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भाजपा अध्यक्ष के दौरे से चढ़ा सियासी पारा

आनंद कुमार सिंह कोलकाता:भारतीय जनता पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद अमित शाह का यह पहला बंगाल दौरा है. कार्यक्रम के तहत शनिवार शाम को वह महानगर पहुंच रहे हैं. उनके औपचारिक कार्यक्रम रविवार को होंगे लेकिन शनिवार रात को ही वह प्रदेश भाजपा के आला नेताओं के साथ रात्रि भोज में मिलेंगे. प्राप्त […]

आनंद कुमार सिंह

कोलकाता:भारतीय जनता पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद अमित शाह का यह पहला बंगाल दौरा है. कार्यक्रम के तहत शनिवार शाम को वह महानगर पहुंच रहे हैं. उनके औपचारिक कार्यक्रम रविवार को होंगे लेकिन शनिवार रात को ही वह प्रदेश भाजपा के आला नेताओं के साथ रात्रि भोज में मिलेंगे. प्राप्त जानकारी के मुताबिक इसी भोज में श्री शाह प्रदेश भाजपा को 2016 के विधानसभा चुनाव के लिए रोड मैप देंगे.

सूत्रों से मिली जानकारी के तहत यह रोड मैप, मैक्रो लेवल पर न होकर माइक्रो लेवल पर रहेगा. यानी इसमें विशिष्ट दिशा निर्देश पार्टी के नेताओं को दिये जायेंगे. इनमें कार्यकर्ताओं की तादाद को बढ़ाने के लिए उठाये जाने वाले कदमों से लेकर पदाधिकारियों के लिए विशिष्ट जिम्मेदारियों को तय किया जायेगा. यह माना जा रहा है कि उत्तर प्रदेश में भाजपा की वापसी कराने के बाद अमित शाह की नजर अब पश्चिम बंगाल पर है. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि विधानसभा की एक सीट के लिए होने वाले उपचुनाव के प्रचार के लिए श्री शाह का बंगाल दौरा हरगिज नहीं है. उनके दौरे का मकसद कहीं अधिक विस्तृत है. अपने दौरे से वह पार्टी कार्यकर्ताओं को स्पष्ट संदेश देना चाहते हैं कि भाजपा आलाकमान बंगाल को लेकर खासी गंभीर है.

पार्टी से जुड़े सभी कार्यकर्ताओं को अब पार्टी के उत्थान के लिए जुट जाना होगा. उनके दौरे का एक लक्ष्य यह भी है कि बंगाल में पार्टी की जमीनी हकीकत को परखा जाये. माकपा द्वारा राजनीतिक परिदृश्य में छोड़ी गयी जमीन पर कब्जा जमाना उनका मुख्य उद्देश्य होने वाला है. हाल के दिनों में सारधा घोटाले की जांच, तापस पाल के विवादित बयान सहित अन्य विभिन्न विवादों के मद्देनजर तृणमूल की धूमिल हुई छवि का फायदा उठाने की भी अमित शाह की पुरजोर कोशिश रहेगी. श्री शाह के ही निर्देशों के तहत हाल के दिनों में प्रदेश भाजपा में सेलीब्रेटीज की एंट्री बड़े पैमाने पर हुई है. भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष का यह मानना है कि पार्टी के विस्तार के लिए परंपरागत तरीकों के अलावा नये और अभिनव प्रयास भी किये जाने चाहिए. इन्हीं प्रयासों की समुचित योजना वह अपने इस दौरे में बनायेंगे.

बंगाल में भाजपा के उत्थान के लिए बुद्धिजीवी फोरम की मदद

बंगाल में भाजपा के विकास के लिए न केवल पार्टी का राजनीतिक अंग बल्कि बुद्धिजीवी फोरम भी सक्रिय भूमिका निभायेगा. फोरम में समाज के विभिन्न क्षेत्रों के विशिष्ट लोगों को शामिल किया जा रहा है. फोरम की एक बैठक में पहुंचे भाजपा सांसद चंदन मित्र ने कहा कि माकपा जब तक सत्ता में थी उसने कभी भी अपनी पार्टी के बाहर के लोगों के साथ परामर्श नहीं किया, लेकिन भाजपा ऐसी नहीं है. वह पार्टी के भीतर व बाहर के भी बुद्धिजीवियों को समान दर्जा देते हुए उनसे बात करेगी. श्री मित्र ने कहा कि फोरम की बैठकें राज्य के हर जिले में होगी. जहां मुद्दों के आधार पर पेपर तैयार किये जायेंगे, जिस पर पार्टी में विस्तृत विचार किया जायेगा.

भाजपा की चाल पर तृणमूल की पैनी नजर

केंद्र में मोदी सरकार के गठन, सारधा चिटफंड घोटाले में तृणमूल नेताओं पर गिरती गाज और लोकसभा चुनाव में भाजपा के बढ़े मत प्रतिशत से तृणमूल कांग्रेस चिंतित है. पार्टी सुप्रीमो ममता बनर्जी राज्य में भाजपा के बढ़ते वर्चस्व से निबटने के लिए रणनीति बनाने में जुट गयी है. भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के कोलकाता दौरे के ऊपर तृणमूल कांग्रेस के आला नेताओं की निगाहें टिकी हैं. तृणमूल कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि विधानसभा चुनाव उपचुनाव को लेकर तृणमूल कांग्रेस चिंतित नहीं है, हालांकि तृणमूल कांग्रेस अपनी पूरी ताकत लगा देगी, लेकिन चुनाव के बहाने भाजपा जिस तरह से बंगाल में अपने प्रसार की रणनीति बनायी है. यहां केंद्रीय नेताओं की उपस्थिति लगातार बढ़ रही है. इस पर तृणमूल नेताओं की लगातार नजर है. उल्लेखनीय है कि लोकसभा चुनाव 2014 में तृणमूल कांग्रेस को पश्चिम बंगाल की 42 में 34 सीटें मिलीं, जबकि भाजपा को दो, माकपा को दो व कांग्रेस को चार सीटें मिली थीं.

उस चुनाव में भाजपा लोकसभा चुनाव में बंगाल में दो ही सीटें जीत सकी, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से वह आठ सीटों पर दूसरे नंबर पर रही. यानी अगर उन सीटों पर वोटों का थोड़ा और झुकाव उसके पक्ष में होता तो वह राज्य में वाम दल व कांग्रेस को किनारे कर राज्य की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी की हैसियत पा लेती. लोकसभा में भाजपा का वोट प्रतिशत पिछले लोकसभा चुनाव में छह फीसदी और विधानसभा चुनाव में चार फीसदी से बढ़ कर 16.8 फीसदी हो गया. इस वोट शेयर से जहां भाजपा का आत्मविश्वास बढ़ा है, वहीं ममता आशंकित हैं.

हाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का बयान भी इसी परिपेक्ष्य में देखा जाना चाहिए. माकपा को अपना राजनीतिक शत्रु माननेवाली ममता बनर्जी ने भाजपा के मुकाबले माकपा के साथ समझौता करने तक की बात कर दी. उन्होंने साफ कहा था कि राजनीति में कोई अछूत नहीं होता है, जबकि तृणमूल के नेता पहले कहा करते थे कि जिस घर में माकपा नेता हैं, उनके घर में शादी तक नहीं करें. हालांकि तृणमूल कांग्रेस की यह पहल को वामपंथी नेताओं ने पूरी तरह से खारिज कर दिया है, लेकिन बिहार में भाजपा के मुकाबले जिस तरह से नीतीश, लालू व कांग्रेस एकजुट हुई है. उससे ममता बनर्जी को यह साफ लगने लगा है कि माकपा का मुकाबले भले ही उन्होंने कर लिया है तथा 34 वर्षो के माकपा शासन को समाप्त करने में सफल रही है, लेकिन भाजपा से मुकाबले के लिए उसे सहयोगी की जरूरत है.

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