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अब नहीं सड़ेंगे खाद्यान्न

कोलकाता: भारत में खाद्यान्न की कोई कमी नहीं है. कमी खाद्यान्न के भंडारण की क्षमता की है. जिसके फलस्वरूप प्रत्येक साल बड़ी मात्र में धान, गेहूं, आलू, प्याज इत्यादि सड़ते हैं और इसका खमियाजा आम जनता को चुकाना पड़ता है. इससे निजात के लिए नेशनल बैंक फॉर एग्रिकल्चरल एंड रूरल डेवलपमेंट (नाबार्ड) ने देश की […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 29, 2013 8:45 AM

कोलकाता: भारत में खाद्यान्न की कोई कमी नहीं है. कमी खाद्यान्न के भंडारण की क्षमता की है. जिसके फलस्वरूप प्रत्येक साल बड़ी मात्र में धान, गेहूं, आलू, प्याज इत्यादि सड़ते हैं और इसका खमियाजा आम जनता को चुकाना पड़ता है.

इससे निजात के लिए नेशनल बैंक फॉर एग्रिकल्चरल एंड रूरल डेवलपमेंट (नाबार्ड) ने देश की भंडारण क्षमता के विकास के लिए 5000 करोड़ रुपये की पूंजी के साथ एक बड़ी योजना लांच की है. नाबार्ड वेयर हाउसिंग स्कीम 2013-14 नामक इस योजना के अंतर्गत गोदामों, साइलो, कोल्ड स्टोरेज व कोल्ड चेन के निर्माण के लिए सार्वजनिक व निजी क्षेत्रों को प्रत्यक्ष ऋण उपलब्ध कराया जायेगा. नाबार्ड के क्षेत्रीय महाप्रबंधन एस पद्मानाभन ने बताया कि देश में खाद्यान्न को सुरक्षित रखने के लिए गोदामों व कोल्ड स्टोरेज की भारी कमी है. जिस कारण प्रत्येक वर्ष हजारों टन अनाज बर्बाद होता है.

इसके अलावा केंद्र सरकार ने नेशनल फूड सिक्योरिटी एक्ट 2013 के तहत खाद्य सुरक्षा योजना लागू करना चाहती है. इस योजना के तहत सभी राज्यों में अनाजों को रखने के लिए पर्याप्त मात्र में गोदाम, वेयरहाउस, कोल्ड स्टोरेज नहीं है. उन्होंने बताया कि इस योजना के तहत पूर्वी व उत्तर पूर्व के राज्यों एवं खाद्यान्न उत्पादन के मद्देनजर घाटे वाले राज्यों को प्राथमिकता दी जायेगी. इस योजना के अंतर्गत राज्य सरकार, राज्य सरकार के उपक्रमों, को-ऑपरेटिव, फेडरेशन, को-ऑपरेटिव फेडरेशन, एपीएमसी, राज्य स्तरीय बोर्ड, एपेक्स मार्केटिंग बोर्ड/बॉडी, पंचायतों, निजी कंपनियों एवं उद्यमियों को ऋण उपलब्ध कराया जायेगा. इस योजना के अंतर्गत वेयरहाउस व कोल्ड स्टोरेज का निर्माण वेयरहाउसिंग डेवलप्मेंट एंड रेगुलेटरी ऑथोरिटी (डब्लूडीआरए) के नियमों के तहत करना होगा. गौरतलब है कि देश में अभी भी उत्पादित कुल अनाज में से 47 मिलियन टन अनाज रखने के लिए गोदाम व कोल्ड स्टोरेज नहीं है. केवल पश्चिम बंगाल में ही 7-8 लाख मैट्रिक टन खाद्यान्न के भंडारण की कमी है.

इस कमी के कारण राज्य में प्रत्येक वर्ष करोड़ों रुपये का आलू बर्बाद हो जाता है. श्री पदमानाभन ने बताया कि इस स्कीम को रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने जुलाई में ही मंजूरी दे दी थी. उसके बाद से राज्यों से प्रस्ताव आने लगे हैं. पश्चिम बंगाल के फूड एंड सिविल सप्लाई एवं कृषि विभाग से अब तक 200 करोड़ की लागत के विभिन्न परियोजनाओं के प्रस्ताव मिले हैं.

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