महालया आज, शिल्पांचलवासी मां दुर्गा का करेंगे आवाहन

दुर्गापुर : मां दुर्गा की पूजा के एक दिन पहले सोमवार को महालया अर्थात मां का आवाहन पूजन होगा. महालया को लेकर दुर्गापुर व इसके आसपास के इलाके के श्रद्धालु उत्साहित हैं. दुर्गा मंदिरों में महालया की तैयारी हो चुकी है. आठ अक्टूबर को ब्रह्म मुहूर्त में दुर्गा सप्तशती का पाठ किया जायेगा. महालया मां […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 8, 2018 2:04 AM
दुर्गापुर : मां दुर्गा की पूजा के एक दिन पहले सोमवार को महालया अर्थात मां का आवाहन पूजन होगा. महालया को लेकर दुर्गापुर व इसके आसपास के इलाके के श्रद्धालु उत्साहित हैं. दुर्गा मंदिरों में महालया की तैयारी हो चुकी है. आठ अक्टूबर को ब्रह्म मुहूर्त में दुर्गा सप्तशती का पाठ किया जायेगा. महालया मां दुर्गा के आवाहन के रूप में मनाया जाता है.
महालया के दूसरे दिन पहली पूजा प्रारंभ हो रही है. बंगाली परिवार महालया के दिन घर-द्वार की सफाई करते हैं. कांग्रेस नेता देवेश चक्रवर्ती, सामाजिक कार्यकर्ता काजल गोस्वामी ने बताया कि परिवार के सारे सदस्य एकजुट होकर रेडियो-टीवी या कैसेट से चंडी पाठ का श्रवण करते हैं, तो लोगों की आध्यात्मिक शक्ति जाग उठती है.
उन्होंने बताया कि वर्षों पहले पश्चिम बंगाल के पंडित वीरेंद्र कृष्ण भद्र ने दुर्गा सप्तशती का पाठ किया, उन्हीं की आवाज में आज भी कैसेट व रेडियो से लोग महालया का आनंद लेते हैं. महालया से ही पूजा का माहौल शुरू हो जायेगा. सभी लोग पूजन कार्य में जुट जायेंगे. इस दिन कई लोग पितृ तर्पण भी नदी और तालाब के किनारे पहुंच कर करेंगे. सोमवार को महालया के बाद मंगलवार से दुर्गा के प्रथम स्वरूप शैलपुत्री की आराधना के साथ नवरात्र शुरू हो जायेगा.
महालया का महत्व एवं मान्यता
दुर्गापूजा या नवरात्र आराधना के पूर्व के दिन को महालया कहा जाता है. इस दिन मां दुर्गा का आवाहन किया जाता है. महालया के दिन मां दुर्गा की पूजा कर उनसे प्रार्थना की जाती है कि वे धरती पर आएं और अपने भक्तों को आशीर्वाद दे और उनकी रक्षा करें. मान्यता है कि महिषासुर से रक्षा के लिये देवी का आवाहन महालया के दिन ही किया गया था.
मां के आगमन की खुशी में नवरात्र महोत्सव मनाये जाने की परंपरा चली आ रही है. महालया पितृपक्ष का आखिरी दिन भी होता है. एक मान्यता यह भी है कि मां दुर्गा विवाह के बाद जब मायके लौटीं तो उनके आगमन पर खास तैयारी की गई. उनके आगमन को महालया के रूप में मनाने की परंपरा चली आ रही है. बांग्ला मान्यता के अनुसार महालया के दिन मूर्तिकार मां की आंखों को बनाते हैं. इसे चक्षुदान भी कहा जाता है.
अश्विन कृष्ण पक्ष का ही एक नाम महालया है. मां दुर्गा के आगमन के दिन को महालया के रूप में मनाया जाता है. महालया के अगले दिन से मां दुर्गा के नौ रूपों की आराधना नौ दिनों तक कलश स्थापना कर मंदिरों व घरों में की जाती है. मां शैलपुत्री से लेकर मां सिद्धिदात्री की आराधना को ही नवरात्र कहा जाता है.
महालया का अर्थ कुल देवी-देवता व पितरों का आवाहन है
पंडित गोपाल शर्मा बताते हैं कि महालया का मूल अर्थ कुल देवी-देवता व पितरों का आवाहन है. 15 दिनों तक पितृ पक्ष तिथि होती है और महालया के दिन सभी पितरों का विसर्जन होता है. अमावस्या के दिन पितर अपने पुत्रादि के द्वार पर पिंडदान एवं श्राद्ध की आशा से जाते हैं. पितरों को पिंडदान और तिलांजलि अवश्य करनी चाहिए.
लोग अमावस्या के दिन पितरों का तरपन व पारवन करते हैं. उनको दिया हुआ जल व पिंड पितरों को प्राप्त होता है. पितृ पक्ष में देवता अपना स्थान छोड़ देते हैं. देवताओं के स्थान पर 15 दिन पितरों का वास होता है. महालया के दिन पितर अपने पुत्रादि से पिंडदान व तिलांजलि को प्राप्त कर अपने पुत्र व परिवार को सुख-शांति व समृद्धि का आशीर्वाद प्रदान अपने घर चले जाते हैं. महालया से देवता फिर अपने स्थान पर वास करने लगते हैं. पितृ पक्ष में 15 दिन देवताओं की नहीं पितरों की पूजा-अर्चना होती है. महालया से देवी-देवताओं की पूजा शुरू हो जाती है.

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