फक्कड़ कवि कुमुद शर्मा ने दुनिया को अलविदा कहा

बर्नपुर : अपने फक्क ड़पन के लिए चर्चित रहे जनवादी कवि कुमुद शर्मा ने गुरुवार की सुबह बर्नपुर अस्पताल में आखिरी सांसे ली. उन्हें बुधवार को इलाज के लिए अस्पताल में दाखिल कराया गया था. उनके पार्थिव शरीर का दाह संस्कार दामोदर नदी के किनारे श्मशान घाट पर किया गया. बड़ी संख्या में उपस्थित उनके […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 29, 2016 12:01 AM
बर्नपुर : अपने फक्क ड़पन के लिए चर्चित रहे जनवादी कवि कुमुद शर्मा ने गुरुवार की सुबह बर्नपुर अस्पताल में आखिरी सांसे ली. उन्हें बुधवार को इलाज के लिए अस्पताल में दाखिल कराया गया था.
उनके पार्थिव शरीर का दाह संस्कार दामोदर नदी के किनारे श्मशान घाट पर किया गया. बड़ी संख्या में उपस्थित उनके परिजनों, मित्रों व सहयोगियों ने उन्हें नम आंखों से विदाई दी. मेयर जितेन्द्र तिवारी , पूर्व सांसद आरसी सिंह सहित विभिन्न हिंदी प्रेमियों ने उनके प्रयाण पर शोक जताया है.
हीरापुर थाना अंतर्गत रामबांध निवासी रहे कुमुद शर्मा को साहित्य के प्रति अनुराग वंशानुगत मिला था. उनके पिता राजकिशोर शर्मा इंडियन आयरन स्टील कंपनी (इस्को) के कर्मचारी होने के साथ-साथ साहित्य प्रेमी भी थे. उनका लिखा गया गीत -‘हम गरीबन के सुनेवाला के बा’ काफी चर्चित हुआ था.
नाटक में भी वे सक्रिय भागीदारी करते थे तथा इप्टा के साथ जुड़े हुए थे. यही कारण है कि बचपन से ही साहित्य के प्रति उनका लगाव रहा. पांच भाई व तीन बहनों के बीच कुमुद कभी अपने जीवन के प्रति गंभीर नहीं रहे. भाषा व यथार्थ की समझ होते ही कोरे कागद पर कविताएं उभरने लगी. नाटक में भी भाग लिया. नाटक भी लिखे. पिता की तुलना में उनमें अतिरिक्त विशिष्टता फक्क ड़पन का था.
उन्होंने जीवन को कभी गंभीरता से लिया ही नहीं. साहित्य ही ओढ़ते व पहनते रहे. परिजनों के काफी दबाब के बाद एनडी राष्ट्रीय विद्यालय में कुछ समय के लिए शिक्षक भी रहे. लेकिन मन नहीं रमा और अध्यापन का कार्य छोड़ दिया. विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में छपने का कभी शौक नहीं रहा.
लेकिन पुस्तक व पत्रिकाओं के प्रेमी रहे. पांच सौ से अधिक पुस्तकें घर में पड़ी है. उनके मित्र साहित्यकार शिव कुमार यादव ने कहा कि कई बार ऐसा हुआ कि खाना और पुस्तक के बीच उन्हें एक को चुनने की विवशता रही. लेकिन हर बार भूखे रह कर भी उन्होंने पुस्तकों को प्राथमिकता दी. फक्क ड़पन के कारण ही रोजगार का स्थायी स्त्रोत नहीं बना सके. तमाम सीमावद्धताओं के बीच उन्होंने साहित्य को प्राथमिकता दी.
काफी विलंब से परिजनों के दबाब में शादी की. इस समय वे दो छोटे बच्चों के पिता थे. लेकिन स्वास्थ्य में लगातार गिरावट आ रही थी. आर्थिक विपन्नता का आलम यह था कि दोनों वक्त परिजनों को खाना ही नहीं दे पाते थे तो महंगा इलाज क्या कराते. जटिल बीमारियों से ग्रसित होते गये.
आठ नंबर बस्ती में स्थित हनुमान मंदिर में रमाकांत मिश्र ‘हलचल’तथा नंदलाल भारती ‘चंट’ के साथ बीते 15 अप्रैल को रामचरितमानस का पाठ दिनभर किया. इसी क्रम में लू के शिकार बने. इलाज बेहतर नहीं हो सका. बुधवार को तबीयत काफी बिगड़ गयी. परिजनों ने बर्नपुर अस्पताल में दाखिल कराया. गुरुवार की सुबह इस दुनिया को अलविदा कह गये.
उनके निधन पर मेयर श्री तिवारी, पूर्व सांसद श्री सिंह, साहित्यकार सृंजय, कथाकार श्री यादव, हिंदी माध्यम शिक्षा मंच के संयोजक मंडली के सदस्य डॉ अरुण पांडेय, मीना सिंह, मनोज यादव, प्रदीप सुमन, प्रधानाध्यापक शैलेन्द्र सिंह, शिक्षक उमेश चन्द्र कुशवाहा आदि ने गहरा शोक जताया. उन्होंने कहा कि हिंदी साहित्य व मंच की हर गतिविधियों में श्री शर्मा ने अंतिम दौर तक भागीदारी की. उन्होंने गुटीय सीमाबद्धताओं से खुद को हमेशा दूर रखा.

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