नुकसान की भरपाई क्यों नहीं करे गोजमुमो:हाइकोर्ट
कोलकाता:अदालती आदेश के बावजूद दाजिर्लिंग में बंद जारी रहने पर नाराजगी जताते हुए कलकत्ता हाइकोर्ट ने बुधवार को कहा कि वहां लोगों के मौलिक अधिकारों का दमन किया जा रहा है. कोर्ट ने पूछा कि पहाड़ों पर सार्वजनिक और निजी संपत्ति के नुकसान की भरपाई के लिए गोरखा जनमुक्ति मोरचा (गोजमुमो) को क्यों नहीं कहा […]
कोलकाता:अदालती आदेश के बावजूद दाजिर्लिंग में बंद जारी रहने पर नाराजगी जताते हुए कलकत्ता हाइकोर्ट ने बुधवार को कहा कि वहां लोगों के मौलिक अधिकारों का दमन किया जा रहा है. कोर्ट ने पूछा कि पहाड़ों पर सार्वजनिक और निजी संपत्ति के नुकसान की भरपाई के लिए गोरखा जनमुक्ति मोरचा (गोजमुमो) को क्यों नहीं कहा जाये. मुख्य न्यायाधीश अरुण मिश्र और न्यायाधीश जयमाल्य बागची की खंडपीठ ने अलग गोरखालैंड राज्य की मांग कर रहे गोजमुमो को निर्देश दिया कि वह पांच सितंबर तक हलफनामा दाखिल कर बताये कि आखिर उसपर क्षतिपूर्ति की रकम क्यों नहीं लगायी जाये. खंडपीठ ने सात अगस्त के फैसले में दाजिर्लिंग में बेमियादी बंद को अवैध ठहराया था.
हाइकोर्ट ने गोरखा जनमुक्ति मोरचा की ओर से अदालती आदेश के उल्लंघन पर नाराजगी जतायी. गोजमुमो के वकील ने कहा कि पर्वतीय क्षेत्र के लोग स्वत:स्फूर्त आंदोलन कर रहे हैं और ‘जनता कफ्यरू’ लागू कर रहे हैं. पार्टी का इसमें कोई दखल नहीं है. हालांकि, अदालत ने गोजमुमो की दलील स्वीकार करने से इनकार कर दिया. कोर्ट ने कहा कि पर्वतीय क्षेत्र के लोगों को आदमी की तरह नहीं माना जा रहा है. लोगों के मौलिक अधिकारों का दमन किया जा रहा है. स्कूलों, कॉलेजों और चिकित्सा संस्थानों का सामान्य कामकाज प्रभावित हुआ है. खंडपीठ ने पश्चिम बंगाल सरकार को सार्वजनिक व निजी संपत्ति को हुए नुकसान का आकलन कर न्यायालय को सूचित करने का निर्देश दिया है. यह तीन सितंबर तक जमा करना होगा. सरकारी वकील अशोक बनर्जी ने मुहरबंद लिफाफे में दाजिर्लिंग के मौजूदा हालात पर एक रिपोर्ट पेश की. गोजमुमो के वकील का कहना था कि गोजमुमो की ओर से एक कमेटी का गठन किया गया है. इसमें पांच राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि, एनजीओ के प्रतिनिधि व विशिष्ट व्यक्ति शामिल हैं. आगे की रणनीति वही कमेटी तय करेगी.
क्या कहना है गुरुंग का
गोजमुमो प्रमुख विमल गुरुंग ने हाइकोर्ट में चल रही सुनवाई के संबंध में अपने फेसबुक पेज पर लिखा है कि इस संबंध में हाइकोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा दायर की गयी रिपोर्ट को संज्ञान में लिया है. इस संबंध में अंतरिम आदेश भी दिया गया है. लेकिन वह इस संबंध में कुछ भी नहीं कहना चाहते. इस बाबत उपयुक्त प्रतिक्रिया हाइकोर्ट के आदेश की मूल प्रति मिलने के बाद दी जायेगी. हाइकोर्ट के निर्देश का पालन और सम्मान करने के लिए वह बाध्य हैं. कानून के मुताबिक, हर पहलू पर विचार किया जायेगा.