राजभवन पर विस में पारित विधेयकों को मंजूरी नहीं देने का आरोप
लंबित विधेयकों संबंधी बंगाल सरकार की याचिका को सूचीबद्ध करने पर विचार करेगा सुप्रीम कोर्ट
लंबित विधेयकों संबंधी बंगाल सरकार की याचिका को सूचीबद्ध करने पर विचार करेगा सुप्रीम कोर्ट कोलकाता. सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार की उस याचिका को सूचीबद्ध करने के संबंध में विचार करने पर शुक्रवार को सहमति व्यक्त की, जिसमें आरोप लगाया गया है कि राज्यपाल सीवी आनंद बोस आठ विधेयकों को मंजूरी नहीं दे रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश डीवाइ चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने राज्य सरकार की ओर से पेश वकील आस्था शर्मा की इस दलील पर गौर किया कि अप्रैल में दायर याचिका अभी तक सुनवाई के लिए सूचीबद्ध नहीं हुई है. प्रधान न्यायाधीश ने कहा : मैं विचार करूंगा. गौरतलब है कि राज्य सरकार ने अपनी याचिका में कहा कि विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों को बिना कोई कारण बताये मंजूरी देने से इनकार करना, संविधान के अनुच्छेद 200 के विपरीत है. इस अनुच्छेद के तहत राज्य विधानसभा द्वारा पारित विधेयक को राज्यपाल के समक्ष स्वीकृति के लिए प्रस्तुत करने की प्रक्रिया का प्रावधान करता है. राज्यपाल या तो स्वीकृति दे सकते हैं या स्वीकृति रोक सकते हैं या विधेयक को राष्ट्रपति के विचारार्थ भेज सकते हैं. इन विधेयकों को राज्यपाल की मंजूरी मिलने का इंतजार इनमें पश्चिम बंगाल विश्वविद्यालय कानून (संशोधन) विधेयक, पश्चिम बंगाल पशु एवं मत्स्य विज्ञान विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक, पश्चिम बंगाल निजी विश्वविद्यालय कानून (संशोधन) विधेयक, पश्चिम बंगाल कृषि विश्वविद्यालय कानून, पश्चिम बंगाल स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक, आलिया विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक शामिल हैं. इन विधेयकों को 2022 में राज्य विधानसभा द्वारा पारित किया गया था. पश्चिम बंगाल नगर व ग्राम (योजना एवं विकास) (संशोधन) विधेयक 2023 में पारित किया गया था. स्वीकृति के लिए लंबित कुछ विधेयक उस समय के हैं, जब वर्तमान उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ राज्य के राज्यपाल थे.
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है