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BHU को लेकर सोशल मीडिया पर बवाल – ”अबकी बार, बेटी पर वार ”

बीएचयू में छेड़खानी का विरोध कर रहे छात्राओं पर लाठी चार्ज की घटना के बाद सोशल मीडिया पर बीएचय़ू टॉप ट्रेंड पर रहा. बीएचयू की घटना ने रोहित वेमुला, जेएनयू मामला की याद दिला दी. कई लोगों ने सोशल मीडिया पर सरकार की कार्रवाई की कड़ी निंदा की. वहीं कई लोगों ने विश्वविद्यालय प्रशासन व […]

बीएचयू में छेड़खानी का विरोध कर रहे छात्राओं पर लाठी चार्ज की घटना के बाद सोशल मीडिया पर बीएचय़ू टॉप ट्रेंड पर रहा. बीएचयू की घटना ने रोहित वेमुला, जेएनयू मामला की याद दिला दी. कई लोगों ने सोशल मीडिया पर सरकार की कार्रवाई की कड़ी निंदा की. वहीं कई लोगों ने विश्वविद्यालय प्रशासन व सरकार को लेकर सहानूभूति भी जतायी. देश के कोने – कोने से लोग ट्विटर के जरिये सवाल उठाने लगे। #अबकी_बार_बेटी_पर_वार और #unsafeBHU हैशटैग टॉप लिस्ट में ट्रेंड कर रहा है. 50 हजार से अधिक ट्वीट किए गए हैं. विश्वविद्यालय में सुरक्षा की मांग करती लड़कियों पर पुलिस लाठीचार्ज को लोग ‘बेटी पर वार’ बता रहे हैं.

बीएचयू कांड पर वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार ने कहा
बावन घंटे तक धरना चला और वीसी बात नहीं कर सके. प्रोक्टोरियल बोर्ड के दफ्तर के सामने किसी लड़की के कपड़े फाड़ने के प्रयास हुए, दबोचा गया, क्या इसे कोई भी समाज इसलिए सहन करेगा क्योंकि वे ‘तेज’ हो गई हैं ! शर्मनाक है। कमाल ख़ान से लड़कियों ने कहा कि क्या हमें कोई भी छू सकता है, कहीं भी दबोच सकता है? इन सवालों को टालने की जगह के लिए राजनीति बताना और भी शर्मनाक है. आप जाँच करते, बात करते. लाठीचार्ज वो भी लड़कियों पर? क्या हिन्दू मुस्लिम टापिक पर इतना भरोसा हो गया है कि आप समाज को कैसे भी रौंदते चलेंगे और लोग सहन कर लेंगे?
ये नारा किस लिए है? बेटी बचाओ बेटी बढ़ाओ. संसद विधान सभा में महिला आरक्षण की याद आई है, इसलिए नहीं कि देना था, इसलिए कि आर्थिक बर्बादी से ध्यान हटाने के लिए ये मुद्दा काम आ सकता है. विधानसभा और लोकसभा चुनाव साथ कराने का मुद्दा भी यही है. ध्यान हटाने को लिए बड़ा मुद्दा लाओ. तो इस लिहाज़ से भी बीएचयू की लड़कियाँ सही काम कर रही हैं. वो छेड़खानी के ख़िलाफ़ आवाज़ उठा कर बता रही है कि रायसीना हिल्स सिर्फ दिल्ली में नहीं है. वो कहीं भी हो सकता है.
निराला विदेसिया लिखते हैं – बीएचयू में पहली बार छात्राएं संगठित तरीके से बाहर आयी है
बुरा तो बहुत हुआ. ज्यादातर बुरा ही बुरा हुआ. घटना और उसके बाद लाठीचार्ज वगैरह, सब शर्मनाक और बुरा. इस बीच अच्छी बात एक ही हुई कि पहली बार लड़कियां सामने आयीं और आर्गेनाइज हुईं. बीएचयू में इसका अभाव रहा है. लड़कियां अलग से आंदोलन वगैरह कम करती हैं या करती रही हैं तो कैंपस कॉर्नर से लेकर बनारस के चंद अखबारो में सिंगल —डबल कॉलम में सिमटते रही हैं. अक्सर या अमूमन हर मामले में कैंपस के पुरूष राजनीतिबाज फसल काटकर अपनी राजनीति चमकाते रहे हैं. लड़कियां उनकी राजनीति चमकाने का हथियार—औजार ही बनते रही है. अब आज संडे है. शाम होते—होते सोशल मीडिया से यह मसला गायब होगा तो जो एक बड़ी बात रह जानी है और जिसका असर आनेवाले दिनों में दिखता रहेगा वह होगा लड़कियों का खुलकर सामने आना, एकजुट होना और डंके की चोट पर अपनी बात रखते हुए इस बार आवाज को दूर—दूर तक पहुंचा देना.
ट्वीटर पर भी लोगों ने जतायी प्रतिक्रिया
कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने कहा – हम हिन्दू तो नवरात्रि में कन्या भोज कराते हैं उनके पैर छूते हैं दान देते है यह हिंदुओं का धर्म है और परम्परा है. आप नेता व कवि कुमार विश्वास ने कहा कि ये रात बहुत भारी पड़ेगी सत्ता के अहंकार को,नवरात्र में दुर्गा की प्रतिरूप बेटियों पर सरकारी लाठियाँ?सांसद महोदय अपनी वापसी की घंटियाँ सुनो.

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