वर्ष 2014 : पश्चिम बंगाल की राजनीति में चली बदलाव की बयार

कोलकाता : वर्ष 2014 की अवसान बेला आ चुकी है. ऐसे में अगर हम पश्चिम बंगाल के वर्ष भर के राजनीतिक परिदृश्य पर नजर डालें, तो यह कहा जा सकता है कि यह वर्ष बदलाव बदलाव का रहा. इस साल लोकसभा चुनाव में बेहतरीन प्रदर्शन कर सत्ता हासिल करने वाली भाजपा एक ओर एक मजबूत […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 16, 2014 4:04 PM

कोलकाता : वर्ष 2014 की अवसान बेला आ चुकी है. ऐसे में अगर हम पश्चिम बंगाल के वर्ष भर के राजनीतिक परिदृश्य पर नजर डालें, तो यह कहा जा सकता है कि यह वर्ष बदलाव बदलाव का रहा. इस साल लोकसभा चुनाव में बेहतरीन प्रदर्शन कर सत्ता हासिल करने वाली भाजपा एक ओर एक मजबूत ताकत के रूप में उभरी, वहीं सारधा चिटफंड घोटाले एवं बर्दवान विस्फोट का लाभ उठाते हुए उसने राज्य की सत्तारुढ़ तृणमूल कांग्रेस को बैकफुट पर ला दिया.

राजनीतिक परिदृश्य में कई करोड़ के सारधा घोटाले की गूंज सुनाई देती रही और सत्तारुढ़ पार्टी के परिवहन मंत्री मदन मित्रा और दो राज्यसभा सांसद सृंजय बोस और कुणाल घोष को सीबीआई ने गिरफ्तार कर लिया जिससे पार्टी को बड़ी शर्मनाक स्थिति का सामना करना पड़ा.

दो अक्तूबर को बर्दवान विस्फोट में जमात-उल-मुजाहिद्दीन बांग्लादेश के दो संदिग्ध आतंकवादी मारे गये थे और इस मुद्दे को लेकर भी राज्य सरकार पर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने यह आरोप लगाते हुए हुए शिंकजा कसा कि इसमें भी सारधा घोटाले के धन का इस्तेमाल किया गया है. हालांकि, केंद्र ने बाद में कहा कि जांच में अभी तक इस तरह के किसी भी लेन-देन का पता नहीं चला है जिसमें आतंकवादी गतिविधियों के लिए बांग्लादेश पैसा जा रहा हो.

राज्य में नरेंद्र मोदी की लहर के सहारे मई में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा की झोली में 17 प्रतिशत मत आये जबकि 2011 में हुए विधानसभा चुनाव में पार्टी को राज्य में केवल चार फीसदी मत हासिल हुए थे.बहुकोणीय मुकाबले में, तृणमूल कांग्रेसको सबसे अधिक लाभ मिला और राज्य की 42 लोकसभा सीटों में से 34 पर उसने कब्जा कर लिया.

भाजपा के एक ताकत के रूप में उभरने के कारण बंगाल के राजनीतिक परिदृश्य में बदलाव महसूस किया गया और पूर्व में एक मजबूत ताकत रही वाम किनारे चली गयी.वाम मोर्चे की वरिष्ठ सहयोगी माकपा बशीरहाट और चौरंगी विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में अपनी जमानत जब्त करवा बैठी. भाजपा ने बशीरहाट सीट जीत ली जबकि चौरंगी सीट पर वह दूसरे नंबर पर रही जहां तृणमूल कांग्रेस ने चुनाव जीता.

ना केवल अपने राजनीतिक विरोधियों बल्कि पार्टी के भीतर भी माकपा को आलोचना का शिकार होना पड़ा जिसकेबाद पार्टी ने अपने दो नेता अब्दुर रज्जाक मुल्ला और लक्ष्मण सेठ को पाटी विरोधी गतिविधियों के आरोप के कारण निलंबित कर दिया.

मिल रहे संकेतों के आधार पर राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगले साल होने वाले नगर निकाय और 2016 में विधानसभा चुनावों में भाजपा के एक महत्वपूर्ण शक्ति के तौर उभरने की संभावना है.
भाजपा के उभार को देखतेहुए तृणमूल कांग्रेस प्रमुख और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मोदी सरकार के खिलाफ हमले तेज कर दिये हैं और उन पर देश बेचने का आरोप लगाया और सांप्रदायिक एजेंडे को आगे बढ़ाने की कोशिश के लिए भाजपा पर हमला किया.

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