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यूपी विधान परिषद उपचुनाव: भाजपा-सपा प्रत्याशियों ने किया नामांकन, सत्तापक्ष संख्याबल और अखिलेश उम्मीद पर कायम

यूपी विधान परिषद उपचुनाव: सपा का ​एमएलसी उप चुनाव में प्रत्याशी उतारना सवाल खड़े कर रहा है. सपा के इस फैसले के बाद दोनों सीटों के लिए अलग-अलग सभी विधायक मतदान करेंगे. जाहिर तौर पर ऐसे में भाजपा ज्यादा मजबूत स्थिति में है. लेकिन, सपा को लगता है कि वह सत्तापक्ष के वोट हासिल करने में कामयाब होगी.

Lucknow: यूपी विधान परिषद की दो रिक्त सीटों पर भाजपा और सपा के बीच मुकाबला देखने को मिलेगा. पहले माना जा रहा था कि संख्याबल के हिसाब से दोनों सीटें भाजपा के पाले में जाने के कारण विपक्ष अपने उम्मीदवार नहीं खड़े करेगा. लेकिन, समाजवादी पार्टी ने गुरुवार को प्रत्याशियों की घोषणा के साथ उनका नामांकन दाखिल कराया. गुरुवार को नामांकन का अंतिम दिन होने के कारण सपा को आनन फानन में फैसला करना पड़ा. वहीं भाजपा उम्मदीवारों ने भी अपना परचा दाखिल किया. इसके बाद उपचुनाव के रण में दोनों दल फिर एक दूसरे के सामने आ गए हैं.

भाजपा प्रत्याशियों के नामांकन में मौजूद रहे सीएम योगी व डिप्टी सीएम

उत्तर प्रदेश विधान परिषद की दो रिक्त सीटों पर उप चुनाव में भाजपा प्रत्याशी पदमसेन चौधरी और मानवेंद्र सिंह ने गुरुवार को नामांकन पत्र दाखिल किया. रास्ते में ढोल नगाड़ों के बीच पार्टी कार्यकर्ता साथ में रहे. नामांकन के दौरान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और दोनों उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य व ब्रजेश पाठक सहित पार्टी के पदाधिकारी व नेता मौजूद रहे.

सपा ने ऐन वक्त पर प्रत्याशी किए घोषित, नामांकन में अखिलेश नहीं रहे मौजूद

वहीं समाजवादी पार्टी की ओर से रामजतन राजभर और राम करन निर्मल ने नामांकन पत्र दाखिल किया. इन दोनों नेताओं के नाम पर गुरुवार को सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने पार्टी नेताओं के साथ बैठक में मुहर लगाई. दोनों नेताओं के नामांकन के दौरान अखिलेश यादव उपस्थित नहीं थे. प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल सहित अन्य नेता मौजूद रहे. सपा ने मऊ निवासी पूर्व एमएलसी रामजतन राजभर को उम्मीदवार बनाकर पूर्वांचल की अति पिछड़े वर्ग में शामिल राजभर जाति के वोट बैंक को संभालने की कोशिश की है. वहीं कौशांबी निवासी रामकरन निर्मल धोबी बिरादरी से हैं. उनके जरिए पार्टी नेतृत्व ने युवाओं को साधने का सियासी संदेश दिया है.

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सपा के प्रत्याशी खड़े करने पर उठे सवाल

इस बीच सपा का ​एमएलसी उप चुनाव में प्रत्याशी उतारना सवाल खड़े कर रहा है. सपा के इस फैसले के बाद दोनों सीटों के लिए अलग-अलग सभी विधायक मतदान करेंगे. इसके पीछे दोनों सीटों का नोटिफिकेशन अलग-अलग होना कारण बताया जा रहा है. जाहिर तौर पर ऐसे में भाजपा ज्यादा मजबूत स्थिति में है. लेकिन, सपा को लगता है कि वह सत्तापक्ष के वोट हासिल करने में कामयाब होगी. ऐसे मेें उसके प्रत्याशी की जीत संभव है.

सपा के लिए आसान नहीं है वोट हासिल करना

हालांकि सियासी विश्लेषकों के मुताबिक ऐसा होना आसान नहीं है. सपा को विपक्ष के अन्य विधायकों के वोट मिलते हैं या नहीं, इसकी तस्वीर भी अभी साफ नहीं है. इसके लिए सपा को अपनी रणनीति को सफल बनाना होगा. वहीं भाजपा के खेमे में सेंधमारी भी आसान नहीं है. निकाय चुनाव में भारी भरकम जीत के बाद सत्तापक्ष बेहद उत्साहित है, तो दूसरी ओर सपा में कई जगह नेताओं के बीच आपसी खींचतान नजर आई.

सपा के उम्मीदवार खड़े करने के पीछे ये भी हो सकती है वजह

इस बीच ये भी कहा जा रहा है कि सपा बिना लड़े भाजपा को आसानी से दोनों सीटें देने के पक्ष में नहीं थी. इसलिए उसने उप चुनाव में प्रत्याशी उतारे, जिससे जनता के बीच संदेश जाए कि भाजपा का मुकाबला करने के लिए हर वक्त वही आगे रहती है. निकाय चुनाव में भी भाजपा के बाद सपा ही दूसरे स्थान पर रही है.

एक सीट पर दो प्रत्याशी और 403 मतदाता

विधान परिषद की दोनों सीटें भाजपा के विधान परिषद सदस्य लक्ष्मण आचार्य के इस्तीफे और बनवारी लाल दोहरे के निधन से रिक्त हुई हैं. इस चुनाव में सभी विधानसभा सदस्य मतदान करेंगे. भाजपा और सपा के प्रत्याशी उतारने पर प्रत्येक सीट पर दो प्रत्याशी हो गए हैं. वहीं प्रत्येक सीट के लिए विधानसभा के सभी 403 सदस्य अपना वोट देंगे. इस तरह एक सीट पर दो प्रत्याशी और 403 मतदाता हैं.

विधान सभा में संख्याबल

विधानसभा में भाजपा गठबंधन के 274, सपा गठबंधन के 118 सदस्य हैं. जबकि, सुभासपा के छह, बसपा के एक, कांग्रेस और जनसत्ता दल लोकतांत्रिक के दो-दो सदस्य हैं. ऐसे में विपक्ष का साथ मिलने के बावजूद सपा उम्मीदवार जीत हासिल करने की स्थिति में नहीं हैं.

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