दुर्घटना शून्य का लक्ष्य सिर्फ फाइलों में

कोल इंडिया : खुली खदानों के बावजूद विभिन्न कोयला कंपनियों में बढ़ रही खान दुर्घटनाएं आसनसोल : कोयला उद्योग के अस्तित्व में आने के बाद से अब तक भूमिगत कोयला खदानें दुर्घटना के हिसाब से सर्वाधिक असुरक्षित मानी गयी थीं. इससे उलट अब खुली खदानों में माइंस दुर्घटना में हो रहे लगातार इजाफा ने प्रबंधन […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 28, 2019 12:46 AM

कोल इंडिया : खुली खदानों के बावजूद विभिन्न कोयला कंपनियों में बढ़ रही खान दुर्घटनाएं

आसनसोल : कोयला उद्योग के अस्तित्व में आने के बाद से अब तक भूमिगत कोयला खदानें दुर्घटना के हिसाब से सर्वाधिक असुरक्षित मानी गयी थीं. इससे उलट अब खुली खदानों में माइंस दुर्घटना में हो रहे लगातार इजाफा ने प्रबंधन के कान खड़े कर दिये हैं.

वर्ष 2016 में इसीएल के ललमटिया खदान हादसे के बाद भी हाल के 10 दिन पहले डब्ल्यूसीएल की कुंभार कोलियरी में दो लोगों की मौत हो गई थी. 23 जुलाई की 11 बजे रात एमसीएल के भरतपुर ओसीपी में हुए हादसे में आठ से दस लोगों के दबे होने की आशंका जताई जा रही है.

बड़े हादसों के बाद भी प्रबंधन सचेत नहीं

वर्ष 2016 में कोल इंडिया की इसीएल की राजमहल परियोजना के ललमटिया में बड़ी खान दुघर्टना में 23 श्रमिकों की मौत हो गई थी. इसमें से 18 शव मिले थे. पर पांच श्रमिकों के शव नहीं मिले. अभी दस दिन पहले भी डब्ल्यूसीएल की कुंभार कोलियरी में गैस रिसाव से दो मजदूरों की मौत हो गई. इसी वर्ष 23 जुलाई की रात 11 बजे कोल इंडिया का अनुषंगी कंपनी एमसीएल के भरतपुर ओसीपी में डंप स्लाइड होने से आठ-दस मजदूरों के दबे होने की आशंका जतायी जा रही है. हालांकि युद्ध स्तर पर रेस्क्यू अभियान जारी है.

विदित हो कि वर्ष 1965 में तत्कालीन एनसीडीसी के समय बेरमो कोयलांचल की ढ़ोरी कोलियरी की भूमिगत खदान में अब तक का सबसे बड़ा खदान हादसा हुआ था. अचानक हुए विस्फोट में उस समय खदान के अंदर कार्यरत 350 श्रमिकों की मौत हो गई थी. ब्लास्ट इतना शक्तिशाली था कि कई श्रमिकों के शव के चिथड़े उड़ गये थे. अमलो परियोजना में ही कुछ वर्ष पहले एक निजी डंपर के उपर से गिर जाने के कारण दो लोगों की मौत हो गई थी. तारमी परियोजना में ही एक बार शॉवेल मशीन में आग लग गई जिसमें ऑपरेटर बाल-बाल बचा था.

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