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फेसबुक, वाट्सएप उपयोग से आप डीएसपीडी के शिकार तो नहीं बने!

सूर्योदय से पहले जगने की परंपरा हो रही है समाप्त जीवन के हर पहलू पर पड़ रहा इसका प्रतिकूल असर आसनसोल : ‘अर्ली टू बेड एंड अर्ली टू राइज, मेक्स अ मेन हेल्दी, वेल्दी एंड वाइज..’ अंगरेजी की यह कविता अब किताबों तक ही सीमित रह गयी है. अब तो ना कोई अर्ली बेड पर […]

सूर्योदय से पहले जगने की परंपरा हो रही है समाप्त
जीवन के हर पहलू पर पड़ रहा इसका प्रतिकूल असर
आसनसोल : ‘अर्ली टू बेड एंड अर्ली टू राइज, मेक्स अ मेन हेल्दी, वेल्दी एंड वाइज..’ अंगरेजी की यह कविता अब किताबों तक ही सीमित रह गयी है. अब तो ना कोई अर्ली बेड पर जाता है, ना ही कोई अर्ली जागता है. नयी-नयी तकनीकों से जिंदगी बेशक आसान हो गयी है, लेकिन इसका शरीर पर बेहद बुरा असर पड़ रहा है. लोगों के खाने-पीने से लेकर सोने तक का समय अनियमित हो गया है. पहले आसनसोल शहर में लोग रात 10 बजे तक सो जाते थे, पर अब यह समय आधी रात के बाद दो बजे तक आ गया है.
शहरों में बाहर तो भले सन्नाटा पसरा रहता है, लेकिन घरों में कोई भी 12 बजे से पहले नहीं सो पाता, क्योंकि उन्हें नींद नहीं आती. लाइफ में काम और भाग दौड़ की वजह से काफी टेंशन और प्रेशर रहता है. इस प्रेशर को रिलीज करने के लिए देर रात तक टीवी देखते हैं, या फोन पर इतने मशगूल हो जाते हैं कि उन्हें समय का पता ही नहीं चलता. देर रात तक सोते हैं और लेट सुबह तक सोते रह जाते हैं. साइंस भी कहता है कि शरीर को छह से आठ घंटे की नींद आवश्यक होती है. ऐसा नहीं होने की वजह से कई तरह की समस्याएं होती हैं. युवाओं में डीलेड स्लीप फेज डिसऑर्डर (डीएसपीडी) का प्रभाव ज्यादा देखने को मिल रहा है.
क्या है डीएसपीडी
डीलेड स्लीप फेज डिसऑर्डर यानी डीएसपीडी. नाम से ही समस्या की जानकारी मिलती है. इस बीमारी में सोने का वक्त बिगड़ जाता है. इस बीमारी में लोग आधी रात के बाद सो पाते हैं. उनके लिए सुबह समय पर उठना कष्टकारी होता है. इस बीमारी से ग्रसित लोग लगभग एक बजे के बाद ही सोते है और हर रोज लगभग उसी वक्त उन्हें नींद आती हैं. सुबह स्कूल और ऑफिस जानेवाले लोगों को ज्यादा तकलीफ होती है, क्योंकि या तो वह टाइम पर नहीं उठते या फिर वह उठने के बाद भी दिन भर आलस महसूस करते हैं.
सोशल साइट्स कर रहे प्रभावित
साइकियाट्रिस्ट डॉ शंशाक चटर्जी ने कहा कि लोगों के सोने का रूटीन गड़बड़ हो चुका है. अब कोई भी सही टाइम पर नहीं सोता है. हाल ही उनके यहां इसी तरह का एक केस आया था. पैरेंट्स की शिकायत थी कि उनका बेटा रात भर सोता नहीं है, बुक खोल कर पढ़ता है. फिर भी तीन सब्जेक्ट में क्रॉस लग गया. पैरेंट्स चिंतित थे कि रात- रात भर जागने के बाद भी कैसे फेल हो गया? जब यह रात भर पढ़ता नहीं है तो जाग कर करता क्या है. वह लड़का रात भर फेसबुक पर ऑनलाइन रहता था. इसका ध्यान किताब में होता ही नहीं था. फेसबुक पर ऑनलाइन रहने के लिए जागता था.
केस नंबर वन
असनसोल चेंबर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष सह फॉस्बेक्की के महासचिव सुब्रत दत्त इमरजेंसी न हो तो किसी भी हालत में सुबह दस बजे से पहले सोकर नहीं उठते हैं. होटल का व्यवसाय होने के बाद भी वे दोपहर एक बजे के बाद ही होटल में आते हैं. जबकि उनके होटल का चेक टाइम दोपहर 12 बजे हैं. उनका कहना है कि उन्हें जल्दी नींद ही नहीं आती है. पत्नी की नींद को ध्यान में रखते हुए टीवी नहीं देखते, इस कारण दो से ढ़ाई बजे तक फेसबुक व अन्य सोशल साइट्स पर सक्रिय रहते हैं. हालांकि वे अपने व्यवसाय पर पड़ रहे प्रतिकूल असर से अवगत हैं.
केस नंबर दो
शहर निवासी संतोष मंडल मीडिया से सक्रिय रूप से जुड़े हुए है. फोटोग्राफी का कार्य करते हैं. लेकिन वे भी अवश्यक न हो तो दस बजे से पहले सोकर नहीं उठते हैं. इस कारण सुबह में होनेवाली घटनाएं तथा कार्यक्रमों में वे नहीं पहुंच पाते हैं. इनकी तस्वीरें वे मैनेज करते हैं. इसके लिए उन्हें अपने वरीय सहयोगियों से डांट भी सुननी पड़ती है. लेकिन वे भी रात को दो बजे से पहले सो नहीं पाते हैं. उनका तर्क है कि दिनभर की व्यस्तता के कारण रात में ही मौका मिलता है. दो बजे रात तक सोशल मीडिया पर सक्रिय रहते हैं.
केस नंबर तीन
श्हर के प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग कॉलेज से सिविल में बी टेक की पढ़ाई कर रहे हैं अरुणाभ सरकार. मेदिनीपुर में पिता सरकारी कर्मचारी है. किराये के मकान में रह कर पढ़ाई कर रहे हैं. लेकिन उनका रिजल्ट हर सेमेस्टर में बिगड़ता जा रहा है. हालांकि उन्हें किसी तरह की नशा नहीं है. लेकिन सोशल मीडिया की सक्रियता उन्हें देर रात तक जगाये रखती है. इस कारण न वे समय पर उठ पाते हैं और न पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित कर पा रहे हैं. देर से उठने के कारण कई क्लास भी मिस कर जाते हैं.

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