2.5 हजार रुपये की रिश्वतखोरी पर पूर्व बैंक मैनेजर को चार साल का कारावास

भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा सात और 13 का आरोप साबित होने पर आसनसोल सीबीआइ की विशेष अदालत ने मंगलवार को यूबीआइ सैंथिया शाखा के मैनेजर-ऑपरेशंस रहे शरत चंद को उक्त दोनों धाराओं में क्रमशः तीन और चार साल के कारावास के साथ 10 हजार रुपये जुर्माना की सजा सुनायी. तीन और चार साल की कारावास की सजा एक साथ चलेगी. सजा सुनाने के बाद दोषी शरत चंद्र को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया.

By Prabhat Khabar News Desk | November 26, 2024 9:35 PM

आसनसोल.

भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा सात और 13 का आरोप साबित होने पर आसनसोल सीबीआइ की विशेष अदालत ने मंगलवार को यूबीआइ सैंथिया शाखा के मैनेजर-ऑपरेशंस रहे शरत चंद को उक्त दोनों धाराओं में क्रमशः तीन और चार साल के कारावास के साथ 10 हजार रुपये जुर्माना की सजा सुनायी. तीन और चार साल की कारावास की सजा एक साथ चलेगी. सजा सुनाने के बाद दोषी शरत चंद्र को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया. 14 मई 2015 को सीबीआइ एसीबी की टीम ने शरत को अपने ही आवास में ढाई हजार रुपये घूस लेते हुए रंगे हाथ पकड़ा था. सरकारी पक्ष के वरिष्ठ लोक अभियोजक राकेश कुमार ने कुल 18 गवाहों के साथ पुख्ता सबूत भी पेश किये. उसके आधार पर साढ़े नौ साल तक चले इस मामले में मंगलवार को अदालत ने दोषी को सजा सुनायी, क्या है पूरा मामला सैंथिया इलाके के निवासी प्रणय मुखर्जी ने 13 मई 2015 को सीबीआइ एसीबी कोलकाता में एक शिकायत की. इसमें उन्होंने लिखा कि उनके पिता भारतीय सेना में थे. उनके निधन के बाद पेंशन को लेकर वे यूबीआइ सैंथिया शाखा में गये. वहां तत्कालीन मैनेजर-ऑपरेशंस शरत चंद ने पेंशन का प्रोसेस व वेरिफिकेशन के लिए पांच हजार रुपये की मांग की. इस शिकायत के आधार पर सीबीआइ शरत को रंगे हाथ पकड़ने के लिए जाल बिछाया, जिसमें शरत आसानी से फंस गये. सीबीआइ ने शिकायतकर्ता श्री मुखर्जी को कहा कि वह शरत की बात मान लें और पांच हजार रुपये दो किस्तों में भुगतान करने की बात करें. पांच हजार रुपये में से पहला किस्त ढ़ाई हजार रुपये काम शुरू करने के लिए और काम पूरा होते ही दूसरे किस्त का ढ़ाई हजार रुपये का भुगतान किया जाएगा. शरत ने श्री मुखर्जी की बात मान ली और पहली किस्त का ढ़ाई हजार रुपये भुगतान के अपने घर पर बुलाया. 14 मई को श्री मुखर्जी शरत के घर जाकर ढ़ाई हजार रुपये का नकदी भुगतान करते ही सीबीआइ ने धावा बोला और शरत को घूस लेते रंगे हाथ पकड़ लिया और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 7/13 के तहत मामला दर्ज करके उसे अदालत में पेश किया. साढ़े नौ साल तक जांच, सुनवाई आदि होने के बाद अदालत ने मंगलवार को दोषी को सजा सुना दी.

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