UP Nagar Nikay Chunav: प्रदेश में निकाय चुनाव का बिगुल बजने के साथ ही कानूनी मोर्चे पर इसे लेकर लड़ाई जारी है. एक तरफ पहले चरण का नामांकन जहां शुरू हो चुका है, वहीं ओबीसी आरक्षण को लेकर गठित किए गए आयोग पर सवाल उठाते हुए मामला हाईकोर्ट पहुंच गया है. इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच में इसे लेकर चुनौती दी गई है, जिसके बाद निकाय चुनाव को लेकर फिर कई सवाल उठने लगे हैं.
निकाय चुनाव को लेकर न्यायमूर्ति राजन रॉय और न्यायमूर्ति मनीष कुमार की खंडपीठ के प्रदेश सरकार से जवाब चार सप्ताह में जवाब तलब किया है. मामले की अगली सुनवाई छह सप्ताह बाद होगी. हाईकोर्ट में दायर की गई याचिका में आयोग की रिपोर्ट पर सवाल उठाए गए हैं. इसमें कहा गया है कि ओबीसी की परिभाषा बदले बिना ही रिपोर्ट सौंपी गई है. ऐसे में याचिकाकर्ता नईम अहमद ने प्रदेश सरकार की तरफ से 30 मार्च को जारी सीटों के आरक्षण की व्यवस्था को निरस्त करने का आग्रह किया है.
याचिकाकर्ता ने यह याचिका शाहजहांपुर की कटरा नगर पंचायत के आरक्षण को लेकर दाखिल की है. इसमें कहा गया है कि कानूनी प्रावधानों का सही तरीके से पालन नहीं होने के कारण पहले यह सीट सामान्य थी, जिसे अब आरक्षित कर दिया गया. इसमें सीट के आरक्षण पर सवाल उठाए गए हैं.
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याची के अधिवक्ता चन्द्र भूषण पांडेय ने कोर्ट में दलील दी कि वास्तव में उत्तर प्रदेश सरकार ने ट्रिपल टेस्ट के लिए कानून बनाकर यूपी राज्य समर्पित पिछड़ावर्ग आयोग का गठन नहीं किया. बल्कि इसकी जगह महज एक शासनादेश जारी कर आयोग बना दिया गया. ऐसे में इसकी रिपोर्ट का कोई वैधानिक महत्व नहीं है.
याची के अधिवक्ता ने सवाल उठाया कि पहले उत्तर प्रदेश सरकार ने ओबीसी को परिभाषित किया था. लेकिन, आयोग ने ट्रिपल टेस्ट में अन्य पिछड़ा वर्ग को नए सिरे से परिभाषित नहीं किया. जबकि ऐसा किया जाना बेहद जरूरी है. इस लिहाज से आयोग की रिपोर्ट कानून की मंशा के अनुरूप नजर नहीं आती है. हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने इस मामले में उत्तर प्रदेश सरकार समेत अन्य पक्षकारों से चार सप्ताह में जवाबी हलफनामा दाखिल करने को कहा है. इसके बाद दो सप्ताह में याची इसका प्रति उत्तर पेश कर सकेगा. इस तरह मामले की अगली सुनवाई छह सप्ताह बाद होगी.