Ghosi By-Election: घोसी विधानसभा उपचुनाव के लिये मतदान आज, जानें इस सीट का जातीय समीकरण

घोसी विधानसभा सीट 1957 में अस्तित्व में आयी थी. यहां सबसे ज्यादा चार-चार बार भाकपा और बीजेपी ने चुनाव जीता है. कांग्रेस यहां से तीन बार विजयी रही है. सपा और बसपा ने दो-दो बार यह सीट जीती है. जबकि एक-एक बार जनता दल, लोकदल व जनता पार्टी को यहां जीत मिली है.

By Amit Yadav | September 5, 2023 6:47 AM

लखनऊ: यूपी की घोसी विधानसभा चुनाव का मतदान 5 सितंबर (मंगलवार) के है. यह सीटी बीजेपी और समाजवादी पार्टी दोनों के लिये प्रतिष्ठा का प्रश्न बनी हुई है. कांग्रेस और बसपा ने यहां से प्रत्याशी नहीं उतारा है. कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी सुधाकर सिंह को समर्थन दिया है. जबकि बीएसपी ने अपने वोटर से कहा है कि वह किसी के पक्ष में वोट न करे, यदि मतदान करते भी हैं तो नोटा का बटन दबाएं. इसके चलते घोसी की चुनाव और रोचक हो गया है.

घोसी विधानसभा सीट 1957 में अस्तित्व में आयी थी. यहां सबसे ज्यादा चार-चार बार भाकपा और बीजेपी ने चुनाव जीता है. कांग्रेस यहां से तीन बार विजयी रही है. सपा और बसपा ने दो-दो बार यह सीट जीती है. जबकि एक-एक बार जनता दल, लोकदल व जनता पार्टी को यहां जीत मिली है. इस बार बीजेपी या सपा कौन जीतेगा, इसका परिणाम 8 सितंबर को आएगा.

घोसी सीट का जातीय समीकरण

घोसी विधानसभा में 4.5 लाख से अधिक मतदाता हैं. यहां 90 हजार से अधिक मुस्लिम, लगभग इतने ही दलित मतदाता, 60 हजार यादव, 60 हजार राजभर जाति के मतदाता हैं. इसके अलावा क्षत्रिय, निषाद, मौर्य, भूमिहार मतदाता भी यहां हैं. लेकिन वह जीत-हार को प्रभावित करने की स्थिति में नहीं हैं. माना जा रहा है कि दलित मतदाता जिसके साथ जाएगा, उसके हक में परिणाम होगा.

घोसी सीट पर एक नजर

घोसी सीट पहले आजमगढ़ का हिस्सा थी. 1951 के चुनाव में घोसी पूर्व और घोसी पश्चिम के नाम से दो विधानसभा सीटें थीं. घोसी पूर्व से सोशलिस्ट पार्टी के राम कुमार और पश्चिम में यूपी रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी के झारखंडे राय को जीत हासिल हुई थी.

घोसी सीट अस्तित्व में 1957 के विधानसभा चुनाव में आई. इस बार भी झारखंडे राय यहां से विधायक बनें. इसके बाद 1962 और 1967 में भी वह भाकपा के टिकट पर यहां से जीते. भाकपा प्रत्याशी के रूप में वह लगातार चार बार विधायक बने. इसके बाद 1968 में घोसी लोकसभा सीट से वह सांसद भी बने. विधायकी तरह ही उन्होंने 1971 और 1980 सांसदी भी जीती. हालांकि 1977 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था.

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