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कालचिनी चाय बागान बंद
1250 श्रमिक हुए बेकार, रोजी रोटी का संकट सभी श्रमिक पहुंचे थाने, किया घेराव और विरोध प्रदर्शन अलीपुरद्वार. डुवार्स में फिर से एक चाय बागान बंद हो गया है.बुधवार को कालचिनी चाय बागान को बंद कर दिया गया. प्रबंधन के लोग चाय बागान के मुख्य गेट पर सस्पेंशन ऑफ का नोटिस लगा कर चलते बने. […]
1250 श्रमिक हुए बेकार, रोजी रोटी का संकट
सभी श्रमिक पहुंचे थाने, किया घेराव और विरोध प्रदर्शन
अलीपुरद्वार. डुवार्स में फिर से एक चाय बागान बंद हो गया है.बुधवार को कालचिनी चाय बागान को बंद कर दिया गया. प्रबंधन के लोग चाय बागान के मुख्य गेट पर सस्पेंशन ऑफ का नोटिस लगा कर चलते बने.
अचानक बागान में ताला लगने से यहां काम कर रहे श्रमिकों में खलबली मच गयी.1250 चाय श्रमिक बेरोजगार हो गये हैं. इनलोगों के सामने रोजी-रोटी का संकट पैदा हो गया है.इससे पहले भी इस चाय बागान को बंद किया जा चुका है. काफी मशक्कत के बाद चाय बागान को खोला गया था. एक बार फिर से इसके बंद हो जाने की वजह से यहां के श्रमिक काफी निराश हैं.पहले श्रमिकों में रोष का हवाला देते हुए प्रबंधन ने 14 दिसंबर को बागान बंद करने की घोषणा की थी. उसके बाद 22 दिसंबर को चाय श्रमिक संगठनों,श्रम विभाग तथा बागान प्रबंधन के बीच त्रिपक्षीय बैठक हुई.
जिसमें बागान को खोलने का निर्णय लिया गया.23 दिसंबर से बागान को फिर से खोल दिया गया.चाय श्रमिकों का आरोप है कि बागान को खोल देने के बाद भी श्रमिकों को बकाया मजदूरी नहीं दी गयी. राशन बकाया है. तीन सप्ताह का वेतन नहीं मिला है. इसके अलावा सौ दिन रोजगार योजना के तहत काम तो करा लिये गये,लेकिन किसी को मजदूरी नहीं दी गयी.मालिकों से कई बार राशन और वेतन देने की मांग की गयी,पर इसका कोई फायदा नहीं हुआ.
इसबीच अचानक बागान को बंद कर दिया गया.
दरअसल बागान मालिक बकाये का भुगतान ही नहीं करना चाहते. श्रमिक विकास महली ने बताया कि बकाया देने से बचने के लिए ही बंदी की घोषणा की गयी है.इसके साथ ही बागान खोलने की मांग को लेकर श्रमिकों ने आज से ही आंदोलन की शुरूआत कर दी है. गुस्साए श्रमिक कालचिनी थाना पहुंचे और थाने का घेराव कर विरोध प्रदर्शन किया.दूसरी तरफ प्रशासनिक सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार कालचिनी चाय बागान प्रबंधन की ओर से बागान बंद करने संबंधी कोई सूचना नहीं दी गयी है.एक बाद सूचना मिलने के बाद श्रम विभाग की मदद से बागान खोलने की कोशिश की जायेगी.
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