शहीद-ए-आजम की शहादत से खिलवाड़ करना बेहद शर्मनाक
आसनसोल : शहीद-ए-आजम भगत सिंह की प्रतिमा के साथ विशेष धर्म का सैन्य प्रतीक जोड़े जाने का शहर के होटल व्यवसायियों ने कड़ी निंदा की है. उन्होंने कहा कि शिल्पांचल में पहली बार हो रहा है कि ऐसे सपूत की शहादत के साथ खिलवाड़ करने की हिमाकत की गई है. उन्होंने दोषियों के खिलाफ कार्रवाई […]
आसनसोल : शहीद-ए-आजम भगत सिंह की प्रतिमा के साथ विशेष धर्म का सैन्य प्रतीक जोड़े जाने का शहर के होटल व्यवसायियों ने कड़ी निंदा की है. उन्होंने कहा कि शिल्पांचल में पहली बार हो रहा है कि ऐसे सपूत की शहादत के साथ खिलवाड़ करने की हिमाकत की गई है. उन्होंने दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करने तथा प्रतिमा को पूर्व रूप में लाने की मांग की है.
होटल ऑनर्स एसोसिएशन (आसनसोल) के अध्यक्ष मनीन्दर कुंद्रा ने कहा कि भगत सिंह वीर और महान स्वतंत्रता सेनानी हैं. उनके स्मरण मात्र से देशवासियों के रगों में देशभक्ति की भावना उमड़ने लगती है. उनके बलिदान को हमेशा याद रखा जायेगा. उन्होंने कहा कि ऐसे शहीद को किसी सीमा में बांधने की कोशिश बेहद निंदनीय है. इस तरह की हरकत से जन मानस दु:खी है.
सचिव अशोक संथालिया ने कहा कि भगत सिंह राष्ट्रीय हीरो हैँ. देश के युवाओं के लिए प्रेरणा स्त्रोत है. उन्होंने आजादी के लिए अपना अलग रास्ता चुना था. वे देशवासियों के दिलों में बसे हैं. उनके जैसे महान राष्ट्रीय हीरो को किसी धर्म, जाति भाषा तक सीमित रखने को उनके सम्मान को छोटा करना है. इसके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए.
उपाध्यक्ष अनिल जालान ने भगत सिंह को आजादी का दीवाना बताया. उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता के लिए किसी भी हद तक जाने की तमन्ना उनकी रही थी. उन्होंने युवा पीढ़ी में अपनी शहादत से अलख जगाई. ऐसे दीवाने को धर्म, जाति के बंधनों में बांधने की हरकत शर्मनाक है. उन्होंने कहा कि प्रतिमा को पूर्व रूप में स्थापित किया जाना चाहिए. मेयर जितेन्द्र तिवारी इसमें हस्तक्षेप कर इसे पूर्व स्थिति में लाने की पहल करें.
संयुक्त सचिव सुधा देवी ने भगत सिंह को आजादी का महानायक बताया. उन्होंने कहा कि सशस्त्र आंदोलन के पक्षकार भगत सिंह ने आजादी के लिए अपनी अलग राह चुनी. बम फेंक कर आसानी से भाग निकल सकते थे परंतु उन्होंने खुद ही शहादत का रास्ता चुना. ऐसे महान और राष्ट्रीय हीरो को धर्म, जाति या राजनीति से जोड़ना उनके महान कद को आघात पहुंचाने जैसा है. इसे देश कभी बर्दाश्त नहीं करेगा. उन्होंने किसी जाति-धर्म के लिए शहादत नहीं दी थी.
सलाहकार वीके ढल्ल ने कहा कि महान नेताओं को विवादास्पद बनाने की गलत परंपरा शुरू हो गई है. आजादी की लड़ाई में सबसे बड़े कीरदार शहीद-ए-आजम को भी किसी धर्म या जाति में सीमित किया जायेगा, इसकी कल्पना भी कोई सचेत नागरिक नहीं कर सकता है. वे पूरे राष्ट्र के हैँ. जिला प्रशासन को इस दिशा में पहल करनी चाहिए.
व्यवसायी सचिन भालोदिया ने कहा कि भगत सिंह ने देश के लिए शहादत दी थी. किसी धर्म, जाति या प्रांत के लिए नहीं लड़े थे. उनकी कुर्बानी पूरी दुनिया में मिशाल है. उन्हें जाति, धर्म या प्रांत तक सीमित नहीं रखा जा सकता है. वे भारत, पाकिस्तान, नेपाल, अमेरिका, इंग्लेंड आदि देशों में भी अनुकरणीय हैं. उनकी शहादत से खिलवाड़ करना शर्मनाक और निंदनीय है.
एसोसिएशन के सलाहकार सह फॉस्बेक्की के महासचिव सुब्रत दत्त ने भगत सिंह को महान क्रांतिकारी बताते हुए कहा कि उन्होंने आजादी के लिए हंसते-हंसते अपने प्राणों को कुर्बान दी थी. भगत सिंह जैसे महान क्रांतिकारी को धर्म, जाति, भाषा के बंधनों में बांधने को अनुचित बताते हुए कहा कि ऐसा करना उनके सम्मान को छोटा करने जैसा है. उन्होंने कहा कि वे इसका प्रतिवाद करते हैं. प्रतिमा को पूर्व स्वरूप में लाना होगा.
रानीगंज में भी भगत सिंह के अपमान पर बढ़ा आक्रोश
रानीगंज : शहीद-ए-आजम की प्रतिमा भगत सिंह की प्रतिमा के साथ धार्मिक विशेष का सैन्य प्रतीक लगाये जाने के बाद रानीगंज में भी आक्रोश बढ़ता जा रहा है. साहित्यकारों ने भी इस पर कड़ी प्रतक्रिया की है.
साहित्य प्रेमी निर्मल झा ने बताया कि शहीद-ए-आजम भगत सिंह राष्ट्रीय हीरो है. उनको किसी खास धर्म का बताना बताना उस धर्म की महान गरिमा को भी कम करना है. इससे भगत सिंह का कद भी छोटा होता है. वे जाति, धर्म, भाषा, समुदाय से उपर हैं. इस हरकत का भरपूर विरोध होना चाहिए.
व्यवसायी रमेश लोयलका ने कहा कि भगत सिंह के पिता आर्य समाजी थे एवं भगत सिंह को किसी विशेष धर्म से जोड़ना न्याय संगत नहीं है. वह राष्ट्रभक्त थे और उन्होंने भारत के स्वाधीनता के लिए अपना जीवन बलिदान दिया था. उनके त्याग को बलिदान को स्मरण करना चाहिए. उन्हें किसी धर्म में सीमित करना उनकी शहादत पर सवालिया निशान लगाना है.
रानीगंज गौशाला के कोषाध्यक्ष सह व्यवसायी विमल लोहिया ने कहा कि शहीद-ए- आजम भगत सिंह के बलिदान यह देश कभी नहीं भूल पायेगा. उन्होंने अंतिम समय तक भी धर्म को नहीं माना. ऐसे व्यक्तित्व को किसी धर्म से जोड़ना, सच मानिए तो राष्ट्रीय हीरो को उनके सम्मान में ठेस पहुंचाना है. वे नास्तिक थे एवं उनके आदर्शों का अनुशरण करना चाहिए. उन्हें धर्म तक सीमित करनेवाले देश के हितकारी नहीं हो सकते.