परीक्षा को लेकर जल्दबाजी में लिया गया सरकार का निर्णय ठीक नहीं”
सरकार के फैसले से अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में पढ़नेवाले लाखों बांग्लाभाषी बच्चे भी होंगे प्रभावित
सरकार के फैसले से अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में पढ़नेवाले लाखों बांग्लाभाषी बच्चे भी होंगे प्रभावित आसनसोल. वर्ष 2025 से वेस्ट बंगाल सिविल सर्विस (एग्जीक्यूटिव) परीक्षा में हिंदी, उर्दू और संताली भाषा को हटा देने का असर बांग्लाभाषी बच्चों पर भी पड़ेगा. राज्य के अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में पढ़नेवाले अधिकांश विद्यार्थियों का सेकेंड लैंग्वेज हिंदी है. जिसके कारण इन सभी बांग्लाभाषी बच्चों के लिए भी डब्ल्यूबीसीएस परीक्षा में कक्षा दस के स्टैंडर्ड के 300 नंबरों के सवालों का जवाब देकर 30 प्रतिशत अंक प्राप्त कर पाना टेढ़ी खीर है. ऐसे बांग्लाभाषी भी सरकार के इस निर्णय से संतुष्ट नहीं हैं. राज्य सरकार के इस निर्णय को लोग जल्दबाजी में लिया गया निर्णय मान रहे हैं. चुनाव के पहले सरकार का यह निर्णय भी शायद बदल जाये कोलकाता उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता व एक्टिविस्ट हरिशंकर चट्टोपाध्याय ने कहा कि उनकी बेटी और उनका बेटा दोनों डीएवी पब्लिक स्कूल के विद्यार्थी थे और फिलहाल दोनों पीएचडी कर रहे हैं. दोनों बांग्ला बोलना जानते हैं, लिखने पढ़ने में इतने मजबूत नहीं हैं कि दसवीं के स्टैंडर्ड के बांग्ला भाषा के सवालों के जवाब दे सकें. सरकार के इस निर्णय से बंगाली होने के बावजूद भी उनके बच्चे डब्ल्यूबीसीएस की परीक्षा नहीं दे पायेंगे. ऐसे बच्चों की संख्या लाखों में है. 15 मार्च 2023 को गैजेट नोटिफिकेशन जारी करके इसकी घोषणा की गयी. जिसे मुख्यमंत्री ने बदलने की घोषणा की थी. अब इसके पुनः लागू होने का नोटिफिकेशन जारी हो गया है. सरकार बांग्ला पढ़ने की सुविधा सभी को दे, इसके बावजूद यदि कोई बांग्ला भाषा नहीं पढ़ता है तो यह उसकी जिम्मेदारी है. पीढ़ियों से राज्य में रहनेवाले सभी बंगाल के नागरिक हैं और सभी को बराबर का मौका मिलना चाहिए. राज्य की सभी जनता को मुख्यमंत्री एक नजर से देखें लायंस क्लब नियामतपुर के सचिव सह टिंंबर एंड शॉ मिल ओनर्स एसोसिएशन, आसनसोल-दुर्गापुर डिवीजन के सलाहकार किशोर पटेल ने कहा कि पीढ़ियों से बंगाल में रहनेवाले हम सभी यहां के नागरिक हैं. हमारा डोमिसाइल सर्टिफिकेट में बंगाल का पता रहता है. बंगाल में रहनेवाले सभी को मुख्यमंत्री एक नजर से देखें. राज्य की सबसे प्रतिष्ठित परीक्षा में हमारे बच्चे नहीं बैठ पायेंगे, यह सोचकर ही मन विचलित हो जाता है. हमारे बच्चे जब हमसे पूछेंगे कि हमारा अपराध क्या है? तो क्या जवाब देंगे? इस तरह भाषायी रूप से बंटवारा करना सही नहीं है. जो सिस्टम शुरू से चला आ रहा है उसे इस तरह अचानक बदलना सही नहीं है. सरकार हमारे बच्चों को मौका दे, यदि वे बांग्ला नहीं सिख पाते हैं तो उसके लिए हम खुद जिम्मेदार होंगे. मौका दिये बगैर प्रतियोगिता की दौड़ से बाहर करने का निर्णय न्यायसंगत नहीं है. मुख्यमंत्री को इसपर पुनः विचार करना चाहिए.
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है