खेती की पुरानी पद्धति की ओर लौट रहे किसान

कोलकाता: जलवायु परिवर्तन सुंदरवन में किसानों को अपना इतिहास खंगालने के लिए प्रेरित कर रहा है. यहां के किसान यह पता लगा रहे हैं कि उनके पूर्वज कैसे हरी खाद का इस्तेमाल कर चावल की देसी किस्में पैदा करते थे. आधुनिक उच्च उत्पादकता वाली किस्मों को त्यागते हुए यहां के किसान हरित क्रांति से पहले […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 30, 2013 7:31 AM

कोलकाता: जलवायु परिवर्तन सुंदरवन में किसानों को अपना इतिहास खंगालने के लिए प्रेरित कर रहा है. यहां के किसान यह पता लगा रहे हैं कि उनके पूर्वज कैसे हरी खाद का इस्तेमाल कर चावल की देसी किस्में पैदा करते थे.

आधुनिक उच्च उत्पादकता वाली किस्मों को त्यागते हुए यहां के किसान हरित क्रांति से पहले के दिनों में लौट रहे हैं और उन पारंपरिक बीजों को अपना रहे हैं, जिनमें खारापन और बाढ़ ङोलने की क्षमता जैसी अनूठी खूबियां मौजूद हैं.

सुंदरवन के द्वीपों में से एक द्वीप पर रहने वाले उत्तम मैती नामक किसान ने बताया कि पुरानी पद्धति पर लौटना मुश्किल है, लेकिन धीरे धीरे हमने महसूस किया कि दुधेश्वरी चावल जैसी हमारी पारंपरिक किस्मों की उत्पादन लागत कम है और यह खारापन बड़ी आसानी से ङोल सकता है. जलवायु परिवर्तन की वजह से समुद्री तल के बढ़ने से बाढ़ और पानी में खारापन जैसी समस्याएं आ रही हैं.

यादवपुर विश्वविद्यालय व डब्ल्यूडब्ल्यूएफ द्वारा तैयार एक रिपोर्ट में अनुमान जताया गया है कि सुंदरवन डेल्टा में रह रहे 50 लाख लोगों में से 10 लाख लोग 2050 तक जलवायु परिवर्तन के भुक्तभोगी बन जायेंगे. उल्लेखनीय है कि हरित क्रांति के दौरान अधिक उपजवाली धान की किस्मों की ओर लोगों के आकर्षित होने से धान की पारंपरिक किस्में लुप्तप्राय: हो गयी. गैर सरकारी संगठनों की मदद से विभिन्न हिस्सों के किसान समुदाय बीज बैंक तैयार कर रहे हैं, जिनमें इस तरह के बीज की किस्में संभालकर रखी जा रही हैं.

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