लव, सेक्स, धोखा और फिर…
-रचना प्रियदर्शिनी- उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के बिलंदपुर इलाके में एक लड़की किराये के मकान में अकेले रहती थी. वह प्रेग्नेंट थी. एक दिन वह मृत पायी गयी. पुलिस को खून से लथपथ लाश उसकी कमरे में पड़ी मिली. उसका बच्चा भी मर चुका था. लड़की की लाश के पास में एक मोबाइल पड़ा […]
-रचना प्रियदर्शिनी-
उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के बिलंदपुर इलाके में एक लड़की किराये के मकान में अकेले रहती थी. वह प्रेग्नेंट थी. एक दिन वह मृत पायी गयी. पुलिस को खून से लथपथ लाश उसकी कमरे में पड़ी मिली. उसका बच्चा भी मर चुका था. लड़की की लाश के पास में एक मोबाइल पड़ा था, जिस पर बच्चा पैदा करने का यानी डिलीवरी का वीडियो था. पुलिस को यह समझते देर नहीं लगी कि लड़की यूट्यूब पर वीडियो देखकर बच्चा पैदा करने की कोशिश कर रही थी, पर आखिर क्यों…?
पुलिस ने जब लड़की के घरवालों से संपर्क किया, तो पता चला लड़की अविवाहित थी. उसने एमए कर रखा था. वह एक लड़के के प्रेम जाल में फंस कर वह प्रेग्नेंट हो गयी. लड़के ने जिम्मेदारी लेना स्वीकार नहीं दिया. मां-बाप ने जब लड़की को अबॉर्शन करवाने कहा, तो वह तैयार नहीं हुई. ऐसे में बदनामी के डर से मां-बाप ने साथ रखने से मना कर दिया. इसी वजह से वह लड़की गोरखपुर में अकेले किराये का मकान लेकर रह रही थी और शायद इसी वजह से उसने इतना खतरनाक कदम उठाया.
कभी सोचा है आपने कि आखिर यह स्थिति आती ही क्यों है कि पढ़ी-लिखी और समझदार होने के बावजूद किसी लड़की को इस तरह का खतरनाक कदम उठाना पड़ता है? क्या ऐसे मामलों में दोष अकेले सिर्फ लड़की का होता है… नहीं न? फिर अकेले लड़की को ही सजा क्यों भुगतनी पड़ती है?यहां ऊपर जिस केस का जिक्र किया गया है, उस मामले में लड़की अविवाहित थी और हमारे ‘सभ्य’ भारतीय समाज में किसी अविवाहित लड़की का प्रेग्नेंट होना मतलब पूरे परिवार के माथे पर कलंक का टीका लग जाना… पूरा घर बर्बाद हो जाना….. उस घर की बाकी बेटियों की शादियां रुक जाना. कारण, हमारे यहां लड़की की योनि और कोख में ही तो परिवार की इज्जत सिमटी होती है! फिर आखिर कैसे वह लड़की अपने पैरेंट्स से कहती कि वह किसी लड़के से प्यार करती है और उसने उसके साथ सेक्स किया है, क्योंकि समाज तो बाद में उसके चरित्र पर अंगुलियां उठाता, पहले तो उसका परिवार ही ‘इज्जत’ के नाम पर उसके कोख की बलि चढ़ा देता. शायद इसी डर से वह अपने मां-बाप तक को अपनी प्रेग्नेंसी के बारे में बताने की हिम्मत न सकी और वक्त पड़ने पर अपनी जान से खेल गयी.
पिछले एक दशक में विश्व स्वास्थ्य संगठन और न्यूयॉर्क के गुटमेकर इंस्टिट्यूट द्वारा किये गये अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर में हर साल करीब 5.5 करोड़ महिलाएं गर्भपात करवाती हैं, जिनमें से लगभग आधे मामले असुरक्षित गर्भपात के होते हैं. इसकी वजह से प्रतिवर्ष करीब 47,000 महिलाओं की मौत हो जाती है. भारत में एनिमिया और कुपोषण के बाद महिलाओं की मौत का तीसरा सबसे बड़ा कारण असुरक्षित गर्भपात है. यहां प्रतिवर्ष 56 फीसदी असुरक्षित गर्भपात होते हैं अर्थात इस वजह से हर दिन करीब 10 महिलाओं की मौत होती है. यह आंकड़ा कुल मातृ मृत्यु का 8.5 फीसदी है.
पुरुष हो या स्त्री- एक उम्र के बाद ‘सेक्स’ की ख्वाहिश हर किसी को होती है. प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक मैस्लो के अनुसार- भूख, प्यास और नींद के अलावा सेक्स भी इंसान की प्रमुख शारीरिक जरूरतों में से एक है, लेकिन विडंबना यह है कि बहुत कम ही लोग इसे जाहिर करने की हिम्मत जुटा पाते हैं. कारण, ऐसा करते ही भारत के तथाकथित ‘सभ्य समाज’ द्वारा उनका कैरेक्टर सर्टिफिकेट जारी कर दिया जाता है. उसके बाद किसी लड़की की शादी तो छोड़िए, लड़कों का शादी-ब्याह भी मुश्किल हो जाता है. अब इसे भारतीय जनमानस के बुद्धि की बलिहारी कहें या फिर उनकी संकुचित सोच, हम अजंता-ऐलोरा, खजुराहो, कोणार्क, हंपी जैसे अपनी धरोहरों पर तो गर्व करते हैं, लेकिन उन पर उकेरे गये भित्तिचित्र हमें जो संदेश देते हैं, उनके बारे में बात करने से भी कतराते हैं.गौरतलब है कि भारतीय संस्कृति में प्रेम तथा यौन क्रिया हमेशा से ही हमारी ऐतिहासिक कला का भाग रहे हैं. हमारे प्राचीन ऐतिहासिक धरोहरों, इमारतों, साहित्यों आदि में इससे संबंधित कलात्मक अभिव्यक्तियों का वृहद वर्णन एवं चित्रण देखने को मिलता है. महान भारतीय ऋषि वात्सायन ने तोतीसरी सदी ईसा पूर्व में ही कामसूत्र लिख डाला था और इसमें उन्होंने केवल पुरुषों के लिए नहीं, बल्कि महिलाओं के लिए यौन सुख को भी समान रूप से महत्वपूर्ण माना है. यौन शिक्षा के दृष्टिकोण से ‘कामसूत्र’ प्राचीन उन्नत सेक्स-मैनुअल कहा जा सकता है.
भारत में ‘सेक्स’ आज भी एक बहुत बड़ा टैबू है. इसको लेकर इस हिचकिचाहट की वजह हमारा सामाजिक और सांस्कृतिक ढांचा है. भारतीय परिवारों में हमेशा से ही बच्चों को असेक्शुल मान कर बड़ा किया जाता है. माता-पिता ऐसा बर्ताव करते हैं जैसे उनके बच्चों में कोई सेक्शुअल फीलिंग है ही नहीं. सेक्स तो छोड़िए, हम तो अपने घरों में पीरियड्स, ब्रा और पैंटी तक के बारे खुल कर बात नहीं कर पाते! उससे भी मजेदार बात यह है कि एक दिन वही मां-बाप अपने बेटे-बेटियों की शादी किसी अजनबी से कर देते हैं और फिर उनसे उम्मीद करते हैं कि साल पूरे होते-होते वे उन्हें नाती-पोतों को खेलाने का मौका दे दें, मानो सेक्स ज्ञान में तो उनके बच्चे पारंगत होकर पैदा हुए है. ओह! सच में कितना हास्याप्रद है यह सब.
सेक्स को लेकर हमारी सोच तब तक नहीं बदलेगी, जब तक हम यह स्वीकार नहीं करेंगे कि सेक्स कोई ‘पाप’ या ‘शर्मिंदगी’ नहीं, बल्कि पूर्ण रूप से एक जैविक प्रक्रिया है. अभिभावकों को क्या लगता है कि अगर वे नहीं बतायेंगे, तो उनके बच्चों को सेक्स के बारे में पता नहीं चलेगा. अरे जनाब, हम आज 5जी स्पीडवाले इंटरनेट के जमाने में जी रहे हैं, जहां हर तरह जानकारी अंगुली की एक क्लिक पर मौजूद है. अगर आप नहीं बतायेंगे, तो भी वे कहीं-न-कहीं से तो यह ज्ञान प्राप्त कर ही लेंगे, भले ही यह अधकचरा ज्ञान सही. फिर उनका हश्र भी संभवत: ऐसा ही होगा, जैसा कि इस लड़की का हुआ.गलत जानकारी और भावनात्मक सपोर्ट के अभाव में बच्चे और किशोर अक्सर अकेले पड़ जाते हैं. नतीजा वे डिप्रेशन, अपराध बोध जैसे तमाम नकारात्मक भावनाओं से घिर जाते हैं. उनमें अनचाही प्रेगनेंसी, यौन शोषण और यौन संक्रामक बीमारियों का खतरा हमेशा बना रहता है. अत: बेहद जरूरी है कि हम इस बारे में अपने बच्चों से खुल कर बात करें. सेक्स एजुकेशन की शुरुआत सबसे पहले घर से ही होनी चाहिए.
बच्चों को ‘गुड टच-बैड टच’, प्यूबर्टी के दौरान होनेवाले शारीरिक बदलावों, मासिक धर्म, सेक्स और सुरक्षित सेक्स के बारे में जानकारी दें. और हां, यह बात केवल लड़कियों के लिए ही नहीं, बल्कि लड़कों के भी समान रूप से जरूरी है. उन दोनों को एक साथ इस बातचीत में शामिल किया जाना चाहिए. उन्हें यह भी बताएं कि सेक्स सिर्फ पुरुष और महिला के बीच ही नहीं होता. उन्हें अलग-अलग सेक्शुअलिटी और जेंडर डाइवर्सिटी के बारे में भी जानकारी दें. साथ ही, सेक्स एजुकेशन सुरक्षा, सहमति, सुरक्षित यौन संबंध, इमर्जेंसी पिल्स और उनके साइड इफेक्ट्स आदि के बारे में भी बताएं, ताकि वे यौन संक्रामक बीमारियों से भी बचें. स्कूलों में भी सेक्स एजुकेशन या रिप्रोडक्टिव सिस्टम जैसे चैप्टर्स पढ़ाने के लिए टीचर्स को विशेष प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए, ताकि वे इन विषयों पर बच्चों को समझाते समय असहजता महसूस न करें.बदलते वक्त के साथ जिस तेजी से सूचनाओं तक हमारी पहुंच संभव हो रही है, ऐसे में सेक्स एजुकेशन इस बदलते दौर की जरूरत बन गयी है.