सूख गयी डीहिका जल कुआं के पास नदी
आसनसोल : दामोदर घाटी निगम (डीवीसी) के मैथन व पंचेत जलाशयों के जल स्तर में आयी भारी गिरावट व दामोतर नदी के निचले इलाकों में छोड़े जाने वाले पानी की मात्र में 50 फीसदी कटौती किये जाने का असर दामोदर नदी में दिखने लगा है. डिसरगढ़ से लेकर अंडाल तक अधिसंख्य स्थलों पर इसका जल […]
आसनसोल : दामोदर घाटी निगम (डीवीसी) के मैथन व पंचेत जलाशयों के जल स्तर में आयी भारी गिरावट व दामोतर नदी के निचले इलाकों में छोड़े जाने वाले पानी की मात्र में 50 फीसदी कटौती किये जाने का असर दामोदर नदी में दिखने लगा है. डिसरगढ़ से लेकर अंडाल तक अधिसंख्य स्थलों पर इसका जल स्तर मुश्किल से तीन से चार फुट रह गया है.
इससे डीहिका (हीरापुर) में लगा 10 एमजीडी क्षमता का वाटर प्रोजेक्ट भी प्रभावित होने के कगार पर है. नदी बेड में बने कुएं के पास जल स्तर एक फुट से भी कम हो गया है. पांच में से मात्र तीन पंपों से जल निकासी की जा रही है.
लोक स्वास्थ्य व अभियंत्रण विभाग (पीएचइडी) व आसनसोल नगर निगम के सूत्रों ने कहा कि भले ही इस समय जलापूत्तर्ि पर कोई खास असर नहीं पड़ रहा है. लेकिन आनेवाले समय में इसका प्रभाव काफी होगा. इसके लिए अभी से ही तैयारी करनी होगी. उन्होंने कहा कि आसनसोल शहर में जलापूत्तर्ि मुख्यत: दामोदर नदी पर आधारित है.
आबादी की दस से 15 फीसदी कुओं व नलकूपों पर आधारित है. भौगोलिक स्कर पर यह शहर सूखा प्रोन के तहत आता है. इसके कारण यहां बारिश राज्य के अन्य क्षेत्रों की तुलना में कम होती है. दशकों से इलाके में भूमिगत खदानों की सक्रियता के कारण यहं की मिट्टी में जल धारण करने की क्षमता काफी कम है. इसके कारण पेयजल, खेतों की सिंचाई तथा औद्योगिक उपयोग के लिए पानी की कमी बनी रहती है.
केंद्र सरकार ने वर्ष 2006 में आसनसोल सहित देश के सौ से भी अधिक शहरों की समस्याओं का आकलन कर सिटी डेवलपमेंट रिपोर्ट तैयार की थी. उसमें अन्य शहरों के साथ ही आसनसोल शहर की आबादी के आधार पर पेयजल की मात्र का आकलन किया था. वर्ष 1991 में हुयी जनगणना के आधार पर इस शहर के लिए 8.56 एमजीडी पानी की आवश्यकता थी.
वर्ष 1991 में शहर में उपलब्ध पेयजल की मात्र सात एमजीडी को बेस लाइन बनाया गया था. इस आधार पर ही वर्ष 1991 में मांग व आपूत्तर्ि के बीच 1.56 एमजीडी पानी का गैप था. वर्ष 2001 में हुयी जनगणना के आधार पर पेयजल की मांग 15.53 एमजीडी हो गयी तथा बेस लाइन से मांग व आपूत्तर्ि के बीच का गैप 8.53 एमजीडी हो गया.
वर्ष 2011 में हुयी जनगणना के आधार पर पेयजल की मांग 17.84 एमजीडी तक पहुंच गयी. इस तरह मांग व आपूत्तर्ि के बीच का गैप 10.84 यानी 11 एमजीडी तक पहुंच गया. इसके आधार पर आकलन किया गया कि वर्ष 2021 में रही आबादी के लिए 22.56 एमजीडी पेयजल की जरूरत होगी तथा वर्ष 2025 की आबादी को देखते हुए 24.78 एमजीडी पेयजल की जरूरत इस शहर को होगी.
वर्ष 2011 में मांग व आपूत्तर्ि के 11 एमजीडी गैप की संभावना को देखते हुए ही उस रिपोर्ट में शीघ्र 10 एमजीडी क्षमता के वाटर ट्रीटमेंट प्लांट की आवश्यकता जतायी गयी थी. इसक ेलिए विस्तृत विवरण भी दिया गया था. सव्रे में यह बात सामने आयी थी कि शहर की मौजूदा जलापूत्तर्ि व्यवस्था में रखरखाव व मरम्मत की बेहतर व्यवस्था नहीं होने के कारण 40 फीसदी पेयजल बर्बाद हो जाता है. या तो पाइप फट जाते हैं या अवैध कनेक्शन किये जाते हैं.
इस बर्बादी को भी रोकने की व्यवस्था की गयी थी. प्रस्तावित नये वाटर ट्रीटमेंट प्लांट के लिए 60 करोड़ रुपये का आकलन किया गया था. इसमें दामोदर नदी के बीच में कुआं बनाने, ओवरहेड टंकी (रिजर्बर) बनाने तथा शहर के विभिन्न क्षेत्रों में वितरण के लिए नेटवर्क बनाना शामिल था. इसके साथ ही शहर में मौजूदा वाटर सप्लाई प्लांट व उसके तंत्र के लिए 20 करोड़ रुपये के आवंटन की बात कही गयी थी. इस राशि से पाइपों की बदली, विभिन्न टंकियों की मरम्मत तथा अन्य कार्य होने थे. इसके साथ ही सभी प्लाटों के ऑपरेशन व मेंटनेंस मद में 10 करोड़ रुपये के आवंटन की बात कही गयी थी.
इससे पाइप लाइन, पंप व मशीनरी आदि की खरीदारी की जानी थी. भविष्य में मांग व आपूत्तर्ि के बीच बढ़ते गैप को केंद्र में रख कर जलापूत्तर्ि से संबंधित आंक ड़े (डाटा) संग्रह, भूमिगत जल की स्थिति में हो रहे बदलाव के अध्ययन तथा भौगोलिक सव्रे आदि की आवश्यकता जतायी गयी थी तथा इस मद में 1.25 करोड़ रुपये का आवंटन किये जाने की बात शामिल थी. आम नागरिकों को इस जल संकट के प्रति जागरूक ्रकरने की भी जरूरत को देखते हुए इस मद में 12 लाख रुपये के आवंटन की बात शामिल थी.
इस परियोजना में कुल खर्च 91.37 करोड़ रुपये का था. इस रिपोर्ट के आदार पर ही केंद्र सरकार ने जवाहर लाल नेहरू अर्बन रिन्यूअल मिशन (जेएनएनयूआरएम) के तहत इस परियोजना को मंजूरी दी थी, जो डीहिका वाटर प्रोजेक्ट के रूप में सामने आया है.