वर्ष 2014 : पश्चिम बंगाल की राजनीति में चली बदलाव की बयार
कोलकाता : वर्ष 2014 की अवसान बेला आ चुकी है. ऐसे में अगर हम पश्चिम बंगाल के वर्ष भर के राजनीतिक परिदृश्य पर नजर डालें, तो यह कहा जा सकता है कि यह वर्ष बदलाव बदलाव का रहा. इस साल लोकसभा चुनाव में बेहतरीन प्रदर्शन कर सत्ता हासिल करने वाली भाजपा एक ओर एक मजबूत […]
कोलकाता : वर्ष 2014 की अवसान बेला आ चुकी है. ऐसे में अगर हम पश्चिम बंगाल के वर्ष भर के राजनीतिक परिदृश्य पर नजर डालें, तो यह कहा जा सकता है कि यह वर्ष बदलाव बदलाव का रहा. इस साल लोकसभा चुनाव में बेहतरीन प्रदर्शन कर सत्ता हासिल करने वाली भाजपा एक ओर एक मजबूत ताकत के रूप में उभरी, वहीं सारधा चिटफंड घोटाले एवं बर्दवान विस्फोट का लाभ उठाते हुए उसने राज्य की सत्तारुढ़ तृणमूल कांग्रेस को बैकफुट पर ला दिया.
राजनीतिक परिदृश्य में कई करोड़ के सारधा घोटाले की गूंज सुनाई देती रही और सत्तारुढ़ पार्टी के परिवहन मंत्री मदन मित्रा और दो राज्यसभा सांसद सृंजय बोस और कुणाल घोष को सीबीआई ने गिरफ्तार कर लिया जिससे पार्टी को बड़ी शर्मनाक स्थिति का सामना करना पड़ा.
राज्य में नरेंद्र मोदी की लहर के सहारे मई में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा की झोली में 17 प्रतिशत मत आये जबकि 2011 में हुए विधानसभा चुनाव में पार्टी को राज्य में केवल चार फीसदी मत हासिल हुए थे.बहुकोणीय मुकाबले में, तृणमूल कांग्रेसको सबसे अधिक लाभ मिला और राज्य की 42 लोकसभा सीटों में से 34 पर उसने कब्जा कर लिया.
ना केवल अपने राजनीतिक विरोधियों बल्कि पार्टी के भीतर भी माकपा को आलोचना का शिकार होना पड़ा जिसकेबाद पार्टी ने अपने दो नेता अब्दुर रज्जाक मुल्ला और लक्ष्मण सेठ को पाटी विरोधी गतिविधियों के आरोप के कारण निलंबित कर दिया.