कुशीनगर: यूपी (UP News) के कुशीनगर के किसानों को हल्दी की खेती रास आने लगी है. देश की नामचीन संस्थाएं मसलन टाटा ट्रस्ट और अजीमजी प्रेमजी फाउंडेशन भी किसानों के बीच खेतीबाड़ी के क्षेत्र में पूर्वांचल में काम करने वाली सस्टेनेबल ह्यूमन डेवलपमेंट एसोसिएशन (एसएचडीए) के जरिए किसानों की मदद कर रहीं हैं. इससे कुछ वर्षों में हल्दी की खेती के रकबे में अच्छी खासी वृद्धि हुई है. विभिन्न प्रजातियों के ट्रायल के बाद सबसे बेहतर उपज वाली प्रजातियों को प्रोत्साहित करने की वजह से हल्दी के प्रति हेक्टेयर उपज और गुणवत्ता में भी सुधार हुआ है.
कुशीनगर में हल्दी की खेती की संभावनाएं
कुशीनगर (Kushinagar News) बिहार से सटा पूर्वांचल का एक जिला है. यह फोर लेन की सड़क से बिहार से लेकर बंगाल और पूर्वोत्तर राज्यों से इसकी बेहतर कनेक्टिविटी है. इंटरनेशनल एयरपोर्ट बन जाने के बाद तो इसकी पहुंच विदेशों तक हो जाएगी. कालानमक की तरह कुशीनगर की हल्दी में भी ब्रांड बनने की पूरी क्षमता है. हल्दी की उपज पर भारत का एकाधिकार है. दुनिया में भारत की हिस्सेदारी करीब 80 फीसदी है. निर्यात में भारत का हिस्सा करीब 60 फीसदी है. अमेरिका, ब्रिटेन, बांग्लादेश हल्दी के प्रमुख निर्यातक देश हैं. रोग प्रतिरोधक गुणों के कारण कोरोना के बाद अन्य देशों खासकर मिडिल ईस्ट में इसकी मांग बढ़ी है. भारत में तमिलनाडु, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, महाराष्ट्र और पूर्वोत्तर के राज्यों में प्रमुख रूप से इसका उत्पादन होता है.
एफपीओ कर रहा खेती, प्रोसेसिंग और मार्केटिंग में मदद
हल्दी (Turmeric) के प्रोत्साहन के लिए सबसे बड़ी चुनौती अधिक उपज देने वाली प्रजाति की थी. परंपरागत रूप से किसान जिस स्थानीय प्रजाति की बोआई करते थे, उसकी प्रति हेक्टेयर उपज मात्र 175 कुंतल थी. एसएचडीए ने किसानों के सहयोग से राजेंद्र सोनिया, राजेंद्र सोनाली, मेवा नंबर-1 और लैकडांग आदि प्रजातियों की खेती की. इसमें प्रति हेक्टेयर सर्वाधिक 450 कुंतल उपज राजेंद्र सोनिया की मिली. अब हल्दी की इसी प्रजाति को प्रोत्साहन दिया जा रहा है. राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान परिषद से सम्बद्ध कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) कुशीनगर के प्रभारी अशोक राय के अनुसार करीब 250 से 300 हेक्टेयर में किसान हल्दी की खेती कर रहे हैं. दुदही ब्लॉक में एक एफपीओ भी हल्दी की खेती से लेकर प्रोसेसिंग और मार्केटिंग के क्षेत्र में काम कर रहा.
दूसरा गुंटूर और इरोड बनने की संभावना
2023 में अजीम प्रेमजी फाउंडेशन की मदद से किसानों को हल्दी की खेती के साथ अन्य मसालों धनिया, जीरा, सौंफ, मंगरैल और अजवाइन की खेती के लिए भी प्रोत्साहन दिया जा रहा है. मसालों की खेती के इस विविधिकरण (डाईवर्फिकेशन) में अजमेर स्थित राष्ट्रीय बीजीय अनुसंधान केंद्र भी मदद कर रहा है. टाटा ट्रस्ट की मदद से रामकोला में सस्टेनेबल ह्यूमन डेवलपमेंट एसोसिएशन भी यही कर रहा है. संस्था के प्रमुख वीएम त्रिपाठी का कहना है कि हल्दी की खेती की कुशीनगर में खासी संभावना है. अगर सरकार इसे कुशीनगर को एक जिला एक उत्पाद घोषित कर दे तो इससे मिलने वाली सुविधाओं से यह हल्दी के उत्पादन के लिहाज से दूसरा गुंटूर और इरोड बन सकता है.
अद्भुत गुण हैं हल्दी में
हल्दी (Turmeric) एंटीबैक्टीरियल, एंटीइंफ्लेमेटरी होने के कारण दर्द, चोट, मोच, दांत के रोगों में फायदेमंद है. इसमें रोग प्रतिरोधक क्षमता होती. यह रक्त शोधक भी होती है. स्किन के लिए यह बेहद फायदेमंद है. इसमें मौजूद मेलोटिन नींद लाने में मददगार है. करक्यूमिन जिसकी वजह से हल्दी का रंग पीला होता है. वह कैंसर कोशिकाओं की वृद्धि को रोकता है. यह एक उष्णकटिबंधीय पौधा है. इसकी खेती कंद के लिए जाती है. खास बात यह है कि बाग में भी इसकी खेती हो सकती है. इसका उपयोग मसाला, रंग-रोगन, दवा व सौंदर्य प्रसाधन के क्षेत्र में होता है. इसके कंद से टर्मेरॉल (तैलीय पदार्थ)का उत्पादन होता है. इसके कंद में उच्च मात्रा में उर्जा (कार्बोहाइड्रेट के रूप में ) व खनिज होते हैं. रसोई में कई तरह के खाद्य पदार्थ बनाने में हल्दी का उपयोग होता है.