के कारण रिक्त हुई थी, जबकि छानबे सीट पर अपना दल (एस) के विधायक राहुल प्रकाश कोल के निधन के कारण उपचुनाव हुआ.
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स्वार विधानसभा सीट की बात करें तो अब्दुल्लाह आजम ने विधानसभा चुनाव 2022 में अपना दल (एस) के हैदर अली खान ‘हमजा खान’ को हराकर जीत दर्ज की थी. अब्दुल्लाह आजम को 126162 और हमजा खान को 65059 मत मिले थे. अब्दुल्लाह आजम ने 59.19 प्रतिशत और हमजा खान ने 30.52 प्रतिशत मत हासिल किए थे.
छानबे विधानसभा सीट पर नजर डालें तो विधानसभा चुनाव 2022 में अपना दल (एस) के राहुल प्रकाश कोल ने सपा उम्मीदवार कीर्ति को हराकर जीत हासिल की थी. राहुल प्रकाश कोल ने 102502 मत हासिल किए थे. उन्हें 47.29 प्रतिशत मत मिले थे, जबकि सपा 29.71 फीसदी मतों के साथ दूसरे स्थान पर थी.
सपा ने उपचुनाव में धांधली का आरोप लगाया है. पार्टी ने निर्वाचन आयोग को पत्र भेजकर इसकी शिकायत भी की है. इसमें दोनों विधानसभा क्षेत्रों में मतदाताओं को डराने-धमकाने का आरोप लगाया है. वहीं अपना दल (एस) ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि सपा संभावित हार के कारण अभी से डर गई है, इसलिए इस तरह के आरोप लगा रही है.
कहा जा रहा है कि सत्तापक्ष और विपक्ष का सारा जोर निकाय चुनाव पर था. निकायों में जीत के जरिए सभी दल लोकसभा चुनाव से पहले अपना आधार मजबूत करना चाहते हैं. उनका मानना है कि निकायों में जीत के जरिए भविष्य के सियासी समीकरण साधने में ज्यादा मदद मिलेगी, जबकि विधानसभा उप चुनाव मात्र दो सीटों तक सीमित था. इसमें भी दोनों ही जगह भाजपा मैदान में नहीं थी. हालांकि पार्टी ने अपना दल (एस) का पूरा सहयोग किया. लेकिन, मतदाताओं में जोश पैदा नहीं करने में सियासी दल नाकाम रहे. विपक्षी दल के तौर पर सपा ही स्थानीय स्तर पर लड़ाई में जोर लगाते नजर आई. लेकिन, उसके नेतृत्व ने दिलचस्पी नहीं दिखाई. ऐसे में मतदाता भी बड़े स्तर पर अपने घरों से बाहर नहीं निकले.