कोलकाता : ”सिफर” नहीं है 84 वर्षों का ”सफर”

संजय हरलालका, कोलकाता : 84 वर्षों का हो गया मारवाड़ी सम्मेलन. जी हा, अखिल भारतवर्षीय मारवाड़ी सम्मेलन का 84वां स्थापना दिवस समारोह आज कलामंदिर सभागार में भव्य तरीके से मनाया जा रहा है. इस समारोह को लेकर पूरे देश में समाज के लोगों का उत्साह चरम पर है. समारोह का उद्घाटन पश्चिम बंगाल के राज्यपाल […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 25, 2018 3:23 AM
संजय हरलालका, कोलकाता : 84 वर्षों का हो गया मारवाड़ी सम्मेलन. जी हा, अखिल भारतवर्षीय मारवाड़ी सम्मेलन का 84वां स्थापना दिवस समारोह आज कलामंदिर सभागार में भव्य तरीके से मनाया जा रहा है.
इस समारोह को लेकर पूरे देश में समाज के लोगों का उत्साह चरम पर है. समारोह का उद्घाटन पश्चिम बंगाल के राज्यपाल केशरीनाथ त्रिपाठी के कर-कमलों से होगा तो बतौर मुख्य अतिथि वेदांता ग्रुप के चेयरमैन अनिल अग्रवाल लंदन से विशेष तौर पर इस समारोह में शरीक होने के लिए पधार रहे हैं.
मुख्य वक्ता बेलारूस के कौंसुल जनरल तथा मारवाड़ी सम्मेलन के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष सीताराम शर्मा, विशिष्ट अतिथि मारीशस गणराज्य के कौंसुल रघुनंदन मोदी, अतिथि के तौर पर समाजसेवी महेश भागचंदका के अलावा सम्मेलन के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष नंदलाल रुंगटा, हरिप्रसाद कानोड़िया, रामअवतार पोद्दार, प्रह्लादराय अगरवाला, समारोह की स्वागत समिति के चेयरमैन, पूर्व सांसद विवेक गुप्त उपस्थित रहेंगे.
समारोह की अध्यक्षता सम्मेलन के राष्ट्रीय अध्यक्ष संतोष सराफ करेंगे. इस मौके पर अनिल अग्रवाल को सम्मेलन के सर्वोच्च सम्मान मारवाड़ी सम्मेलन राजस्थानी व्यक्तित्व सम्मान-2017 भी प्रदान किया जायेगा. कुल मिलाकर यह समारोह समाज में अपनी एक अमिट छाप छोड़कर जायेगा.
सम्मेलन के 84 वर्षों के इतिहास पर नजर डालें तो पायेंगे इतना लंबा ‘सफर’, सिफर नहीं रहा है. इन 84 वर्षों में सम्मेलन ने काफी उतार-चढ़ाव देखे हैं. समाजहित में काफी कठिनाईयों का सामना किया है.
समयानुसार सम्मेलन ने अपने कार्यक्रमों एवं तौर-तरीकों में अवश्य बदलाव किया है, जो कि जरूरी भी होता है, किंतु अपने पथ एवं प्रण से नहीं डिगा. यही कारण है कि सम्मेलन का स्वरूप समाज में निरंतर उभरकर सामने आया है.
शनैः शनैः सम्मेलन की शाखाओं में इजाफा हो रहा है. पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्कल, झारखंड, दिल्ली, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, पूर्वोत्तर, तमिलनाडु, कर्नाटक से होते हुए उत्तराखंड, गुजरात, तेलंगाना जैसे नये प्रांतों तक सम्मेलन की पहुंच हो गयी है.
सम्मेलन की स्थापना के मूल में जायें तो 1935 में आये भारत विधेयक में ब्रिटिश सरकार ने जो श्वेत पत्र जारी किया था, उसके अनुसार, मारवाड़ी समाज के लोग, जो कि विभिन्न प्रदेशों में बसे हुए थे, और जो देशी राज्यों की प्रजा थी उन्हें ब्रिटिश राज्य की प्रजा के नागरिक अधिकारों से वंचित करने की बात कही गयी थी.
सम्मेलन के प्राण पुरुष रहे स्व. ईश्वर प्रसाद जालान के शब्दों में, ‘ऐसा होने से मारवाड़ी समाज के विभिन्न प्रदेशों में बसे लोगों को विदेशियों की तरह माना जाता और उनको न तो वोट देने का अधिकार होता और न ही कोई नागरिक अधिकार मिलता.’ मारवाड़ी समाज इस अधिकार से वंचित न रहे, इसको ध्यान में रखते हुए 1935 में ही अखिल भारतवर्षीय मारवाड़ी सम्मेलन की स्थापना की गयी थी, ताकि समाज के सभी वर्गों यथा – अग्रवाल, माहेश्वरी, ओसवाल, खंडेलवाल, ब्राह्मण, राजपूत आदि को एक बैनरतले लाकर अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ी जाये. सम्मेलन के प्रथम अध्यक्ष बने थे रामदेव चोखानी.
स्व. ईश्वर प्रसाद जालान के साथ ही स्व. काली प्रसाद खेतान, स्व. बद्री प्रसाद गोयनका आदि समाज को अपना अधिकार दिलाने लिए सचेष्ट हुए. इस कार्य में स्व. घनश्याम दास जी बिड़ला तथा सेठ जमुनालाल बजाज से भी संपर्क साधा गया. लंबी लड़ाई के बाद इन सबके सामूहिक प्रयासों से सभी प्रदेशों में मारवाड़ी समाज को अपना अधिकार प्राप्त हुआ था.
इस सफलता के पश्चात 1937 में सम्मेलन ने संगठन, व्यापार, राजनीति, शिक्षा एवं स्वास्थ्य जैसे मुद्दों को हाथ में लेकर कार्य शुरू किया. 1947 से 1961 के मध्य सम्मेलन ने समाज सुधार पर कार्य किया, जिसमें प्रमुख था पर्दा प्रथा का विरोध.
इस कार्य में सम्मेलन के लोगों को काफी विरोध का सामना करना पड़ा, बावजूद इसके सफलता मिली और सम्मेलन समाज के बीच चर्चा का केंद्र बन गया. 1962 से 1961 के बीच सम्मेलन ने विधवा विवाह का समर्थन, बाल विवाह का विरोध तथा छुआछूत को लेकर आवाज बुलंद की और संघर्ष किया.
इसके साथ ही समाज में व्याप्त दहेज प्रथा, वैवाहिक समारोह में फिजूलखर्ची का पुरजोर विरोध किया तथा बच्चों की शिक्षा पर बल दिया.
1973 में राजनीतिक रूप से सक्रिय समाजचिंतकों के हाथों में सम्मेलन की बागडोर आयी. समाज सुधार के मुद्दों पर महिला तथा युवाओं की महत्वपूर्ण भागीदारी को समझते हुए सम्मेलन ने अखिल भारतीय मारवाड़ी महिला सम्मेलन तथा अखिल भारतीय मारवाड़ी युवा मंच की स्थापना की. आज ये दोनों संगठन पूरे देश में अपनी शाखाओं के माध्यम से स्वतंत्र तरीके से कार्यरत हैं.
पूर्वोत्तर, ओड़िशा जैसे राज्यों में जब-जब समाज के लोगों पर विपत्ति आयी, तब सम्मेलन की महत्वपूर्ण भूमिका आज भी समाज के लोगों के जेहन में है. सम्मेलन ने समरसता पर हमेशा जोर दिया है. इसके तहत मारवाड़ी जिस प्रांत में रहते हैं, वहां की संस्कृति में रच-बस जायें.
विगत के कुछ वर्षों के क्रियाकलापों पर नजर डालें तो सम्मेलन ने वैवाहिक समारोह के दौरान महिलाओं द्वारा सड़कों पर नृत्य, वैवाहिक समारोह में मद्यपान, प्री-वेडिंग शूट, धार्मिक आडम्बर जैसी नयी पनपी कुरितियों का विरोध किया है.
समाज के बच्चों को उच्च शिक्षा में सहयोग, उन्हें रोजगार दिलाने, मायड़ भाषा के प्रचार-प्रसार, राजस्थानी भाषा की श्रीवृद्धि हेतु साहित्य पुरस्कार, समाजसेवा पुरस्कार, संस्कार-संस्कृति का प्रवाह बढ़ाने, वैवाहिक परिचय सहित अन्य अनेक मुद्दों पर सम्मेलन आज अपनी महती भूमिका निर्वाह रहा है.
वर्तमान में सम्मेलन के प्राणपुरुष, पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष सीताराम शर्मा, समाज सुधार कमेटी के चेयरमैन डॉ. जुगल किशोर सराफ, समाजसेवी रघुनंदन मोदी आदि के प्रयासों से समाज में निरंतर बढ़ रहे पारिवारिक एवं वैवाहिक विवादों के मद्देनजर हाल में ही वरिष्ठ एवं सम्मानित समाजजनों को लेकर गठित की गयी महापंचायत की समाज के बीच आज क्या भूमिका हो सकती है, इसको बताने की जरूरत महसूस नहीं होती.

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