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उर्दू पढ़ा रहे हिंदू शिक्षक बोले- भाषा किसी धर्म की नहीं

बीएचयू में मुस्लिम शिक्षक की नियुक्ति के समर्थन और विरोध, दोनों में खड़े हुए लोग बीएचयू में संस्कृत प्रोफेसर डॉ फिरोज खान की नियुक्ति को लेकर शुरू हुए विरोध के बाद इस विरोध प्रदर्शन के खिलाफ कई लोग उठ खड़े हुए हैं. उर्दू पढ़ानेवाले हिंदू शिक्षक और संस्कृत पढ़ा रहे मुस्लिम टीचरों का कहना है […]

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बीएचयू में मुस्लिम शिक्षक की नियुक्ति के समर्थन और विरोध, दोनों में खड़े हुए लोग

बीएचयू में संस्कृत प्रोफेसर डॉ फिरोज खान की नियुक्ति को लेकर शुरू हुए विरोध के बाद इस विरोध प्रदर्शन के खिलाफ कई लोग उठ खड़े हुए हैं. उर्दू पढ़ानेवाले हिंदू शिक्षक और संस्कृत पढ़ा रहे मुस्लिम टीचरों का कहना है कि जाति या धर्म के आधार पर विरोध जायज नहीं है और लोग उसे इस आधार पर न बांटें.

लखनऊ के एक इंटर कॉलेज में उर्दू पढ़ा रहे डॉ हरि प्रकाश श्रीवास्तव का कहना है कि भाषा चाहे संस्कृत हो या उर्दू, वह किसी मजहब की नहीं होती है. उसे कोई भी पढ़ सकता है और दूसरों को पढ़ा सकता है. डॉ संजय कुमार इलाहाबाद विवि में उर्दू के असिस्टेंट प्रोफेसर हैं. उन्होंने फिरोज विवाद पर अपनी प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए कहा कि विविधता ही हमारी पहचान है.

दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विवि के संस्कृत एवं प्राकृत भाषा के विभाग के प्रोफेसर असहाब ने कहा कि जिसका चयन हुआ है, उसकी विद्वता व शिक्षण शैली के आधार पर मूल्यांकन करें. जाति या धर्म के आधार पर नहीं. कहा कि उन्होंने भी गोरखपुर विवि में संस्कृत पढ़ायी. विभागाध्यक्ष भी बने, मगर कभी विरोध नहीं हुआ. इस बीच, वरिष्ठ भाजपा नेता और राज्य सभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी खुलकर फिरोज खान के समर्थन में आ गये हैं.

उन्होंने छात्रों के विरोध-प्रदर्शन पर सवाल उठाए हैं. सांसद ने कहा कि बीएचयू के कुछ छात्र मुस्लिमों को संस्कृत पढ़ाने का विरोध क्यों कर रहे हैं जबकि उन्हें एक नियत प्रक्रिया के तहत चुना गया. गुरुवार को एक ट्वीट में स्वामी ने कहा कि भारत के मुस्लिमों का डीएनए भी हिंदुओं के पूर्वजों जैसा है. अगर कुछ रेगुलेशन हैं तो इसे बदल लें.

‘भाषा चाहे संस्कृत हो या उर्दू, कोई भी पढ़ सकता है, पढ़ा सकता है’

बीएचयू में कई हिंदू प्रोफेसर पढ़ा रहे हैं उर्दू, डॉ ऋषि शर्मा पिछले 11 सालों से बीएचयू में उर्दू पढ़ा रहे हैं

डॉ नाहिद आबिदी काशी विद्यापीठ में संस्कृत पढ़ाती हैं. संस्कृत में अपने योगदान के लिए उन्हें साल 2014 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया था.

महामना यदि जीवित होते, तो नियुक्ति का करते समर्थन : चांसलर

इस बीच, बीएचयू के कुलपति और पूर्व न्यायमूर्ति गिरिधर मालवीय भी फिरोज खान के समर्थन में आ गये हैं. गिरिधर मालवीय ने कहा कि महामना (बीएचयू के संस्थापक, मदन मोहन मालवीय) की व्यापक सोच थी. यदि वह जीवित होते तो निश्चित रूप से इस नियुक्ति का समर्थन करते.

संस्कृत साहित्य पढ़ाएंगे प्रोफेसर फिरोज : बीएचयू

बीएचयू प्रशासन ने गुरुवार को साफ कर दिया कि प्रोफेसर फिरोज कर्मकांड नहीं संस्कृत साहित्य पढ़ाएंगे. बीएचयू प्रशासन की तरफ से बताया गया कि धर्म विज्ञान संकाय के सहित्य विभाग में फिरोज खान का सहायक प्रोफेसर के रूप में चयन हुआ है. बता दें कि प्रदर्शन कर रहे बीएचयू के छात्रों का कहना है कि किसी मुस्लिम प्रोफेसर से हिंदू धर्म के कर्मकांड को सीखना महामना की मंशा को चोटिल करना है.

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