क्या लालू, मुलायम, मायावती की राह पर बढ़ चुका है ममता का कारवां?
।।राहुल सिंह।। ममता बनर्जी एक तेज-तर्रार राजनेता के साथ संवेदनशील कवि हैं. उनकी भावुकता व आक्रामक तेवर की हजार कहानियां हैं. वे तैल चित्र भी बनाती हैं और वे ऊंची कीमत पर बिक भी जाते हैं, जिस पर चुनाव प्रचार के दौरान नरेंद्र मोदी चुटकी भी ले चुके हैं. पश्चिम बंगाल में वाम मोर्चा के […]
।।राहुल सिंह।।
ममता बनर्जी एक तेज-तर्रार राजनेता के साथ संवेदनशील कवि हैं. उनकी भावुकता व आक्रामक तेवर की हजार कहानियां हैं. वे तैल चित्र भी बनाती हैं और वे ऊंची कीमत पर बिक भी जाते हैं, जिस पर चुनाव प्रचार के दौरान नरेंद्र मोदी चुटकी भी ले चुके हैं. पश्चिम बंगाल में वाम मोर्चा के साढ़े तीन दशक के वर्चस्व के कारण ममता ने पोरीबर्तन (बदलाव) को पश्चिम बंगाल के राजनीतिक शब्दावली व विमर्श का एक अनिवार्य शब्द-तत्व बना दिया.
उन्होंने अपने इसी अति प्रिय शब्द पोरीबर्तन पर एक कविता लिखी, जिसमें उन्होंने बताया है कि कैसे राजनीति कारोबार बन गयी है, पार्टी का दफ्तर बाजार बन गये हैं, राजनीति गंदा खेल हो गयी है, जिसमें ग्लैमर और फैशन आ गया है. उन्होंने अपनी इस कविता के अंतिम पंक्ति में लिखा है कि कहीं ऐसा न हो कि हिमालय की यह गंगा (राजनीति) गंदगी के भंवरजाल में डूब जाये, समा जाए.
लेकिन अब जो परिस्थितियां बनी हैं उससे लगता है कि ममता ने अपनी कविता की ये पंक्तियां जिस राजनीतिक परिस्थितियों व जिन राजनेताओं को देख-महसूस कर लिखीं, अब खुद उनका भी हाल उन नेताओं जैसा ही हो गया है. ममता ने राजनीति में मुनमुन सेन, मिथुन चक्रवर्ती, शताब्दी राय, तापस पॉल, हिरन चटर्जी जैसे ग्लैमर को भरा. वहीं सारधा ग्रुप जैसे चिटफंड कंपनी के मालिक सुदीप्तो सेन से ममता व उनके लोगों के नजदीकी रिश्ते की कहानियां भी आम हैं.
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री व तृणमूल कांग्रेस की सर्वेसर्वा ममता बनर्जी अपनों पर लुटायी गयी अपनी अपार ममता से ऐसे राजनीतिक चक्र व्यूह में फंस गयी हैं, जिससे किसी राजनीतिक अभिमन्यु के लिए बाहर आ पाना असंभव-सा होता है. सस्ती सूती साड़ी, हवाई चप्पल जैसे अहम प्रतीकों के कारण बेहद ईमानदारी मानी जाने वालीं ममता बनर्जी ने रेलमंत्री रहते कुछ ऐसी गलतियां कीं, जिससे यह आशंका जतायी जा रही है कि क्या उनकी स्थिति भी एक समय में ताकतवर क्षत्रप रहे लालू यादव, मुलायम सिंह यादव, मायावती जैसी होगी? हालांकि ममता पर लाखों छोटे निवेशकों से ठगी करने वाले सारधा समूह के प्रमुख सुदीप्तो सेन से संबंध रखने का आरोप तो लंबे समय से लगता रहा है, लेकिन ताजा मामला यह है कि उनके रेलमंत्री रहने के दौरान रेलवे की अधीनस्थ संस्था इंडियन रेलवे कैटरिंग एंड टूरिज्म कॉरपोरेशन लिमिटेड (आइआरसीटीसी) के भारत तीर्थ परियोजना के तहत दक्षिण भारत में भ्रमण के लिए चिटफंड कंपनी सारधा की सहयोगी कंपनी के साथ हुए समझौते के कागजात गुरुवार को सीबीआइ को सौंप दिये गये.
यह निर्णय रेल राज्य मंत्री मनोज सिन्हा ने रेलवे बोर्ड के अधिकारियों के साथ बैठक करने के बाद लिया. ममता पर आरोप लग रहे हैं कि उन्होंने सारधा ग्रुप की सारधा टूर एंड ट्रैवल्स नामक कंपनी के साथ आइआरसीटीसी के हुए करार में समझौता मानकों का पालन नहीं किया. उधर, सारधा चिटफंड घोटाले में तृणमूल कांग्रेस के प्रमुख नेताओं का नाम आने के मुद्दे पर पश्चिम बंगाल के राज्यपाल केसरीनाथ त्रिपाठी ने कहा है कि वह फाइलों में दर्ज तथ्यों के आधार पर ही इस संबंध में कोई कार्रवाई कर सकते हैं. वहीं, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष व पूर्व रेल राज्य मंत्री अधीर रंजन चौधरी ने ममता से मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा मांगा लिया है.
इन आरोपों व चुनौतियों से जूझती ममता बनर्जी की अग्नि परीक्षा 13 सितंबर को पश्चिम बंगाल की दो विधानसभा सीटों चौरंगी व बशीरहट दक्षिण पर होने वाला उप चुनाव में होगी. वाम मोर्चे व कांग्रेस द्वारा लगातार किये जा रहे राजनीतिक हमले से उत्पन्न बौखलाहट ममता बनर्जी के इस बयान में दिखती है कि कुणाल चोर, तुंपई चोर, मुकुल चोर, आमी चोर और आमनेरे सब साधु? अगर वे चोर हैं तो आपलोग भी निर्दोष नहीं हैं! तो क्या यह मान लिया जाये कि अपने इस उग्र तेवर के साथ ममता बनर्जी यह स्वीकार कर रही हैं कि हमारे लोग चोर हैं, लेकिन आप भी निर्दोष नहीं हो, ऐसे(हमारे लोगों जैसे) ही हो. फिलहाल कानून की डिग्री प्राप्त यह 59 वर्षीय उग्र नेत्री सत्ता के शिखर पर पहुंचने के बाद अपने कैरियर के सबसे कठिन राजनीतिक चुनौती का सामना कर रही हैं. सवाल यह भी उठ रहा है कि 1984 में दिग्गज वाम नेता सोमनाथ चटर्जी को जादवपुर लोकसभा सीट से चुनाव हरा कर चर्चा में आने वाली ममता इन मुश्किलों को भी मात दे सकेंगी. ममता बनर्जी ने 2011 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में वाम मोर्चा को रायटर बिल्डिंग से बाहर का रास्ता दिखा दिया था.
लालू, मुलायम की तरह बनायी खुद की सीमा
ममता बनर्जी ने समाजवादी धड़े के बड़े राजनीतिकों लालू-मुलायम की तरह ही खुद के लिए एक सीमा तय कर ली है. यह सीमा है परिवारवाद की, यह सीमा है ग्लैमर की दुनिया के लोगों से घिरे रहने की. लालू-मुलायम की तरह ही उन्होंने भी पार्टी की अगली पीढ़ी की कमान संभालने के लिए अपने भतीजे अभिषेक मुखर्जी को आगे बढ़ाया. अभिषेक मुखर्जी तृणमूल कांग्रेस की युवा शाखा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं. ममता उन्हें खुद के बाद पार्टी के अगले व सर्वमान्य नेता की तौर पर स्थापित करने की जुगत में लगी हैं.
लोकसभा चुनाव परिणाम के संकेत भी चुनौती
लोकसभा चुनाव 2014 में तृणमूल कांग्रेस को पश्चिम बंगाल की 42 में 34 सीटें मिलीं, जबकि भाजपा को दो, माकपा को दो व कांग्रेस को चार सीटें मिलीं. दरअसल, तृणमूल की यह विराट जीत उसके लिए खुशी की जितनी बड़ी सबब थी, उससे कहीं बड़ी चुनौती चुनाव परिणाम में छिपी थी.भले ही भाजपा लोकसभा चुनाव में बंगाल में दो ही सीटें जीत सकी, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से वह आठ सीटों पर दूसरे नंबर पर रही. यानी अगर इन सीटों पर वोटों का थोड़ा और झुकाव उसके पक्ष में होता तो वह राज्य में वाम दल व कांग्रेस के किनारे कर राज्य की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी की हैसियत पा लेती.
भाजपा को 16.8 प्रतिशत वोट पश्चिम बंगाल चुनाव में मिले, जो कि पिछले लोकसभा के छह प्रतिशत व विधानसभा चुनाव के चार प्रतिशत वोट बैंक से बहुत अधिक है. इस वोट शेयर से भाजपा का आत्मविश्वास बढ़ गया है और वह बंगाल में ममता का विकल्प बनने के लिए काम कर रही है. भाजपा की बढ़ती ताकत का ही डर है कि ममता ने कुछ दिन पूर्व बयान दिया कि वे भाजपा से लड़ने के लिए वाम दलों के साथ भी दोस्ती कर सकती हैं. क्या अपने लोगों पर भ्रष्टाचार का आरोप झेल रही ममता का यह बयान उनके सुस्त होते हौसले का सूचक नहीं है!