BHU : छात्राओं ने ”सिंह द्वार” को 18 घंटे तक रखा जाम, सिर मुंडवा कर छेड़खानी का जताया विरोध

वाराणसी : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बनारस दौरे से ठीक पहले शुरू हुए बीएचयू के छात्राओं का प्रदर्शन दूसरे दिन भी जारी रहा. छात्राओं ने 18 घंटे तक बीएचयू के मुख्य गेट ‘सिंह द्वार’ को जाम रखा. यूपी के एंटी स्कॉवड का पोल खोलते छात्राओं ने छे़ड़खानी के खिलाफ सिर मुंडवा कर विरोध प्रदर्शन किया. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 23, 2017 2:11 PM

वाराणसी : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बनारस दौरे से ठीक पहले शुरू हुए बीएचयू के छात्राओं का प्रदर्शन दूसरे दिन भी जारी रहा. छात्राओं ने 18 घंटे तक बीएचयू के मुख्य गेट ‘सिंह द्वार’ को जाम रखा. यूपी के एंटी स्कॉवड का पोल खोलते छात्राओं ने छे़ड़खानी के खिलाफ सिर मुंडवा कर विरोध प्रदर्शन किया. छात्राओं के हाथ में वीसी गो बैक की तख्तियां थी. छात्राओं ने ‘पहले बचेगी बेटी तो पढ़ेगी बेटी’ के नारे लगाये. गौरतलब है कि पीएम के दौरे से एक दिन पहले ही छेड़छाड़ की घटना ने छात्राओं के गुस्से को इतना भड़का दिया था और वह वह सड़कों पर उतर आयी. छात्राओं के इस विरोध प्रदर्शन से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के काफिले का रास्ता बदलना पड़ा. छेड़छाड़ के आरोपी युवकों की गिरफ्तारी और अपनी सुरक्षा की मांग लेकर को लेकर प्रदर्शनकारी छात्राएं पिछले 18 घंटे से बीएचयू मेन गेट पर डटी हुई है.

गुरूवार को छात्रा के साथ हुई थी छेड़खानी
गुरुवार की शाम बीएफए द्वितीय वर्ष की एक छात्रा दृश्यकला संकाय से हास्टल की ओर जा रही थी. इस दौरान भारत कला भवन के पास कुछ शोहदों ने उससे छेड़खानी की और कपड़े उतारने की कोशिश की. इस घटना से सहमी छात्रा ने बचाने की गुहार लगाई. छात्रा के मुताबिक चंद कदम की दूरी पर बैठे सुरक्षाकर्मियों ने उस पर ध्यान नहीं दिया. छात्रा के जिम्मेदारों से शिकायत करने पर यह कहकर उसे टाल दिया गया कि इतनी शाम को तुम्हें बचकर चलना चाहिए. इस घटना की जानकारी मिलते ही छात्राओं में उबाल आ गया.
क्या है छात्राओं की परेशानी
बीएचयू की छात्राओं का कहना है कि हॉस्टल में इतना ज्यादा प्रतिबंध लगाया जाता है कि हम अपनी बात भी नहीं कह पाते. वार्डेन अपनी दबंगई दिखाती हैं तो प्रॉक्टोरियल बोर्ड अपनी मनमानी हम पर थोप देता है. कई बार तो ऐसा हुआ है कि हम किसी मामले को लेकर कुलपति अथवा डीन आफ स्टूडेंट से मिलने जाने को हुए तो हमें अंदर बैठने की हिदायत मिली. चीफ प्रॉक्टर के नाम लिखे एक पत्र में लड़कियों ने कहा है कि उनके हॉस्टल तक आने-जाने का रास्ता सुरक्षित नहीं है. अक्सर छेड़छाड़ और बदतमीज़ी की घटनाएं होती हैं. उनकी शिकायतों पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता. बीएचयू की छात्राओं के इस संघर्ष को जेएनयू समेत देश भर के कई विश्वविद्यालयों से छात्रों का समर्थन मिल रहा है.
छेड़छाड़ की घटनाओं से नाराज है छात्र
बताया जा रहा है कि जिन रास्तों से होकर छात्राएं गुजरती है. वहां लाइट की सही व्यवस्था नहीं है. ट्यूबलाइट की रोशनी सड़क पर ठीक से नहीं पड़ती, जिसके चलते शोहदे अंधेरे का फायदा उठाकर कभी छेड़खानी तो कभी छिनैती जैसी घटनाओं को अंजाम देकर फरार हो जाते हैं. मुख्य सड़क व चौराहों पर ज्यादातर हैलोजन खराब हैं. फैकेल्टी लाईन में बड़े-बड़े खंभों पर ट्यूबलाइट ही लगी है जिसके चलते इन सड़कों पर पर्याप्त रोशनी नहीं होती.
छात्राओं ने कहा – हॉस्टल में लगाया जाता है अनावश्क पाबंदी
छात्राओं ने बताया कि मां-बाप ने इतनी दूर हमें कमरे में बैठने के लिए नहीं भेजा है. हॉस्टलों में हमारे साथ तानाशाही रवैया अपनाया जाता है. वार्डेन जेलर की तरह पेश आती हैं. पहनावे पर तो पाबंदी है ही, शाम छह बजे के बाद हॉस्टल से बाहर नहीं निकलने दिया जाता है. छात्राओं ने कहा प्रबंधन बेहतर सुरक्षा देने की बजाय छात्राओं पर ही पाबंदी थोपती है.


पत्रकार अभिषेक श्रीवास्तव ने फेसबुक में बीएचयू से जुड़े अनुभव को किया साझा
बीएचयू यानी महामना की बगिया बदनाम हो रही है, कुछ लोगों को यह चिंता सता रही है. क्‍यों? मैं पांचवीं कक्षा में जब बिड़ला के ग्राउंड में फुटबॉल टूर्नामेंट खेलने गया था, तब पहली बार बीएचयू से परिचय हुआ. उस वक्‍त बिड़ला-ब्रोचा छात्रावासों के बाहर तार पर औरतों के साड़ी-साया सूखा करते थे. इसे कभी बदनामी नहीं समझा गया. फिर एक कुख्‍यात घटना हुई. किसी लड़की को लाकर हफ्ते भर बंद कर के छात्रावास में बलात्‍कार किया गया. यह भी बदनामी नहीं थी. फिर कुछ साल बाद गोली चली. दो छात्र मारे गए. उस वक्‍त मैं विवेकानंद में अवैध रूप से रहकर तैयारी करता था. संजोग से पुलिस की रेड पड़ी तो बिड़ला में था.

भागने के प्रयास में लाठी पड़ी तो छत से कूदने में पैर गया. महामना की बगिया तब भी हरी रही. फिर किसी छात्र ने किसी को बिड़ला-ब्रोचा के चौराहे पर ईंटों से कूंच कर मार डाला. बीएचयू आबाद रहा. मारने वाले छात्र को पुलिस ने घेर कर एनकाउंटर कर दिया. तब भी किसी को बदनामी फील नहीं हुई. फिर लड़कों ने दांय-दांय बम मारा. जीप फूंक दी. कोई बदनाम नहीं हुआ. फिर आए हरिगौतम. लिंगदोह का ज़माना आया. अनुशासन आया.छात्रसंघ गया। लगा कि बगिया फलेगी-फूलेगी, लेकिन होली और वसंत पंचमी पर सारा अश्‍लील कर्म यथावत रहा. एक बार इंटर-युनिवर्सिटी खेलों की मेजबानी मिली. पंजाबी युनिवर्सिटी की लड़कियां मेहमान बनकर आईं. हिंदू विश्‍वविद्यालय के माहौल से बेखबर एक लड़की तड़के ब्रोचा पहुंच गई अपने किसी साथी से मिलने. पूरा हॉस्‍टल ट्रोल बन गया. फिजि़कल ट्रोल.

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