पति की जीत दुहराने की कड़ी चुनौती

उत्तरदायित्व. रानीगंज में तृणमूल ने विधायक सोहराब की पत्नी को बनाया है प्रत्याशी आसनसोल नगर निगम में कई बार पार्षद रहे सोहराब अली ने वर्ष 2001 में हीरापुर विधानसभा क्षेत्र से विधायक बनने के लिए राजद प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ा था. उन्हें वाममोर्चा का आधिकारिक समर्थन प्राप्त था. लेकिन माकपा के सक्रिय कार्यकर्ता […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 10, 2016 12:20 AM
उत्तरदायित्व. रानीगंज में तृणमूल ने विधायक सोहराब की पत्नी को बनाया है प्रत्याशी
आसनसोल नगर निगम में कई बार पार्षद रहे सोहराब अली ने वर्ष 2001 में हीरापुर विधानसभा क्षेत्र से विधायक बनने के लिए राजद प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ा था. उन्हें वाममोर्चा का आधिकारिक समर्थन प्राप्त था. लेकिन माकपा के सक्रिय कार्यकर्ता दिलीप घोष ने अलग से चुनाव लड़ा.
वाममोर्चा का अधिसंख्य मत श्री घोष को मिला और वे तीसरे स्थान पर चले गये. लेकिन वर्ष 2011 में वे तृणमूल प्रत्याशी के रूप से चुनाव लड़े तथा जीत दर्ज की. लोहा चोरी के मामले में दो वर्ष की सजा मिलने के बाद इस चुनाव में पार्टी ने उनकी पत्नी व पार्षद नरगिस बानो को प्रत्याशी बनाया है. उन्हें अपने पति की राजनीतिक विरासत संभालने की चुनौती है.
आसनसोल : प्राचीन व्यवसायिक शहर रहे रानीगंज विधानसभा क्षेत्र से तृणमूल कांग्रेस ने निवर्त्तमान विधायक सोहराब की पत्नी व पार्षद नरगिस बानो को प्रत्याशी बनाया है जबकि माकपा ने पिछले चुनाव के प्रत्याशी रुणु दत्त पर ही बाजी खेलने का निर्णय लिया है. निवर्त्तमान विधायक सोहराब दल बदलने में काफी माहिर माने जाते रहे हैं. लोहे के स्क्रैप के व्यवसाय से जुड़े रहने के बाद भी राजनीति में उनकी काफी रूचि रही है. आसनसोल नगर निगम में पहले वे आरएसपी के पार्षद बने. इसके बाद वर्ष 2001 में राजद के टिकट पर हीरापुर से विधानसभा चुनाव लड़ा. लेकिन पराजय मिली. इसके बाद वे फिर आरएसपी में चले गये.
कुछ समय के लिए वे तृणमूल में शामिल हुए लेकिन फिर वाममोर्चा में शामिल हो गये. वर्ष 2010 तक वे आसनसोल नगर निगम में वामपंथी पार्षद रहे लेकिन वर्ष 2011 के विधानसभा चुनाव के पहले वे पुन: तृणमूल में शामिल हो गये. कांग्रेस व तृणमूल गंठबंधन के प्रत्याशी के रूप में उन्होंने रानीगंज विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा तथा वर्ष 1977 से वामपंथियों के अपराजेय रहे रानीगंज पर घास-फूल की जीत दर्ज की. हालांकि उनकी जीत दो हजार से भी कम मतों से थी.
लोहा चोरी के मामले में निचली अदालत ने उन्हें दो वर्ष की सजा दे दी. हालांकि उन्हें तत्काल जमानत भी मिल गयी. फिलहाल वे जमानत पर ही है. नगर निगम चुनाव में इसी कारण पार्टी ने उन्हें प्रत्याशी नहीं बनाया. तकनीकी कारणों से उनकी पत्नी नरगिस बानो को निर्दल प्रार्थी के रूप में चुनाव लड़ना पड़ा. चुनाव जीतने के बाद उन्हें तृणमूल में शामिल होना पड़ा. विधानसभा चुनाव में भी पार्टी ने उनकी पत्नी को प्रत्याशी घोषित किया है.
इधर उन्होंने कोर्ट में सजा के खिलाफ याचिका दायर कर रखी है. यदि वे बरी हो जाते हैं तो अधिक संभावना है कि वे ही चुनाव लड़े. अन्यथा उनकी पत्नी का लड़ना तय है. पिछले चुनाव में उन्हें 73,810 मत मिले थे. जो कुल मतदान का 47.83 फीसदी था. उन्होंने तृणमूल के मत 27.14 फीसदी की वृद्धि दर्ज की थी. उनके प्रतिद्वंदी माकपा के रुणु दत्त को 72,059 मत मिले थे. जो कुल मतदान का 46.70 फीसदी था. माकपा के मत में 25.59 फीसदी की कमी आयी थी. भाजपा को 3.51 फीसदी तथा जनता दल (यू) को 1.95 फीसदी मत मिले थे. नरगिस को मतों की फीसदी बनाये रखने की चुनौती है.
कोर्ट के एक निर्णय से राजनीतिक जीवन में उथल-पुथल
वर्ष 2011 में विधायक चुने जाने से पहले वर्ष 2009 में हुए आसनसोल नगर निगम में सोहराब आरएसपी के पार्षद चुने गये थे. लेकिन चुनाव में विधायक बनने के बाद उन्होंने नगर निगम बोर्ड की बैठकों में काफी कम उपस्थिति दर्ज की.
सरकार में कोई दायित्व नहीं मिलने के बाद भी रानीगंज विधानसभा क्षेत्र में उनकी सक्रियता बनी रही. लेकिन वर्ष 2015 के आरंभ में आसनसोल कोर्ट का निर्णय उनके राजनीतिक जीवन के लिए परेशानी का सबब बन गया. कोर्ट ने लोहा चोरी के मामले में उन्हें दो वर्ष की सजा सुनायी. सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के अनुसार दो वर्ष या उससे अधिक समय के लिए सजायाफ्ता व्यक्ति चुनाव नहीं लड़ सकता तथा विधायक भी नहीं रह सकता.
वाममोर्चा ने इसे राज्यस्तरीय मुद्दा बनाया तथा सोहराब से इस्तीफे की मांग की. लेकिन उन्होंने यह मामला पार्टी हाई कमान पर छोड़ दिया. इधर कई बार यह मामला विधानसभा में उठा. लेकिन हर बार विधानसभा अध्यक्ष ने कहा कि आधिकारिक तौर पर उन्हें सजा की सूचना नहीं मिली है. इसलिए वे कोई कार्रवाई नहीं कर सकते हैं. इस बीच नगर निगम चुनाव में दुविधा की स्थिति बनी रही. पार्टी ने उनकी पत्नी नरगिस को प्रत्याशी बनाया. लेकिन तकनीकी कारणों से वे निर्दल हो गयीं.
सोहराब ने नामांकन करने के बाद अपना नामांकन वापस ले लिया. चुनाव में जीतने के बाद भी नरगिस को नगर निगम में कोई महत्वपूर्ण पद नहीं मिला. बल्कि अल्पसंख्यक कोटे से तब्बसुम आरा को उपमेयर बना दिया गया. इसका अर्थ लगाया गया कि पार्टी हाई कमान उनसे नाराज है. रानीगंज से उनके टिकट काटे जाने की बात कही जाने लगी. विकल्प में प्रार्थियों की चर्चा भी होने लगी. लेकिन पार्टी की सूची में उनकी पत्नी नरगिस को पार्टी प्रत्याशी बनाया गया था. फिलहाल श्री अली कोर्ट में ध्यान केंद्रित किये हुए हैं. यदि कोर्ट उन्हें बरी कर देती है तो संभवत: वे ही प्रत्याशी बन सकते हैं.
हर चुनाव में माकपा ने दी कड़ी टक्कर हार के बाद भी
विधानसभा चुनाव में कांग्रेस व तृणमूल कांग्रेस के बीच गंठबंधन होने के कारण तृणमूल को वर्ष 2011 में काफी बढ़त मिली. प्रत्याशी सोहराब अली ने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी माकपा के रुणु दत्त को 1751 मतों से पराजित किया. लेकिन वर्ष 2014 में हुए संसदीय चुनाव में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में उठी भाजपा की आंधी ने इस विधानसभा क्षेत्र में अपना प्रभाव दिखाया.
इसमें भाजपा प्रार्थी बाबुल सुप्रिय को 61,758 मत, तृणमूल प्रत्याशी दोला सेन को 48,766 मत तथा माकपा प्रत्याशी वंशगोपाल चौधरी को 45,361 मत मिले. इस तरह भाजपा को 40 फीसदी, तृणमूल को 31 फीसदी तथा माकपा को 29 फीसदी मत इस विधानसभा क्षेत्र में मिले थे. भाजपा को 13 हजार से अधिक मतों से बढ़त मिली थी. इसके बाद यह माना जाने लगा था कि इस विधानसभा क्षेत्र में भाजपा का प्रभाव बढ़ने लगा है.
लेकिन वर्ष 2015 में हुए नगर निगम चुनाव में माकपा ने फिर से मजबूत वापसी की. रानीगंज शहर के 11 वार्डो मे ं से तृणमूल को छह तथा माकपा को पांच वार्ड में जीत मिली. वाममोर्चा ने आरोप लगाया कि बड़े पैमाने पर बूथ रीगिंग की गयी. भाजपा को एक भी वार्ड पर जीत नहीं मिली. इस स्थिति में इस बार भी तृणमूल व वाममोर्चा के बीच क ड़ी टक्कर की संभावना है.
266 बूथों पर 2.28 लाख मतदाता करेंगे मतदान
आगामी विधानसभा चुनाव में रानीगंज विधानसभा क्षेत्र के 2,28,461 मतदाता कुल 266 बूथों पर अपने मताधिकार का उपयोग करेंगे. चुनाव विभाग के आंक ड़ों के अनुसार कुल मतदाताओं में 1,21,724 मतदाता पुरुष हैं, जबकि महिला मतदाताओं की संख्या 1,06,737 है. इस विधानसभा क्षेत्र का दायरा अधिक होने के कारण मतदाताओं की सुविधा का पूरा ख्याल रखा गया है.
तीसरी बार विधायक बनने की चुनौती है तापस के सामने
स्वतंत्रता के बाद पश्चिम बंगाल में वर्ष 1952 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में रानीगंज से दो प्रतिनिधियों के चयन की व्यवस्था थी. चुनाव में 11 प्रत्याशी थे. इनमें से निर्दल प्रत्याशी पशुपति नाथ मालिया तथा कांग्रेस के बांके बिहारी मंडल विजयी हुए थे.
लेकिन उसी वर्ष 24 सितंबर को क्षेत्र के हुए उपचुनाव में ध्वजाधारी मंडल विधायक चुने गये. वर्ष 1962 में इस विधानसभा क्षेत्र का नाम बदल कर अंडाल कर दिया गया. हालांकि इस बार भी उसे दो प्रतिनिधि चुनने का अधिकार मिला था. इस बार सात प्रत्याशी चुनाव मैदान में थे. लेकिन कांग्रेस के आनंद गोपाल मुखर्जी तथा ध्वजाधारी मंडल (एससी) विधायक चुने गये. उन्हें सीपीआइ के प्रत्याशी रोबिन सेन व भगवान प्रीत सौरथ (एससी) से टक्कर मिली.
वर्ष 1962 में इसका नाम फिर से रानीगंज कर दिया गया. इस बार इसे एक प्रतिनिधित्व मिला तथा यह अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हो गया. चुनाव में तीन प्रत्याशी थे. सीपीआइ के लखन बागदी ने कांग्रेस के विधायक ध्वजाधारी मंडल को पराजित कर दिया. वर्ष 1967 में हुए चुनाव में रानीगंज क्षेत्र का विभाजन कर दिया गया. नव निर्मित क्षेत्र उखड़ा को अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित कर रानीगंज को सामान्य क्षेत्र बना दिया गया.
इस चुनाव में संघर्ष त्रिकोणीय था. सीपीएम के प्रत्याशी हराधन राय ने कांग्रेस प्रत्याशी समरेश चन्द्र घोष को एक हजार मतों के अंतर से हराया. वामपंथी पार्टी की क्षेत्र से दूसरी जीत थी. दो वर्ष बाद ही वर्ष 1969 में हुए मध्यावधि चुनाव में फिर त्रिकोणीय संघर्ष हुआ. इस बार सीपीएम के हराधन राय ने कांग्रेस प्रार्थी डॉ समरेश चन्द्र घोष को साढ़े पांच हजार से अधिक मतों से पराजित कर लगातार दूसरी जीत दर्ज की. इसके दो वर्ष बाद वर्ष 1971 में फिर से विधानसभा चुनाव हुए. इस बार भी तीन प्रत्याशी चुनाव मैदान में थे.
लेकिन सीपीएम के हराधन राय ने जीत की हैट्रिक बनाते हुए कांग्रेस प्रत्याशी रविन्द्र मुखर्जी को इकतरफा 25 हजार मतों से पराजित किया. उन्हें 76 फीसदी से अधिक मत मिले थे. वर्ष 1972 में इंदिरा गांधी की लहर के बाद भी विधानसभा चुनाव में सीपीएम के हराधन राय ने कांग्रेस प्रत्याशी रवीन्द्र नाथ मुखर्जी को आठ हजार मतों से पराजित किया तथा लगातार चौथी जीत दर्ज की. इस बार भी उन्हें 68 फीसदी मत मिले थे. आपातकाल के बाद वर्ष 1977 में हुए चुनाव में सीपीएम के हराधन राय ने चार प्रत्याशियों के बीच इकतरफा जीत दर्ज कर कांग्रेस प्रार्थी सरोजाक्षा मुखर्जी को 18 हजार से अधिक मतों से पराजित किया. यह उनकी लगातार पांचवीं जीत थी.
वर्ष 1982 में हुए विधानसभा चुनाव में भी सीपीएम प्रत्याशी हराधन राय ने लगातार छठी जीत का रिकॉर्ड बनाया. उन्होंने कांग्रेस के हरे कृष्ण गोस्वामी को 17 हजार मतों से पराजित किया.
वर्ष 1987 के विधानसभा चुनाव में सीपीएम ने अपना प्रत्याशी बदलते हुए छात्र राजनीति से आये वंशगोपाल चौधरी को प्रत्याशी बनाया. उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी कल्याणी विश्वास को 27 हजार से अधिक मतों से पराजित किया. इसके चार वर्ष बाद ही फिर से वर्ष 1991 में विधानसभा चुनाव चुनाव हुआ. इसमें सीपीएम प्रत्याशी वंशगोपाल चौधरी ने कांग्रेस प्रत्याशी शंकर दत्ता को 34 हजार मतों से हराया. लेकिन इस चुनाव में भाजपा राजनीतिक शक्ति के रूप में उभरी. उसके प्रत्याशी अमरनाथ केसरी को 12 हजार से अधिक मत मिले.
इस जीत के बाद वंशगोपाल चौधरी वोकेशनल ट्रेनिंग के स्वतंत्र प्रभार के राज्यमंत्री बनाये गये. वर्ष 1996 में हुए चुनाव में सीपीएम प्रार्थी वंशगोपाल चौधरी ने कांग्रेस प्रत्याशी सोनापति मंडल को 36 हजार मतों से पराजित किया. भाजपा के मिले मत घट कर पांच हजार पर आ गये.
इस जीत के बाद वंशगोपाल राज्य सरकार में तकनीकी शिक्षा व प्रशिक्षण विभाग के मंत्री बनाये गये. वर्ष 2001 में अगला विधानसभा चुनाव हुआ. चार प्रत्याशियों की लड़ाई में सीपीएम के प्रत्याशी श्री चौधरी को इकतरफा जीत मिली. उन्हें 84,264 मत तथा कांग्रेस प्रार्थी शम्पा सरकार को 21,688 मत मिले. इस जीत के बाद गठित सरकार में वंशगोपाल कॉटेज व स्मॉल स्केल इंडस्ट्रीज मंत्री बने.
वर्ष 2006 में सीपईएम ने अपना प्रत्याशी बदल दिया. इस बार हराधन झा को प्रत्याशी बनाया गया. जबकि तृणमूल प्रत्याशी जितेन्द्र तिवारी बनाये गये. हराधन झा ने 68 फीसदी मत हासिल कर 71,981 मत प्राप्त किया. जबकि तृणमूल प्रत्याशी श्री तिवारी को 21,810 (20.69 फीसदी) मत मिले. उन्होंने श्री तिवारी को 50 हजार मतों से पराजित किया.

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