कोलकाता : इन दिनों एक घोटाले की चर्चा चारों ओर हो रही है. ‘जी हां’ हम यहां बात कर रहे हैं देश के सबसे बड़े बैकिंग घोटाले की जिस मामले में सीबीआइ और ईडी की ताबड़तोड़ कार्रवाई जारी है. इस संबंध में सीबीआइ के एक अधिकारी ने कहा कि 11 हजार पांच सौ करोड़ रुपये बैंक को चूना लगाने वाले नीरव मोदी का नाम तो आज हर कोई जानता है, लेकिन ऐसे कई छोटे कारोबारी हैं, जो बैंकों को करोड़ों का चूना लगा कर या तो फरार हो चुके हैं या मजे से घूम रहे हैं.
सीबीआइ कुल 20 बैंकों को चूना लगाने के मामले की जांच कर रही है. अधिकारी के मुताबिक, अभी भी ना जाने कितने नीरव पर्दे के पीछे हैं. उल्लेखनीय है कि बैंकों को फर्जी कागजात दिखा कर करोड़ों रुपये के कर्ज ले लिये गये. जांच में जब पता चला कि सारे कागजात फर्जी हैं तब जिम्मा सीबीआई को सौंपा गया. पिछले दो सालों के दौरान हजारों करोड़ के घपलों की खबर सामने आयी है. सीबीआई सूत्रों के अनुसार, केवल पिछले साल का हिसाब लिया जाये तो घपले की राशि पांच सौ करोड़ रुपये से ज्यादा है.
पार्क स्ट्रीट के स्टेट बैंक की एक शाखा में गैरसरकारी संस्था श्री महालक्ष्मी कॉरपोरेशन ने विभिन्न संस्थाओं के नाम से 142 करोड़ का कर्ज लिया. बाद में बैंक ने जब जांच की तो पता चला कि उक्त संस्था की ओर से बाहर की कई कंपनियों को चेक दिये गये. जिनको चेक दिये गये है वह उक्त कंपनी के व्यवसाय से किसी भी तरह से संबंधित नहीं थे. बैंक को जो स्टाक दिखाया गया था. वह सब फर्जी था.
मामले की गंभीरता को देखते हुए बैंक ने इस मामले को सीबीआइ के हवाले कर दिया था. जांच में पता चला कि पूरे फर्जीवाड़े में बैंक का एक अधिकारी भी शामिल था. इसी तरह की जालसाजी युनाइटेड बैंक आफ इंडिया से भी की गयी, जिसमें बैंक को 184 करोड़ का चूना लगा. जांच में सीबीआइ को पता चला कि रामस्वरूप उत्पादक नामक एक कंपनी और नौ कंपनियों के नाम पर कर्ज लेकर रकम अन्य खाते में जमा करवा कर निकाल लिये गये. जांच के दौरान जब कंपनी के ठिकाने पर जांच अधिकारी पहुंचे तो वह फर्जी निकला.
सीबीआई के बैंक फ्रॉड डिपार्टमेंट के एक अधिकारी के मुताबिक, तकरीबन 10 बैंकों के एक कंसर्टियम के साथ टालीगंज के एक प्रोड्यूसर ने जालसाजी की. जांच में पता चला कि वह एक स्टील उत्पादन कंपनी के नाम पर टर्म लोन के तहत 24 करोड़ रुपये लिये. बैंक को जो कागजात जमा किये गये थे. उसमें बताया गया कि कंपनी लगातार मुनाफे में चल रही है, जिसमें शुद्ध मुनाफा 24 करोड़ रुपये बताया गया. सीबीआइ के दर्ज एफआइआर के मुताबिक जांच में पता चला कि कंपनी को 24 करोड़ की जगह केवल 34 लाख रुपए का ही लाभ हुआ है.
इस मामले में जब बैंक की ओर से इंवेस्टिगेटिव ऑडिट कराने की बात हुई तो संस्था की ओर से कोई सहयोग नहीं मिला. इनके अलावा कई छोटे-छोटे मामले हैं, जहां बैंक को चूना लगाया गया है. स्टेट बैंक के ही साथ दो संस्थाओं ने अलग-अलग मामलों में 50 करोड़ रुपये का घोटाला किया है. इसके अलावा कनारा बैंक से 15 करोड़ रुपये के घोटाले की जांच कर रहे अधिकारियों को पता चला कि जिस पते पर मोटर साइकिल बनाने के नाम पर कर्ज लिया गया था, वहां कोई कारखाना ही नहीं है.
जांच अधिकारियों के मुताबिक एक साल में 20 बैंक घोटाले की जांच चल रही है. यह सब तो अभी सामने आया है. अभी फाइलों में कितना छुपा है यह तो वक्त की बात है. अलबत्ता नीरव मोदी का नाम सामने आने पर लोग उसे महाघोटालेबाज का खिताब दे रहे हैं, जबकि जनता के खून पसीने की कमाई डकार कर अभी भी कई नीरव छुपे बैठे हैं.