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छानबे विधानसभा उपचुनाव रिजल्ट: अपना दल की रिंकी कोल ने 9 हजार से अधिक मतों से जीत दर्ज की

उत्तर प्रदेश में विधानसभा की दो सीटों के लिए उपचुनाव की मतगणना हुई समाप्त. रामपुर के स्वार में भारतीय जनता पार्टी और अपना दल एस के गठबंधन के प्रत्याशी शफीक अंसारी ने जीत दर्ज करने के बाद मिर्जापुर के छानबे विधानसभा पर भी जोरदार जीत दर्ज की है.

Lucknow : उत्तर प्रदेश में विधानसभा की दो सीटों के लिए उपचुनाव की मतगणना हुई समाप्त. रामपुर के स्वार में भारतीय जनता पार्टी और अपना दल एस के गठबंधन के प्रत्याशी शफीक अंसारी ने जीत दर्ज करने के बाद मिर्जापुर के छानबे विधानसभा सीट पर भी अपना दल एस ने दमदार जीत दर्ज की है. शुरुआत में अपना दल (S) और समाजवादी पार्टी में कड़ा संघर्ष दिखा. लेकिन 15 वें दौर के बाद अपना दल (S) की प्रत्याशी रिंकी कोल ने सपा की कीर्ति कोल से बढ़त बनाने का जो सिलसिला शुरू किया वो अंत तक जारी रहा.

रिंकी कोल ने 9589 मत से दमदार जीत दर्ज की

दरअसल, छानबे सीट भारतीय जनता पार्टी के सहयोगी अपना दल (सोनेलाल) के विधायक राहुल कौल के निधन होने के चलते खाली हुई थी. ऐस में पार्टी ने इस सीट पर दिवंगत विधायक राहुल प्रकाश कोल की पत्नी रिंकी कोल को मैदान में उतारा था. वहीं समाजवादी पार्टी कीर्ति कोल को उम्मीदवार बनाया था. जबकि कांग्रेस ने अजय कुमार पर दाव लगाया था.

अपना दल की रिंकी कोल ने 9589 वोटों से जीत दर्ज की हैं. उन्हें कुल 76176 वोट मिले हैं जबकि सपा की प्रत्याशी कीर्ति कोल को 66587 वोट मिले हैं. आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश के नगर निकाय चुनाव लिए मतगणना जारी हैं. जिसके लिए 4 मई को पहले चरण का चुनाव कराया गया था. जबकि 11 मई को दूसरे चरण का चुनाव कराया गया था.

कब-कब कौन-कौन रहा विधायक?

एक नजर छानबे सीट की पॉलिटिकल हिस्ट्री पर बात करें तो 1952 से 1962 तक 3 बार कांग्रेस के अजीज इमाम विधायक रहे, वहीं 1967 में स्वामी ब्रह्मानंद जनसंघ से विधायक बने. 1969 में जनसंघ के ही श्रीनिवास प्रताप विधायकी जीते. उसके बाद 1974 में 1977 और 1980 में कांग्रेस के पुरुषोत्तम चौधरी विधायक बने, पिता की सीट पर 1985 में कांग्रेस के भगवती प्रसाद चौधरी चुने गए. वही 1989 में कालीचरण जेडी एवं 1991 दुलारे लाल जेडी को जनता ने चुना था. 1993 में सभी दल को पछाड़ BSP ने जीत दर्ज की थी.

1993 में सभी दल को पछाड़ कर BSP के श्रीराम विधायक बने, फिर 1996 में जनता ने BJP के भाईलाल को मौका दिया. वहीं भाईलाल कोल 2012 में पाला बदल कर सपा खेमे में जाकर चुनावी जंग जीतने में कामयाब रहे. 2017 के चुनाव में भाजपा से गठबंधन में यह सुरक्षित सीट अपना दल एस के खाते में आई तब राहुल प्रकाश कोल विधायक बने. मगर, चुनावी जंग जीत कर वह कैंसर की बीमारी से हार गए.

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