सारधा चिटफंड घोटाला: मदन व पुरकायस्थ की सीबीआइ जांच हो
नयी दिल्ली: सारधा समूह की पोंजी योजना की जांच कर रहे गंभीर धोखाधड़ी जांच कार्यालय (एसएफआइओ) ने समूह के शीर्ष अधिकारियों, पश्चिम बंगाल के परिवहन मंत्री मदन मित्र और पुलिस अधिकारियों समेत अन्य के खिलाफ सीबीआइ जांच की सिफारिश की है. समूह की पोंजी योजना से 14 राज्यों के 27 लाख निवेशकांे को 2,500 करोड़ […]
नयी दिल्ली: सारधा समूह की पोंजी योजना की जांच कर रहे गंभीर धोखाधड़ी जांच कार्यालय (एसएफआइओ) ने समूह के शीर्ष अधिकारियों, पश्चिम बंगाल के परिवहन मंत्री मदन मित्र और पुलिस अधिकारियों समेत अन्य के खिलाफ सीबीआइ जांच की सिफारिश की है. समूह की पोंजी योजना से 14 राज्यों के 27 लाख निवेशकांे को 2,500 करोड़ रुपये का चूना लगा है.
इसके अलावा एसएफआइओ ने सारधा समूह के संस्थापकों एवं अन्य के खिलाफ आयकर विभाग, कॉरपोरेट कार्य मंत्रलय तथा प्रवर्तन निदेशालय समेत अन्य एजेंसियों से जांच कराने की सिफारिश की है. समाचार एजेंसी पीटीआइ के अनुसार, करीब एक साल तक चली लंबी जांच के बाद एसएफआइओ ने सारधा समूह की कंपनियों तथा अधिकारियांे के अन्य विभिन्न इकाइयों से लेन-देन के 11 मामलांे को सीबीआइ को भेजा है.
इसके अलावा, एसएफआइओ ने कर चोरी की आशंका, रिश्वत तथा अन्य गैरकानूनी लेन-देन, पेशेवर दुराचरण समेत 30 मामलों में आगे जांच की सिफारिश की है. एसएफआइओ ने 500 से अधिक पृष्ठांे वाली रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंपी है. एसएफआइओ ने कहा है कि सीबीआइ को आगे जांच करने के साथ पश्चिम बंगाल सरकार में खेल व परिवहन मंत्री मदन मित्र के अलावा पुलिस आयुक्त सुरजीत कर पुरकायस्थ के खिलाफ आरोपांे पर उचित कार्रवाई करनी चाहिए. संपर्क किये जाने पर मित्र ने किसी तरह की टिप्पणी से इनकार किया. वहीं पुरकायस्थ से संपर्क नहीं हो पाया.
इस घोटाले को सारधा चिट फंड घोटाले के नाम से जाना जाता है. पश्चिम बंगाल में यह काफी चर्चा में है और ममता बनर्जी सरकार को विभिन्न हलकांे से इस पर आलोचनाआंे का सामना करना पड़ रहा है.
पोंजी फर्मो के खिलाफ कार्रवाई कर सकता था आरबीआइ : इडी
कोलकाता: प्रवर्तन निदेशालय (इडी) ने कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) पोंजी योजनाएं चला रही इकाइयों पर कार्रवाई कर सकता था, क्योंकि इसके पास इससे जुड़े अधिकार थे. निदेशालय कई घोटालों की जांच कर रहा है, जिनमें सारधा जैसी कई कंपनियां शामिल हैं, जो गैरकानूनी तौर पर धन इकट्ठा कर रही थीं.
प्रवर्तन निदेशालय के सूत्र ने बताया कि आरबीआइ के पास इस तरह धन इकट्ठा करनेवाली कंपनियों की जांच और इन पर कार्रवाई करने का अधिकार था, क्योंकि ये आरबीआइ अधिनियम की धारा 58 (ब) के तहत आती हैं. लेकिन रिजर्व बैंक ने इसकी पहल नहीं की. उन्होंने कहा कि प्रवर्तन निदेशालय ने रिजर्व बैंक और सेबी दोनों से सवाल किये थे और इस संबंध में उनकी भूमिका के बारे में पूछा था. सूत्र ने सेबी की तारीफ करते हुए कहा कि हालांकि, उसके पास जांच का अधिकार नहीं था फिर भी उसने इन कंपनियों के खिलाफ मिली कुछ शिकायतों के आधार पर कार्रवाई शुरू की. उन्होंने कहा कि रिजर्व बैंक का कहना है कि मामले में उसकी भूमिका सिर्फ नियमकीय प्रकृति की है. हालांकि, हमने रिजर्व बैंक अधिकारियों को लंबी प्रश्नावली भेजी थी जिसका संतोषजनक जवाब अभी मिलना बाकी है, जबकि जवाब देने की समयसीमा पार हो चुकी है.
सूत्र ने कहा कि रिजर्व बैंक के पास प्रवर्तन की ताकत भी है. उनके मुताबिक प्रवर्तन निदेशालय को जो जवाब मिले हैं उसमें बताने से ज्यादा छुपाया गया है. इसलिए रिजर्व बैंक को फिर से उचित जवाब तैयार करने के लिए कहा गया है.
इस बीच प्रवर्तन निदेशालय ने अंग्रेजी में लिखनेवाले कई स्तंभकारों और लेखकों को भी बुलाया जिन्होंने सारधा समूह के अखबारों के लिए लिखा और विदेश यात्र पर गये. प्रवर्तन निदेशालय ने अब तक पश्चिम बंगाल, झारखंड, असम और ओड़िशा में सारदा समूह की 600 करोड़ रुपये की संपत्तियां जब्त की हैं.
आपराधिक गतिविधियों की मदद से संपत्ति जुटानेवालों की पहचान
सूत्र ने कहा कि सारधा मामले में आपराधिक गतिविधियों के जरिये अर्जित संपत्ति पहचान की प्रक्रिया पूरी हो गयी है. उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से गठित और अब विघटित श्यामल सेन आयोग द्वारा जमाकर्ताओं को धन वापस करने के संबंध में उठाये गये कदमों की वजह से कानूनी प्रक्रिया आगे बढ़ाने में मुश्किल हो रही थी. मिसाल देते हुए उन्होंने कहा कि श्यामल सेन आयोग ने दक्षिण 24 परगना के विष्णुपुर क्षेत्र में सारधा समूह द्वारा निर्मित संपत्तियों में रहनेवालों से उनके अपार्टमेंट के पंजीकरण के लिए पैसे मांगे थे. उन्होंने कहा कि अपार्टमेंट मालिकों ने आयोग को पैसे देकर अपने फ्लैटों का पंजीकरण करा लिया.
इसका नतीजा यह है कि हमें इन संपत्तियों को जब्त करने के बावजूद न्यायिक प्रक्रिया शुरू करने में दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है. उन्होंने कहा कि हमने संग्रह की गयी राशि के बारे में पूछा. लेकिन यह राशि राज्य सरकार को दी जा चुकी है. उन्होंने कहा कि प्रवर्तन निदेशालय में कर्मचारियों और लाजिस्टिक्स संबंधी कमी के कारण भी बाधा पैदा हो रही है.