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जस्टिस गांगुली को यौन उत्पीड़न में फंसाने की मिली थी धमकी

कोलकाता: पश्चिम बंगाल मानवाधिकार आयोग के चेयरमैन जस्टिस (अवकाशप्राप्त) अशोक कुमार गांगुली के इस्तीफे की मांग के बीच आयोग ने बुधवार को दावा किया कि कुछ दिन पहले जस्टिस गांगुली को यौन उत्पीड़न के मामले में फंसाने की धमकी दी गयी थी. आयोग ने इस मसले पर वेस्ट बंगाल स्टेट लॉ क्लर्क्‍स काउंसिल को तत्काल […]

कोलकाता: पश्चिम बंगाल मानवाधिकार आयोग के चेयरमैन जस्टिस (अवकाशप्राप्त) अशोक कुमार गांगुली के इस्तीफे की मांग के बीच आयोग ने बुधवार को दावा किया कि कुछ दिन पहले जस्टिस गांगुली को यौन उत्पीड़न के मामले में फंसाने की धमकी दी गयी थी. आयोग ने इस मसले पर वेस्ट बंगाल स्टेट लॉ क्लर्क्‍स काउंसिल को तत्काल कदम उठाने का निर्देश दिया है. बर्दवान कोर्ट की लॉ क्लर्क ने न्यायमूर्ति गांगुली को 18 सितंबर को पत्र लिखा था. उस पत्र में लिखा गया था ,‘ आप माकपा के दलाल हैं.

आपको माकपा से कितना भत्ता मिलता है. आप कृतघ्न और विश्वासघाती हैं. ममता दीदी ने आपको सम्मान दिया, लेकिन आप उन्हें शर्मिदा करने की कोशिश कर रहे हैं. सावधान रहें, मैं आपके खिलाफ यौन उत्पीड़न का मामला दायर करूंगी.’

बुधवार को इस पत्र का खुलासा आयोग के रजिस्ट्रार रवींद्रनाथ सामंत ने किया. उन्होंने कहा कि जस्टिस गांगुली ने यह पत्र वेस्ट बंगाल स्टेट लॉ क्लर्क्‍स को भेजा है. तीन सप्ताह के अंदर कार्रवाई करने का निर्देश दिया गया है. यह पूछे जाने कि इस पत्र का खुलासा उन्होंने तीन माह के बाद क्यों किया, सामंत ने कहा कि आयोग के चेयरमैन के सम्मान को देखते हुए इस पत्र को नजरंदाज किया गया था, लेकिन वर्तमान स्थिति में सोचा कि लोगों की इसकी जानकारी होनी चाहिए. इन सभी के पीछे एक साजिश हो सकती है. गौरतलब है कि लॉ इंटर्न का कथित तौर पर यौन उत्पीड़न करने के मामले में जस्टिस गांगुली पर आयोग के चेयरमैन पद से इस्तीफे का दबाव पड़ रहा है. उन्होंने इस्तीफा देने से साफ इनकार कर दिया है.

जस्टिस गांगुली के पक्ष में वकीलों की रैली
कलकत्ता हाइकोर्ट के 100 से अधिक वकीलों ने बुधवार को मौन जुलूस निकाल कर लॉ इंटर्न का यौन उत्पीड़न करने का आरोप ङोल रहे जस्टिस एके गांगुली के पक्ष में अपना समर्थन जताया. राज्य मानवाधिकार आयोग के चेयरमैन जस्टिस एके गांगुली के इस्तीफे की चौतरफा मांग के बीच इस रैली को अहम माना जा रहा है. कोलकाता नगर निगम के पूर्व मेयर और वरिष्ठ अधिवक्ता विकास रंजन भट्टाचार्य के नेतृत्व में वकीलों ने हाइकोर्ट परिसर में मौन जुलूस निकाल कर जस्टिस गांगुली के इस्तीफे की देशव्यापी मांग का विरोध किया.

गौरतलब है कि जस्टिस गांगुली पर एक लॉ इंटर्न का यौन उत्पीड़न करने का आरोप है. विकास रंजन भट्टाचार्य का कहना था कि सुप्रीम कोर्ट के जांच पैनल का कोई कानूनी औचित्य नहीं है. उनका कहना था कि राज्य मानवाधिकार आयोग की सिफारिशों से नुकसान ङोलने वाले मानवाधिकार विरोधी लॉबी का यह प्रयास है कि जस्टिस गांगुली को बलि का बकरा बनाया जाये. उनके इस्तीफे की मांग की जा रही है.

लेकिन आश्चर्यजनक रूप से उनके खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई की शुरुआत नहीं की गयी है. कोई शिकायत या एफआइआर दर्ज नहीं करायी गयी है. एक लॉबी द्वारा उनकी छवि धूमिल करने की यह कोशिश है जिन्हें उनकी सिफारिशों से नुकसान ङोलना पड़ा है.

भट्टाचार्य ने यह भी कहा कि यदि जस्टिस गांगुली कानूनी प्रक्रिया के बाद दोषी पाये जाते हैं तो उनका इस्तीफा होना चाहिए लेकिन बगैर आरोपों के सिद्ध हुए उन्हें दंडित करना स्वीकार नहीं किया जा सकता. एडिशनल सॉलिसिटर जनरल इंदिरा जयसिंह की भी वकीलों ने पीड़ित के हलफनामे के अंश को प्रकाशित करने पर विरोध जताया. वकील व कांग्रेस नेता अरुणाभ घोष का कहना था कि न्यायमूर्ति गांगुली को सही संवैधानिक प्रक्रिया के तहत ही हटाया जा सकता है. किसी का पक्ष सुने बिना उसे दंडित नहीं किया जा सकता लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश भर में लोग ऐसा ही चाह रहे हैं.

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