!!वाराणसी से अंजनी कुमार सिंह!!
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पूर्वांचल की लड़ाई का केंद्र बना वाराणसी, हर दल ने झोंकी ताकत, काशी के रण में सभी दलों की कड़ी परीक्षा
!!वाराणसी से अंजनी कुमार सिंह!! दशाश्वमेध घाट पर पिछले 25 वर्षों से नाव चला रहे दीनानाथ बताते हैं कि इस घाट की जो साफ-सफाई दिख रही है, वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चुनाव जीतने के बाद संभव हो पाया है. घाट के प्रवेश द्धार पर दो डस्टबीन रखे हुए हैं, जिसका प्रयोग कूड़ा-कचरा डालने में […]
दशाश्वमेध घाट पर पिछले 25 वर्षों से नाव चला रहे दीनानाथ बताते हैं कि इस घाट की जो साफ-सफाई दिख रही है, वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चुनाव जीतने के बाद संभव हो पाया है. घाट के प्रवेश द्धार पर दो डस्टबीन रखे हुए हैं, जिसका प्रयोग कूड़ा-कचरा डालने में किया जा रहा है. घाट की सीढ़ियों की सफाई टयूबवेल के पानी से किया जा रहा है. गंगा में जो फूल और मालाएं चढायी जा रही हैं, उसे भी डस्टबीन में डाल दिया जा रहा है. पिछले 25 सालों से इस घाट पर नाव चला रहे राजीव सोनकर बताते हैं कि बनारस के लिए जितना संभव हुआ, उतना मोदी जी ने किया है. निश्चिचत रूप से और भी बहुत कुछ करने की जरूरत है, लेकिन इसके लिए सिर्फ प्रधानमंत्री को ही क्यों जिम्मेवार ठहराया जा रहा है. चुनाव की बात करने पर सिविल सर्विस की तैयारी कर रहीं प्रीति कहती हैं, मोदी जी को एक बार यूपी में चांस मिलना चाहिए. क्योंकि सपा, बसपा और कांग्रेस को लोगों ने देख लिया है.
यही हाल मणिकर्णिका घाट का भी है. यहां पर पिछले 16 साल से झाल-मूढ़ी बेचने वाले पलटन गिरि बताते हैं कि इन घाटों पर साफ-सफाई का काम हुआ है. बाहर निकलने पर रिजवान कैसर बताते हैं कि जिस उम्मीद से मोदी को बनारस की जनता ने वोट दिया था, उन उम्मीदों पर मोदी अब तक खरे नहीं उतरे हैं. इसलिए वह बनारस के सड़कों और गलियों में घूम रहे हैं. पूरे क्षेत्र में कास्ट और संप्रदाय को भुनाने में हर पार्टी जुटी है. हालांकि किसको कितना फायदा मिलेगा, यह तो वक्त ही बतायेगा.
बनारस को समझना मुश्किल है. उसकी अपनी रवानगी, अपना बांकेपन और मिजाज है. घाटों का शहर, गलियों का शहर, मंदिरों का शहर, ज्ञान और ज्ञानियों का शहर, पंडा और पुजारियों का शहर. संत-महात्माओं का शहर, सुबह और शाम का आनंद लेने वालों का शहर. कई बड़े कवि, लेखक, संज्ञीतज्ञाें की निवासस्थली है बनारस. प्रसिद्ध अमेरिकी लेखक मार्क ट्वेन ने इस शहर के विषय में लिखा है, बनारस इतिहास से भी पुरातन है, परंपराओं से पुराना है. किंवदंतियों से भी प्राचीन है और जब इन सबको एकत्र कर दें, तो उस संग्रह से भी दोगुना प्राचीन है. .
राजनीतिक दृष्टि से बेहद सचेतन और जीवंत इस शहर में कई तरह के बदलाव दिखते हैं. सड़कों को दुरुस्त करने से लेकर केबल और बिजली के तार को अंडरग्राउंड किया जा रहा है. सड़कों के किनारे नाली बनायी जा रही है. ट्रैफिक लाइट लग रही है. मेट्रो को लेकर उम्मीद जगी है. फिर भी यहां बुनियादी सुविधाओें का अभाव दिखता है. धार्मिक और सांस्कृतिक राजधानी होने के बाद भी यह शहर उत्तर प्रदेश के कई शहरों के मुकाबले काफी पीछे है. इससे साफ लगता है कि काशी को क्योटो बनने में अभी लंबा वक्त लगेगा.
बीएचयू के प्रोफसर डॉ डीपी वर्मा बताते हैं, सन 1979 से काशी में बहत कुछ बदला है. पूरे पूर्वांचल में कास्ट एक बड़ा फैक्टर है, लेकिन इस बार काशी में इससे अलग भी बहुत कुछ है. पहली बार देश के प्रधानमंत्री यहां की जनता से राज्य के विकास के लिए वोट मांग रहे हैं. लोगों में उनके अपील के प्रति सहानुभूति और राज्य के विकास को लेकर ललक दिख रही है. मोदी के संसदीय क्षेत्र होने के कारण उनकी साख दांव पर लगी है, वहीं इसका असर पूरे पूर्वांचल पर भी पड़ना तय है, इसीलिए सभी दल इस गढ़ को फतह करने में जुटे हैं. दलों को जनता के कड़े इम्तिहान से गुजरना पड़ रहा है, क्योंकि लखनऊ का रास्ता बनारस से होकर ही जाता है.
वाराणसी दक्षिण
श्यामदेव राय चौधरी का टिकट काट डॉ नीलकंठ तिवारी को भाजपा ने प्रत्याशी बनाया है. चौधरी इससे नाराज हैं. पीएम मोदी ने शनिवार को उनसे मुलाकात भी की थी. सपा-कांग्रेस गंठबंधन के उम्मीदवार पूर्व सांसद डॉ राजेश मिश्र तथा बसपा के राकेश त्रिपाठी मुसलिम मतों और भाजपा की अंतर्कलह का फायदा उठाने की कोशिश में हैं.
वाराणसी उत्तरी
भाजपा विधायक रविंद्र जायसवाल की राह में दो बागी प्रत्याशी सुजीत सिंह टिक्का और डॉ अशोक सिंह ने कांटे बिछा दिये हैं. इस क्षेत्र में सबसे ज्यादा मुसलिम मतदाता हैं.
अजगरा (सु)
यहां त्रिकोणीय मुकाबला दिख रहा है.
सेवापुरी
सपा की सीट पर सीधा मुकाबला
कैंट
कैंट सीट पर भाजपा तीन दशक से कब्जा बनाये हुई है. लेकिन, इस बार मुकाबला त्रिकोणीय है. भाजपा के सामने सीट बचाने की चुनौती है.
रोहनियां
इस सीट पर मां-बेटी के बीच दिलचस्प मुकाबला है. कृष्णा पटेल खुद उम्मीदवार हैं, जबकि अपना दल की अनुप्रिया गुट और भाजपा के संयुक्त प्रत्याशी सुरेंद्र नारायण सिंह औढे मैदान में है.
पिंडरा
यहां से पांच बार विधायक कांग्रेस के अजय राय की प्रतिष्ठा दावं पर. राय ने 2014 में मोदी के खिलाफ लड़े थे.
शिवपुर
बाकी सीटों से उलट यहां बसपा-भाजपा के बीच सीधा मुकाबला है.
अंतर्कलह से जूझ रही भाजपा
वाराणसी जिले में विधानसभा की आठ सीटों में से तीन पर भाजपा, दो-दो पर सपा-बसपा तथा एक सीट पर कांग्रेस का कब्जा है. भाजपा में अंतर्कलह दिख रहा है, जो भाजपा की मुश्किलें बढ़ा रही हैं. हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रोड शो और धुंआधार प्रचार से चुनावी फिजा बदल रही है. गैर यादव, गैर जाटव, अति पिछड़ा वर्ग में भाजपा ने सेंध लगाने की कोशिश है, लेकिन यह सेंध भाजपा को कितना लाभ पहुंचायेगी, यह तो मतगणना के बाद ही स्पष्ट होगा.
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