क्या यह वोटरों से विश्वासघात नहीं?

– हावड़ा के दो और कांग्रेस पार्षदों ने पाला बदला, तृणमूल में हुए शामिल – चुनाव जीतने के चंद दिनों के अंदर बदल ली पार्टी हावड़ा/कोलकाता : हावड़ा नगर निगम के दो और कांग्रेस पार्षदों ने रविवार को तृणमूल कांग्रेस का दामन थाम लिया. पूरे तामझाम के साथ शालीमार के कोयला डीपो में आयोजित कार्यक्रम […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 16, 2013 6:51 AM

– हावड़ा के दो और कांग्रेस पार्षदों ने पाला बदला, तृणमूल में हुए शामिल

– चुनाव जीतने के चंद दिनों के अंदर बदल ली पार्टी

हावड़ा/कोलकाता : हावड़ा नगर निगम के दो और कांग्रेस पार्षदों ने रविवार को तृणमूल कांग्रेस का दामन थाम लिया. पूरे तामझाम के साथ शालीमार के कोयला डीपो में आयोजित कार्यक्रम में वार्ड 35 के कांग्रेस पार्षद विनय सिंह और इसी पार्टी के वार्ड 29 के पार्षद शैलेष राय तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गये.

तृणमूल कांग्रेस महासचिव मुकुल राय की मौजूदगी में निर्वाचित होने के बमुश्किल 20 दिन के अंदर कांग्रेस के इन पार्षदों ने तृणमूल कांग्रेस का झंडा थाम लिया. इससे पहले वार्ड 23 की कांग्रेस पार्षद मौसमी घोष चुने जाने के चंद दिनों के अंदर तृणमूल में शामिल हो गयी थीं. अब कांग्रेस के पास ले-देकर वार्ड 20 की पार्षद इसमत आरा ही बची हैं. 22 नवंबर को हावड़ा नगर निगम के हुए चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर चार प्रत्याशी जीते थे.

तृणमूल को 42, माकपा को दो और भाजपा को भी दो सीटों पर कामयाबी मिली थी. अब तृणमूल पार्षदों की संख्या बढ़ कर 45 हो गयी है.

अब कांग्रेस के टिकट पर निर्वाचित होकर चंद दिनों के अंदर इन पार्षदों के दल बदल लेने से सियासी हलके में बहस छिड़ गयी है. कहा जा रहा है कि किसी पार्टी के टिकट पर चुनाव जीतने के तत्काल बाद दूसरी पार्टी का दामन थामना कहां तक उचित है. क्या यह वोटरों से विश्वासघात नहीं है? किसी दूसरे दल में शामिल होने से पहले क्या पार्षदों ने अपने मतदाताओं से इजाजत ली? यदि नहीं तो क्या वोटरों को उन्हें (निर्वाचित प्रतिनिधियों) वापस बुलाने का अधिकार (राइट टु रिकॉल) नहीं होना चाहिए. क्या यह मौकापरस्ती नहीं है?

ऐसे प्रतिनिधियों का सामाजिक बहिष्कार करें: सोमनाथ

पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी ने कहा कि इस तरह दल बदल वोटरों के साथ विश्वासघात है. ऐसी घटनाएं लोकतंत्र के लिए एक धब्बे के समान है और लोकतंत्र को बचाये रखने के लिए राइट टु रिकॉल जितनी जल्दी हो सके, लाया जाना चाहिए.

किसी भी वोटर ने एक सप्ताह पहले वोट देते समय किसी व्यक्ति का चयन नहीं किया था, बल्कि पार्टी के चुनाव चिन्ह पर बटन दबाया था. ऐसा में पार्टी बदलने वाले जनप्रतिनिधि को अपनी जनता से राय लेने के लिए वापस चुनाव के मैदान में जाना चाहिए. लोकसभा और विधानसभा में दलबदल विरोधी कानून लागू है और इस कानून के अनुसार चुने गये जनप्रतिनिधि एक तिहाई संख्या में कभी भी किसी और पार्टी में जा सकते हैं, लेकिन नगर निकायों में यह कानून भी लागू नहीं है.

अब ऐसे में जब तक राइट टु रिकॉल का अधिकार जनता को नहीं मिल जाता है, तब तक जनता के पास एक हथियार है जिसका वह चाहे तो इस्तेमाल कर सकती है और वह हथियार है ऐसे धोखेबाज जनप्रतिनिधियों का सामाजिक बहिष्कार. इलाके में ऐसे नेताओं के किसी भी कार्यक्रम में जनता शिरकत न करे और न ही उन्हें अपने इलाके में किसी तरह का आयोजन करने दे. जन दबाव बनने से ही राजनीतिक दलों पर राइट टु रिकॉल लाने का दबाव भी बढ़ सकता है.

पश्चिम बंगाल में विध्वंस की राजनीति: मानस

प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष व पार्टी विधायक डॉ मानस भुइंया ने कहा कि कुछ पार्टी पार्षदों की हरकत सिर्फ दल ही नहीं, उस क्षेत्र की जनता के साथ विश्वासघात है. जिस पार्टी ने उम्मीदवार बनाया, जिसके चिन्ह पर वोट मांगा और चुनाव के बाद उन नीतियों को धत्ता बताते हुए अन्य पार्टी में शामिल हो गये. ऐसे लोगों के लिए राइट टु रिकॉल होना चाहिए, ताकि ये जनता के साथ विश्वासघात न कर सकें. जनतांत्रिक व्यवस्था में विपक्ष होता है और सत्तारूढ़ दल होता है.

विपक्ष सरकार की आलोचना करता है, लेकिन पश्चिम बंगाल में विध्वंस की राजनीति चल रही है. खरीद-फरोख्त को बढ़ावा दिया जा रहा है.

विपक्ष को पूरी तरह से समाप्त कर एकतांत्रिक व निरंकुश शासन व्यवस्था स्थापित करने की कोशिश की जा रही है, लेकिन कांग्रेस एक राष्ट्रीय पार्टी है. इसका स्वतंत्रता संग्राम के पहले से इतिहास है. यह एक बहती धारा है. इसे कोई भी पार्टी समाप्त नहीं कर सकती है.

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