लखनऊ: स्तनपान (Breast Feeding) के महत्व के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिये 1991 वर्ल्ड एलायंस फॉर ब्रेस्ट फीडिंग एक्शन (WABA) की स्थापना की गई थी. WABA ने 1992 में यूनिसेफ के साथ मिलकर विश्व स्तनपान सप्ताह (World Breast Feeding Weed) की शुरुआत की थी. तभी से 1 से 7 अगस्त तक विश्व स्तनपान सप्ताह आयोजित किया जाता है. इस वर्ष की थीम “स्तनपान के लिये संकल्प: कामकाजी माता-पिता के लिये विशेष प्रयास” है.
यूनिसेफ यूपी के पोषण अधिकारी डॉ. रवीश शर्मा बताते हैं कि स्तनपान हर बच्चे का अधिकार है. ऑफिस, संस्थानों को इस बारे में जागरूक करने की जरूरत है. जिससे कामकाजी महिलाएं अपने बच्चों को समुचित स्तनपान करा सकें. यदि ऑफिस महिलाओं की जरूरत के हिसाब से सुविधाजनक कार्यस्थल में बदल जाएं और वहां क्रेच, ब्रेस्ट फीडिंग कक्ष आदि की व्यवस्था हो तो महिला कर्मचारियों की कार्यक्षमता में तेजी आ सकती है. स्तनपान को बढ़ावा देने के लिये पिता के भी अवकाश का प्रावधान होना चाहिए. जिससे वह मां का सहयोग कर सके.
वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2020 के अनुसान भारत में 20.33 फीसदी कामकाजी महिलाएं हैं. इनमें से केवल 40 फीसदी कामकाजी माताएं अपने बच्चे को 6 माह तक स्तनपान और 2 साल तक के पूरक भोजन के साथ विशेष रूप से ब्रेस्ट फीडिंग कराती हैं.
कामकाजी महिलाएं जिन्हें बच्चों को छोड़कर घर के बाहर जाना पड़ता है, उनके लिये अपना दूध निकालकर स्टोर करना एक बेहतर विकल्प हो सकता है. एक्सप्रेस ब्रेस्ट मिल्क को कमरे के तापमान पर 4 से 6 घंटे तक और फ्रिज में 24 घंटे तक सुरक्षित रखा जा सकता है. शिशुओं को यह दूध नियमित अंतराल पर परिवार का कोई भी व्यक्ति दे सकता है.
यूनिसेफ उत्तर प्रदेश की पोषण अधिकारी अर्पिता पाल कहती हैं कि स्तनपान से जुड़ी भ्रांतियों को दूर करना बहुत जरूरी है. यह जानना जरूरी है कि शुरू में आने वाला पीला दूध बच्चे को रोगों से लड़ने की ताकत देता है. वह उसके लिये एक टीके का काम करता है. जन्म के तुरंत बाद नवजात शिशु सबसे अधिक सक्रिय होता है.
मां के दूध में बच्चे के लिये पानी की मात्रा उपलब्ध रहती है. इसलिये उन्हें अलग से पानी की जरूरत नहीं होती है. बीमारी के समय बच्चे की भूख कम हो जाती है. जबकि शरीर को पोषण की जरूरत होती है. इसलिये बच्चों को बीमारी के दौरान स्तनपान कराना जरूरी होता है.
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शुरू में आने वाला गाढ़ा पीला दूध गंदा होता है और बच्चे को नुकसान पहुंचाता है
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मां का दूध तीन दिनों के बाद आता है, इस दौरान बच्चे को बाहरी दूध देना चाहिए
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मुहूर्त देखकर बच्चे को स्तनपान शुरू करना चाहिए
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दस्त के दौरान बच्चे को दूध नहीं पिलाना चाहिए
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गर्मी के दिनों में शिशु को अलग से पानी देना चाहिए
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यदि मां या बच्चे में से कोई एक बीमार पड़ जाए तो स्तनापान रोक देना चाहिए. क्योंकि दूध के जिऐ बच्चा बीमार पड़ जाएगा. या बीमारी की स्थिति में बच्चा दूध पचा नहीं पाएगा.
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धात्री माता को ज्यादा पौष्टिक आहार की जरूरत नहीं होती है
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मांस, मछली, अंडा आदि खिलाने से उनका लिवर खराब हो जाएगा. तेल, घी खाने से मां के पेट में गर्मी/जलन होगी. जिसका असर दूध को माध्यम से बच्चे पर पड़ेगा
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शिशु का समुचित विकास
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बौद्धिक स्तर में सुधार
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शिशु और मां के बीच जुड़ाव
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शिशु में दस्त, निमोनिया, कान, गले व अन्य संक्रमण से बचाव
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मां की त्वचा का संपर्क शिशु के तापमान को स्थिर बनाए रखता है.
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रक्तस्राव का खतरा कम हो जाता है
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स्तन, गर्भाशय, अंडाशय के कैंसर का खतरा कम होता है
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आस्टियोपोरोसिस यानी हड्डियों के खोखला होने की संभावना कम होती है
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प्रसव के बाद बढ़े वजन को घटाने में सहायक होता है
यूनिसेफ उत्तर प्रदेश की पोषण अधिकारी अर्पिता पाल बताती हैं कि स्वस्थ मां के गर्भ में ही स्वस्थ बच्चा पलता है. ये बात बच्चे के जन्म के बाद भी लागू होती है. यदि मां खुद को स्वस्थ रखेगी और संपूर्ण पौष्टिक आहार लेगी, तभी बच्चे को भी दूध के माध्यम से सभी पोषक तत्व मिलेंगे. शिशु के पहले छह महीनों के दौरान स्तनपान करने वाली मां को प्रतिदिन अतिरिक्त 600 किलो कैलोरी ऊजा और अतिरिक्त 19 ग्राम प्रोटीन की जरूरत होती है.
6 से 12 महीने की आयु तक के शिशु को स्तनपान कराने वाली मां को अतिरिक्त 520 किलो कैलोरी ऊर्जा और 13 ग्राम प्रोटीन की जरूरत होती है. बच्चे को दूध पिलाने वाली मां को पोषक आहार लेना चाहिए, जिसमें दूध एवं दुग्ध उत्पाद, फल, दाल, हरी पत्तेदार सब्जियां, अंडा, मांस, मछली आदि भोजन में शामिल करना चाहिए.
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) के आंकड़ों के अनुसार यूपी में जन्म के पहले घंटे में स्तनपान की स्थिति पहले से बेहतर हुई है. इसके बावजूद अभी भी बहुत से बच्चे मां के दूध से दूर हैं. एनएफएचएस-5 (2019-21) के अनुसार जन्म के पहले एक घंटे के भीतर स्तनपान करने वाले बच्चों का प्रतिशत 23.9 प्रतिशत है. वहीं पहले छह महीने तक सिर्फ मां का दूध पीने वाले बच्चों का प्रतिशत 59.7 प्रतिशत है.
किसी भी बच्चे के विकास में 1000 दिन का सबसे अधिक महत्व है. इसमें गर्भावस्था के 270 दिन और जन्म से 2 साल तक के 730 दिन शामिल होते हैं. इस दौरान शिशु में पोषण की आवश्यकता सबसे अधिक होती है. इसलिए जरूरी है कि बच्चे के जन्म के पहले घंटे से लेकर अंतिम 1000 दिनों तक उसके पोषण का विशेष ध्यान रखा जाए. यह है नियम-
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जन्म के एक घंटे के अंदर स्तनपान से शुरुआत
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पहले छह माह तक केवल मां का दूध (पानी भी नहीं)
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छह माह के बाद पूरक आहार के साथ कम से कम दो साल तक स्तनपान जारी रखना
यूनिसेफ के राज्य प्रमुख उत्तर प्रदेश डॉ. जकारी एडम का कहना है मां का दूध बच्चे के शारीरिक एवं मानसिक विकास के लिये बहुत महत्वपूर्ण है. इसलिये शिशु को स्तनपान कराने में मां का भरपूर सहयोग करना हम सब की जिम्मेदारी है. अगर मां कामकाजी है और बाहर जाती है, तो उसे शिशु को छह माह तक केवल स्तनपान और उसके बाद भी शिशु को दो वर्ष की आयु तक स्तनपान जारी रखने में पति, परिवार, समाज, कार्यक्षेत्र तक सभी का सहयोग जरूरी है.
केजीएमयू में बना ह्यूमन मिल्क बैंक (Human Milk Bank) नवजात शिशुओं को नया जीवन दे रहा है. इस मिल्क बैंक में केजीएमयू के स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग क्वीन मैरी में आने वाली प्रसूताएं अपने बच्चे की जरूरत से अधिक होने वाले दूध को दान करती हैं. इस दूध को परीक्षण के बाद बच्चे तक सुरक्षित पहुंचाया जाता है. क्वीन मैरी की विशेषज्ञों के अनुसार बच्चे के जन्म के एक घंटे के अंदर मां का दूध देने से उसकी मृत्यु होने की आशंका 22 प्रतिशत कम हो जाती है.
केजीएमयू में समय से पहले जन्म लेने वाले शिशुओं, एनआईसीयू में भर्ती, कम वजन के बच्चों या ऐसे बच्चे जिनकी मां उनको दूध नहीं पिला पाती हैं, उनके लिये विशेष व्यवस्था की गयी है. इसके तहत मार्च 2019 में कंप्रिहेंसिव लेक्टेशन मैनेजमेंट सेंटर (CLMC) खोला गया. इसमें ही प्रदेश का इकलौता ह्यूमन मिल्क बैंक की स्थापना की गयी. इसे ‘धात्री अमृत कलश’ का नाम दिया गया है.
इस ह्यूमन मिल्क बैंक की लैक्टेशन काउंसलर हर नवजात को जन्म के एक घंटे के अंदर मां का दूध पिलाने का प्रयास करती हैं. इस ह्यूमन मिल्क बैंक में अब 1250 से अधिक महिलाओं ने अपना दूध दान किया है. इस दूध को पॉश्चराइज्ड करके माइनक 20 डिग्री सेल्सियस तापमान पर तीन से छह माह सुरक्षित रखा जा सकता है. अब तक 500 लीटर दूध इकठ्ठा किया जा चुका है. इसे 900 बच्चों को दिया गया है.
दूध को बैंक में जमा करने से पहले मां की कई तरह की जांच की जाती हैं. इसमें हेपेटाइटिस बी, एचआईवी, वीडीआरएल जांच शामिल है. यह भी देखा जाता है कि मां शराब, धूम्रपान या एंटी कैंसर दवाओं का सेवन न करती हो. दूध को नवजात को देने से पहले माइ्क्रोबियल काउंट की जांच की जाती है. जब यह काउंट शून्य मिलता है तभी उसे नवजात को दिया जाता है. अब तक इस