कोलकाता: लोकसभा चुनाव में माकपा समेत अन्य वामपंथी दलों को भारी नुकसान हुआ. माकपा महज नौ सीटों पर जीत हासिल कर पाने में सफल रही. इनमें बंगाल में दो सीटें भी शामिल हैं. बंगाल के रायगंज और मुर्शिदाबाद में माकपा को सफलता मिली.
2009 में वाम मोरचा को राज्य में 15 सीटें मिली थी. राज्य में भाकपा, फॉरवर्ड ब्लॉक और आरएसपी खाता भी नहीं खोल पायी. करारी हार के बाद राज्य में वामपंथी दलों से कार्यकर्ताओं के टूटने से समस्या और भी बढ़ गयी है. ऐसा हाल माकपा, फॉरवर्ड ब्लॉक समेत अन्य वामपंथी संगठनों के बीच भी है. इन मुद्दों को लेकर आला वामपंथी नेताओं का मानना है कि मौकापरस्त लोगों के वाम मोरचा के छोड़ने का कोई असर नहीं होगा.
माकपा पोलित ब्यूरो के सदस्य सीताराम येचुरी का कहना है कि लोकसभा चुनाव के बाद जिन कार्यकर्ताओं ने वामपंथी पार्टी से नाता तोड़ा है, वे कहीं न कहीं सत्तालोभी व मौकापरस्त हैं. मूल रूप से वामपंथी विचारधारा के नेता व कार्यकर्ता वामपंथी पार्टियों से नहीं टूटे हैं. यह काफी अहम है. बंगाल की बात करें, तो यह पहली दफा नहीं है जब माकपा या अन्य वामपंथी दलों के कार्यकर्ता पार्टी से अलग हुए हैं. पिछली बार ऐसी स्थिति के बाद वामपंथी पार्टियां और मजबूत हुई थीं. माकपा ग्रामीण स्तर पर सांगठनिक ताकत बढ़ाने पर ध्यान दे रही है.
इधर प्रदेश एटक के सचिव व वरिष्ठ परिवहन श्रमिक नेता नवल किशोर श्रीवास्तव का कहना है कि विगत कुछ वर्षो में वामपंथी दलों की सांगठनिक ताकत बढ़ाने के कार्यो पर ध्यान नहीं दिया गया. वामपंथी पार्टियों के युवा कार्यकर्ताओं को वामपंथी नीतियों के बारे पता होना चाहिए. उन्हें वामपंथी आंदोलनों के बारे में जानना होगा. वामो दलों को राजनीति शिक्षा शिविर लगाने चाहिए थे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. यदि लोकसभा चुनाव के बाद वामपंथी दलों के कार्यकर्ताओं के पार्टी छोड़ने की बात की जाये तो इनमें से ज्यादातर सत्तालोभी हैं क्योंकि वामपंथी विचारधारा वाले लोग विषम परिस्थिति में भी वामपंथी नीति को नहीं छोड़ेंगे.