भगवान की भक्ति में लगाने के लिए किये जाते हैं धार्मिक अनुष्ठान

आसनसोल : कन्यापुर हाई स्कूल के निकट ज्योति जिम के समक्ष दस दिवसीय श्रीमदभागवत सप्ताह ज्ञान भक्ति महायज्ञ के तृतीय दिन श्रीधामवृंदावन के आचार्य मृदूलकृष्ण गोस्वामी ने कपिल भगवान चरित्र, कपिल गीता व ध्रुव चरित्र का वर्णन किया.उन्होंने कहा कि भगवान में तन्मयता ही भागवत कथा का फल है. कथा का विस्तार पूर्वक व्याख्यान करते […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 25, 2018 2:41 AM
आसनसोल : कन्यापुर हाई स्कूल के निकट ज्योति जिम के समक्ष दस दिवसीय श्रीमदभागवत सप्ताह ज्ञान भक्ति महायज्ञ के तृतीय दिन श्रीधामवृंदावन के आचार्य मृदूलकृष्ण गोस्वामी ने कपिल भगवान चरित्र, कपिल गीता व ध्रुव चरित्र का वर्णन किया.उन्होंने कहा कि भगवान में तन्मयता ही भागवत कथा का फल है.
कथा का विस्तार पूर्वक व्याख्यान करते हुए आचार्य श्री गोस्वामी ने कहा कि श्रीमदभगावत कथा श्रवण करने मात्र से मानव की भगवान में तन्मयता हो जागृत हो जाती है. धर्म जगत में जितने भी योग , यज्ञ, तप, अनुष्ठान आदि किये जाते हैं, उन सबका एक ही लक्ष्य है कि भक्ति भगवान में लगी रहे और मानव अहर्निश प्रतिक्षण प्रभु प्रेम में ही समाया रहे. संसार के प्रत्येक कण में मात्र अपने प्रभु का ही दर्शन हो. श्रीमदभागवत कथा श्रवण मात्र से भक्त के हृदय में ऐसी भावनाएं समाहित हो जाते हैं और मन, वाणी और कर्म से प्रभु में लीन हो जाता है.
श्री व्यास जी ने कहा कि श्रीमदभागवत के प्रारंभ में सत्य की वंदना की गयी है क्योंकि सत्य व्यापक होता है. सत्य सर्वत्र होता है और सत्य की चाह सबको होती है. पिता अपने पुत्र से सत्य बोलने की अपेक्षा रखता है. भाई भाई से सत्य पर चलने की चेष्टा करता है. मित्र मित्र से सत्यता निभाने की कामना रखता है. चोरी करने वाले चारे भी आपस में सत्यता बरतने की अपेक्षा रखते हैं. इसलिए प्रारंभ में श्रीवेदव्यास जी ने सत्य की वंदना के द्वारा मंगलाचरण किया है और भागवत कथा का विश्राम ही सत्य की वंदना के द्वारा किया है.
सत्यं पं धीमहि क्योंकि सत्य ही कृष्ण है.सत्य ही प्रभु श्रीराम है. सत्य ही शिव एवं सत्य ही मां दुर्गा है. अत: कथा श्रवध करने वाला सत्य को अपनाता है सत्य में ही रम जाता है. यानी सत्य रूप परमात्मा में विशेष तन्मयता आ जाती है. मानव जीवन का सर्वश्रेष्ठ परम धर्म को अपने इष्ट के प्रति प्रगाढ भक्ति होना है.
श्री व्यास जी ने कहा कि श्रीमदभागवत में निष्कपट धर्म का वर्णन किया गया है. जो व्यक्ति निष्कपट हो, निर्मत्सर हो उसी व्यक्ति की कथा कहने एवं कथा श्रवण करने का अधिकार है. उन्होंने बताया कि श्रीमदभगावत कथा श्रवण करने का संकल्प लेने मात्र से अनिरूद्ध के पितामह श्रीकृष्ण भक्त के हृदय में आकर अवश्रद्ध हो जाते हैं.
कथा क्रम में श्री आचार्य ने श्रीमदभागवत को वेदरूपी वृक्ष् का पका हुआ फल बताया और अन्य फलों की अपेक्षा इस गवतरूपी फल में गुठली एवं छीलका ना होकर केवल भक्ति रस ही भरा है. इस कथा को जीवन पर्यन्तव्यक्ति को पान करना चाहिए. स्वामी पिताम्बर दास महाराज, नूनी गोपाल मंडल, आल्पना मंडल आदि उपस्थित थे.

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