रानीगंज. किसी क्षेत्र में बेहतर प्रशासनिक कामकाज के लिए उस क्षेत्र का विभाजन जरूरी होता है, क्योंकि एक छोटे क्षेत्र में प्रशासनिक गतिविधियां आसान होती हैं. लेकिन 15 जून 2015 को पश्चिम बंगाल सरकार ने ऐसा फैसला लिया था, जो इस पारंपरिक सोच के बिल्कुल उलट था. उस दिन रानीगंज, जामुड़िया व कुल्टी नगरपालिकाओं का आसनसोल नगर निगम में विलय कर मेगा कॉरपोरेशन बना दिया गया था. इसे लेकर रानीगंज नगरपालिका के पूर्व पार्षद व माकपा नेता आरिज जलेस ने असंतोष जताया. कहा कि 15 जून 2015 रानीगंज के लोगों के लिए एक काला दिन था. उस दिन रानीगंज के 118 साल पुराने इतिहास की अनदेखी कर रानीगंज नगरपालिका को समाप्त कर दिया गया और आसनसोल नगर निगम के मेगा कॉरपोरेशन के साथ इसका विलय कर दिया गया. आसनसोल के एसडीएम अमिताभ दास को नगरपालिका का प्रशासक नियुक्त कर दिया गया और उन्होंने पश्चिम बंगाल सरकार के विलय के फैसले के बारे में रानीगंज नगरपालिका के तत्कालीन अध्यक्ष अनूप मित्र को आधिकारिक जानकारी दी. उन्होंने कहा कि राज्य सरकार के इस तुगलकी फरमान का खामियाजा रानीगंज के लोगों को आज भी चुकाना पड़ रहा है. कहा कि जब यह फैसला लिया गया, तब भी उनकी पार्टी व रानीगंज की जनता ने इसका विरोध किया था, लेकिन राज्य सरकार ने जन-भावनाओं की कद्र नहीं की और अपनी शक्ति का दुरुपयोग करते हुए राज्य सरकार ने रानीगंज के लोगों पर अपना यह फैसला थोप दिया. कहा कि कहने को तो रानीगंज में बोरो कार्यालय बनाया गया है.आसनसोल नगर निगम चुनाव हो जाने के बाद एक लंबे अरसे तक रानीगंज बोरो चेयरमैन की नियुक्ति नहीं की गयी थी. बस एक प्रशासक के जारी इस कार्यालय का कामकाज चलाया जा रहा था. आखिरकार नगर निगम चुनाव के लंबे समय के बाद बोरो चेयरमैन की नियुक्ति की गयी, लेकिन उसके बाद भी रानीगंज के लोगों को नागरिक सुविधाओं के लिए आसनसोल भागना पड़ता है .इस कार्यालय से लोगों को वह सारी सेवाएं नहीं मिलती जिसके वह हकदार हैं .छोटे से छोटे काम के लिए भी लोगों को रानीगंज जाना पड़ता है आज अगर रानीगंज की हालत देखी जाए तो इससे पता चलता है कि रानीगंज नगरपालिका को आसनसोल नगर निगम के साथ विलय करने का फैसला कितना गलत था. उन्होंने कहा कि किसी क्षेत्र के बारे में अगर कोई प्रशासनिक फैसला लिया जाता है, तो वहां के लोगों की राय लेनी सबसे पहली प्राथमिकता होनी चाहिए. लेकिन यह बुनियादी बात पश्चिम बंगाल सरकार ने भुला दी और ना जाने क्यों ऐसा यह फैसला कर लिया. यही वजह है कि विलय के तकरीबन नौ सालों के बाद आज भी रानीगंज कुल्टी व जामुड़िया के लोग 15 जून 2015 को काले दिवस के रूप में याद करते हैं.
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