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सोनिया गांधी के वाराणसी में रोड शो के राजनीतिक मायने

वाराणसी : वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र वाराणसी. उत्तर प्रदेश के साथ देश की धार्मिक नगरी. जी हां, वाराणसी, जिसके रास्ते लोग बैकुंठ यानी स्वर्ग जाने का रास्ता तलाशते हैं. कुछ इसी तरह वर्तमान सियासत के सभी रास्ते इन दिनों वाराणसी से होकर गुजरते हैं. कहते हैं कि वाराणसी की सुबह सबसे ज्यादा […]

वाराणसी : वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र वाराणसी. उत्तर प्रदेश के साथ देश की धार्मिक नगरी. जी हां, वाराणसी, जिसके रास्ते लोग बैकुंठ यानी स्वर्ग जाने का रास्ता तलाशते हैं. कुछ इसी तरह वर्तमान सियासत के सभी रास्ते इन दिनों वाराणसी से होकर गुजरते हैं. कहते हैं कि वाराणसी की सुबह सबसे ज्यादा सुंदर होती है. राजनीतिक दल इन दिनों इसी वाराणसी में सत्ताकेलिये सकारात्मक सुबह की तलाश कर रहे हैं. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिये मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी से आज कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी ने अपनी पार्टी का बिगुल फूंका. अपने रोड शो की शुरुआत उन्होंने बाबा साहब अंबेडकर की प्रतिमा पर फूल चढ़ाकर किया और उन्हें श्रद्धांजलि दी. स्वाभाविक है सोनिया ने यूपी के सियासत की पहली सीढ़ी को बाबा अंबेडकर के जरिये तय करने की शुरुआत कर दी.

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सोनिया गांधी के वाराणसी में रोड शो के राजनीतिक मायने 3



रोड शो के सियासी मायने

उत्तर प्रदेश के चुनावी गणित में जातिय समीकरण अहम सच की तरह राजनीतिक दलों के लिये बेताल साबित हुए हैं. जातिगत समीकरण राजनीतिक दलों के पीठ पर चिपके हुए हैं. शायद इसीलिए राजनीतिक पंडितोंने सोनिया के इस शो को कुछ इस तरह देखा. उनकी दृष्टि से कहें तो सोनिया गांधी आगामी चुनावों में अगड़ी जातियों,जैन मतदाताओं और उदारवादी हिंदुओंके बीच अपनी पैठ बनाने की फिराक में हैं. वहीं कुछ राजनीतिक विशेषज्ञ कहते हैं कि ऐसा नहीं है सोनिया गांधी बीजेपी से अगल हुए ऊंची जाती के मतदाताओं को अपने पाले में करने की फिराक में हैं. आज के रोड शो में यह साबित भी हो गया.

हजारों समर्थकों ने लिया हिस्सा

सर्किट हाउस से इंग्लिशिया लाइन तक आठ किलोमीटर लंबे रोडशो में कांग्रेस के हजारों समर्थकों और कार्यकर्ताओं ने हिस्सा लिया. सोनिया ने अंबेडकर की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर मार्च की शुरुआत की और इस पवित्र शहर की गलियों और संकरे मार्गों से सफर तय किया. सोनिया शुरू में कार में सफर कर रही थीं लेकिन बाद में एक वाहन में सवार हुईं जिसकी छत खुली हुई थी और उन्होंने मोदी सरकार के खिलाफ नारे लगाती हुई जनता का हाथ हिलाकर अभिवादन किया.

अल्पसंख्यकों की निगाहों में बसी सोनिया

सोनिया गांधी ने अपने पारंपरिक वोट बैंक वाले मतदाताओं को लुभाना भी नहीं भूलीं.सोनिया मुस्लिम महिलाओं के समूह सहित समर्थकों का अभिवादन स्वीकार करने के लिए कई बार वाहन से बाहर निकलीं. रोडशो कई इलाके से गुजरा और सोनिया और उनके काफिले पर आसपास के भवनों से गुलाब के फूल की वर्षा की गयी. यह गुलाब के फूलों की वर्षा यूपी में होने वाले विधानसभा चुनाव के गणित के बारे में बहुत कुछ कह रहे थे. मतदाताओं का उत्साह बहुत कुछ कह रहा था.

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27 साल यूपी बेहाल पर फोकस

कई मिनी ट्रक पर पोस्टर पर नारे लगे थे ‘27 साल, यूपी बेहाल’. सैकडों कार्यकर्ताओं के हाथों में यही नारे लिखी हुई तख्तियां थीं. पार्टी के मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार शीला दीक्षित, कांग्रेस महासचिव गुलाम नबी आजाद, राज्य पार्टी के प्रमुख राजबब्बर और वरिष्ठ कांग्रेस नेता प्रमोद तिवारी तथा संजय सिंह भी सोनिया के साथ थे. इससे पहले मोदी के संसदीय क्षेत्र में दिन भर के कार्यक्रम के लिए यहां सोनिया पहुंचीं और हवाई अड्डे से शहर के मध्य तक सैकडों मोटरसाकिल सवार कार्यकर्ताओं ने पार्टी का झंडा लहराकर उनका स्वागत किया.

मोदी के पीएम बनने के बाद सोनिया की पहली वाराणसी यात्रा

कांग्रेस ने वाराणसी में विकास की कमी को उजागर करने के लिए ‘‘दर्द ए बनारस’ अभियान की शुरुआत की है जहां से मोदी सांसद हैं. कांग्रेस 27 वर्षों से उत्तरप्रदेश की सत्ता से बाहर है और वह ‘27 साल, यूपी बेहाल’ के नारे के साथ दर्शा रही है कि राज्य की स्थिति बद से बदतर हो गई है. पूर्वी उत्तरप्रदेश में वाराणसी मुख्य स्थान है. राज्य के 403 विधानसभा क्षेत्रों में से 160 पूर्वी उत्तरप्रदेश में पड़ते हैं. वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने केवल दो सीटें — अमेठी और रायबरेली पर जीत दर्ज की थी जबकि भाजपा और इसकी सहयोगी अपना दल को 80 में से 73 सीटों पर जीत हासिल हुई थी.

काम कर रही है प्रशांत किशोर की रणनीति

उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव का असर 2019 के लोकसभा चुनाव पर भी होगा. विधानसभा चुनावों में सहायता के लिए यूपीसीसी ने चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर का सहयोग लिया है. किशोर ने लोकसभा चुनावों में मोदी के लिए चुनावी रणनीति बनाई थी और फिर बिहार विधानसभा चुनावों में उन्होंने नीतीश कुमार के लिए रणनीति बनाई.





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