टीडीबी कॉलेज में हिंदी-उर्दू की साझी विरासत पर विशेष व्याख्यान

टीडीबी कॉलेज के हिंदी और उर्दू विभाग ने संयुक्त रूप से एक विशेष व्याख्यान का आयोजन किया, जिसका विषय था ‘उर्दू- हिंदी भाषाओं की साझी विरासत’. इस कार्यक्रम में दोनों विभागों के छात्रों ने गीत और कविताएं प्रस्तुत कर कार्यक्रम में चार चांद लगा दिये. हिंदी विभाग की पीजी की छात्रा खुशी मिश्रा, सरोजिनी साहू, यूजी से स्वाति गोंड़, कोमल कुमारी ,यशिका शर्मा ने गीत प्रस्तुत किये.

By Prabhat Khabar News Desk | December 11, 2024 9:46 PM

रानीगंज.

टीडीबी कॉलेज के हिंदी और उर्दू विभाग ने संयुक्त रूप से एक विशेष व्याख्यान का आयोजन किया, जिसका विषय था ‘उर्दू- हिंदी भाषाओं की साझी विरासत’. इस कार्यक्रम में दोनों विभागों के छात्रों ने गीत और कविताएं प्रस्तुत कर कार्यक्रम में चार चांद लगा दिये. हिंदी विभाग की पीजी की छात्रा खुशी मिश्रा, सरोजिनी साहू, यूजी से स्वाति गोंड़, कोमल कुमारी ,यशिका शर्मा ने गीत प्रस्तुत किये. जबकि उर्दू विभाग के पीजी और यूजी के छात्रों, संजीद साबिर खान, सोहेल हुसैन और शमा परवीन ने मंजर भोपाली के लोकप्रिय गीत ‘तुम भी पियो हम भी पीयें रब की मेहरबानी, प्यार के कटोरे में गंगा का पानी’ प्रस्तुत किया. हिंदी विभाग के तृतीय सेमेस्टर के छात्र अमन हेला ने हिंदी उर्दू की साझा विरासत पर एक सुंदर कविता प्रस्तुत की जिसका शीर्षक था ‘हिंदी- उर्दू, दो भाषाएं, एक दिल की बात, दोनों में बसी है, सच्ची मुहब्बत की सौगात.’ कार्यक्रम की शुरुआत महाविद्यालय के टीचर इनचार्ज प्रोफेसर मिलन मुखर्जी ने मुख्य वक्ता प्रोफेसर सफदर इमाम कादरी का स्वागत शाल, बुके और स्मृति चिह्न देकर किया. उन्होंने सच ए ग्रेट पर्सनालिटी कह कर उन्हें सम्मानित किया और कहा कि अगर ‘सफदर साहब’ द्वारा किताबों से संबंधित बातों को दिल से लगायेंगे तो निश्चित रूप से यहां के स्टूडेंट बेस्ट होकर निकलेंगे. उन्होंने कहा हिंदी- उर्दू संवेदना की भाषा है जो आदिकाल से चली आ रही है, दोनों एक ही प्रेम की भाषा है. कॉलेज की आइक्यूसी कोऑर्डिनेटर व अंग्रेजी विभाग की ‘डॉ. श्रावणी बनर्जी’ ने मंच से अपनी बात हिंदी में रखी. उन्होंने कहा कि साहित्य ही समाज का दर्पण है, और दर्पण कभी झूठ नहीं बोलता है, हर एक भाषा हमारे दिल का निचोड़ है. कॉलेज के सीनियर जीबी मेंबर डॉ. अमिताभ नायक ने हिंदी- उर्दू विभाग को धन्यवाद दिया. उन्होंने सफदर इमाम कादरी के प्रति आभार प्रकट किया.

उर्दू विभाग के यूजी व पीजी कोऑर्डिनेटर एवं जीबी मेंबर ‘डॉक्टर सफकत कमाल’ ने मुख्य वक्ता के प्रति पूरे विभाग की तरफ से आभार प्रकट किया और उन्होंने कहा कि इमाम साहब के लिए दिल से जो बात निकलती है असर रखती है. हिंदी विभाग की ओर से यूजी कॉऑर्डिनेटर डॉ वसीम आलम ने मुख्य वक्ता के प्रति आभार प्रकट किया. उन्होंने कहा हमारी बहुत सारी पहचान है उसमें से एक पहचान है हमारी भाषा. जिससे हम बहुत ही संवेदनात्मक रूप से जुड़े रहते है. उर्दू विभाग की वरिष्ठ प्राध्यापिका डॉ. सबेरा खातून ने मुख्य वक्ता व उर्दू व हिंदी के बहुचर्चित लेखक और आलोचक ‘प्रो. सफदर इमाम कादरी’ का संक्षिप्त परिचय दिया. प्रो. सफदर इमाम क़ादरी ने सभागार में उपस्थित शिल्पांचल के महत्वपूर्ण कथाकार डॉ. रविशंकर सिंह की चर्चित कहानी ‘कॉमरेड का कोट’ लेखक कथाकार सृंजय, शिवकुमार यादव, समाजसेवी मनोज यादव, डॉ. नेहाल अहमद अंसारी, बीबी कॉलेज उर्दू विभाग के कॉऑर्डिनेटर डॉ. मशहूर को मंच से धन्यवाद ज्ञापित किया.

उन्होंने ‘उर्दू- हिंदी भाषाओं की साझी विरासत’ विषय पर एकल व्याख्यान देते हुए कहा कि हिंदी और उर्दू दोनों ही भारतीय भूमि पर जन्म लेने वाली भाषाएं हैं. इन दोनों भाषाओं की लिपि भिन्न है, लेकिन इनके व्याकरण में समानता है. आरंभिक दौर में हिंदी और उर्दू की लिपि में कोई अंतर नहीं था. द्विवेदी युग तक अनेक हिंदी लेखक उर्दू लिपि में ही लिखा करते थे. 1850 में कोलकाता में फोर्ट विलियम कालेज की स्थापना हुई और गिल क्राइस्ट ने इन दोनों भाषाओं को भिन्न- भिन्न साबित करने की साजिश रची. राजा शिवप्रसाद सिंह, सितारे हिंद की हिंदी भाषा उर्दू से भिन्न नहीं है, केवल उसकी लिपि देवनागरी है. 14 वीं सदी में अमीर खुसरो ने खड़ी बोली हिंदी में रचना आरंभ की थी. उनकी लिपि उर्दू थी. उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा कि यूरोप की यात्रा में मुझे कभी अनजानापन नहीं लगा, क्योंकि मैं जितना उर्दू को पढ़ता हूं उतना ही अन्य भाषाओं को भी पढ़ता हूं तो मुझे अजनबीपन नहीं लगता है.

उन्होंने बहुभाषी माहौल पैदा करने की गुजारिश की. इन दोनों भाषाओं की साझा विरासत है, कोई विभेद नहीं है. मंच का संचालन उर्दू विभाग से डॉ. शमशेर आलम ने और हिंदी विभाग से पीजी कोऑर्डिनेटर डॉ. जयराम कुमार पासवान ने किया. अंत में कथाकार डॉ रविशंकर सिंह ने श्री कादरी के सामाजिक कार्यकर्ता (गंगा बचाव आंदोलन) के रूप में किये गये महत्वपूर्ण कार्य की भी चर्चा की. तत्पश्चात कथाकार सृंजय ने भी सफदर इमाम कादरी पर शेर सुनाया. उन्होंने कहा कि हम उर्दू को अरबी क्यों ना करें आपस में अदावत कुछ भी नहीं. उर्दू विभाग की ओर से धन्यवाद ज्ञापन डॉ. महजबीन ने किया और हिंदी विभाग से डॉ. आलम शेख ने किया. इस अवसर पर हिंदी विभाग से डॉ. गणेश रजक, डॉ मीना कुमारी, डॉ. किरण लता दूबे, रीना तिवारी, उर्दू विभाग से डॉ इरशाद अंसारी, साहिबा खातून, जुबेदा खातून, नीलोफर शाहीन. पटना से एमडी मंजर अली, मरजान अली, हिंदी एकेडमी से दिनेश कुमार राम एवं बड़ी संख्या में हिंदी और उर्दू के छात्र और शोधार्थी उपस्थित रहे.

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